वाच्य परिचय
डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र
भाषा हमारे विचार-विनिमय का माध्यम है, जिसकी सबसे बड़ी
इकाई वाक्य है।
वाक्य के तीन मुख्य घटक होते हैं - कर्ता, क्रिया तथा कर्म।
अकर्मक क्रिया वाले वाक्य में कर्ता और क्रिया दो ही मुख्य घटक होते हैं।
सकर्मक क्रिया वाले वाक्य में कर्ता, क्रिया और कर्म तीन मुख्य घटक होते हैं।
इन तीनों घटकों में क्रिया प्रधान होती है, क्योंकि वाक्य का अर्थ क्रिया में ही निहित होता है।
इस तरह हम देखें तो क्रिया तीन प्रकार के विधान करती है -
१. कर्ता के बारे में।
२. कर्म के बारे में।
३. क्रिया के बारे में ; यानी खुद के बारे में।
ये तीन विधान करने के लिए क्रिया तीन रूप धारण करती है।
क्रिया के ये तीन रूप ही हिन्दी में तीन वाच्य कहलाते हैं -
१. कर्तृवाच्य
२. कर्मवाच्य
३. भाववाच्य
अर्थात् वाच्य का संबंध क्रिया से है। क्रिया के रूपों से है।
१. क्रिया का जो रूप कर्ता के बारे में विधान करता है,
उसे कर्तृवाच्य का रूप कहा जाता है।
इसी तरह, जिस वाक्य की क्रिया कर्तृवाच्य में होती है, उस वाक्य को कर्तृवाच्य का वाक्य कहा जाता है।
वह पढ़ता है/वह पढ़ता था/वह पढ़ेगा/उसने पढ़ा ... जैसे वाक्य कर्तृवाच्य के वाक्य
हैं।
कर्तृवाच्य के क्रियारूप धातु के साथ सीधे प्रत्यय जुड़ने से बनते हैं।
लिख धातु से लिखता, लिखते, लिखती, लिखा, लिखे, लिखी ... आदि।
कर्तृवाच्य के क्रियारूप अकर्मक-सकर्मक दोनों प्रकार की धातुओं से बनते हैं।
२. क्रिया का जो रूप कर्म के बारे में विधान करता है,
उसे कर्मवाच्य का रूप कहा जाता है।
कर्मवाच्य के क्रियारूपों के मूल में सकर्मक धातुएँ होती हैं।
इसी तरह, जिस वाक्य की क्रिया कर्मवाच्य में होती है, उस वाक्य को कर्मवाच्य का वाक्य कहा जाता है।
उसके द्वारा पढ़ा जाता है/उसके द्वारा पढ़ा जाता था/उसके द्वारा पढ़ा जाएगा/उसके
द्वारा पढ़ा गया ... जैसे वाक्य कर्मवाच्य के वाक्य हैं।
कर्मवाच्य की क्रिया मुख्य क्रिया के भूतकालिक रूप के साथ ‘जाना’ क्रिया जोड़कर बनाई जाती है।
पढ़ा जाना, लिखा जाना, कहा जाना, देखा जाना, सुना जाना ... आदि।
कर्मवाच्य के क्रियारूप मुख्य क्रिया तथा ‘जाना’ सहायक क्रिया के साथ प्रत्यय जोड़कर बनाए जाते हैं -
कहा जाता है/कहा गया/कहा जाएगा ... आदि।
३. क्रिया का जो रूप न तो कर्ता के बारे में विधान करता है,
न तो कर्म के बारे में, उसे भाववाच्य कहा जाता है।
चूँकि भाववाच्य का संबंध अकर्मक क्रिया से है, इसलिए यहाँ कर्म का कोई प्रश्न नहीं।
भाववाच्य के क्रियारूप भी कर्मवाच्य की तरह मुख्य क्रिया के भूतकालिक रूप तथा ‘जाना’ क्रिया के योग से बनते हैं।
फर्क सिर्फ इतना है कि कर्मवाच्य में जाना क्रिया के साथ मुख्य क्रिया के रूप
में सकर्मक होती है तथा भाववाच्य में जाना क्रिया के साथ मुख्य क्रिया के रूप में
अकर्मक क्रिया होती है।
अब चला जाए। यहाँ बैठा जाए। अब चला नहीं जाता।
कर्म विहीन सकर्मक क्रिया से भी भाववाच्य बनता है।
अब खाया नहीं जाता। (खाना क्रिया सकर्मक है। परंतु वाक्य में कर्म उपस्थित
नहीं है।)
डॉ.
योगेन्द्रनाथ मिश्र
40, साईंपार्क सोसाइटी, वड़ताल रोड
बाकरोल-388315,
आणंद (गुजरात)
उपयोगी एवं महत्वपूर्ण जानकारी। सुदर्शन रत्नाकर।
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