साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत : चन्द्रभान ख़याल
उर्दू
साहित्य का अकादमी पुरस्कार मध्यप्रदेश के चन्द्रभान ख़याल को
साहित्य
अकादमी ने उर्दू साहित्य के लिए मध्यप्रदेश के प्रख्यात उर्दू साहित्यकार चंद्रभान
ख़याल को वर्ष 2021
के प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित करने का निर्णय लिया है। ख़याल को यह पुरस्कार उनके कविता संग्रह- ‘ताज़ा
हवा की ताबिशें’ के लिए दिया गया है ।
अकादमी हर साल चौबीस भारतीय भाषाओं के लेखकों को प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी
पुरस्कार प्रदान करती है। अकादमी ने पिछले साल 30 दिसंबर को
हिन्दी के लिए दयाप्रकाश सिन्हा और अंग्रेजी के लिए नमिता गोखले समेत बीस भारतीय भाषाओं के लेखकों को वर्ष 2021 के अकादमी पुरस्कार देने की घोषणा की थी । चार भाषाओं उर्दू, मणिपुरी, मैथिली और गुजराती भाषा के लिए अकादमी
पुरस्कार गत 22 फरवरी को घोषित किये गये। पुरस्कार के रूप
में चन्द्रभान ख़याल को एक
उत्कीर्ण ताम्रफलक, शाल और एक लाख रुपये की राशि दिल्ली में 11 मार्च को आयोजित होने वाले एक विशेष समारोह (साहित्योत्सव) में प्रदान की
जाएगी।
उर्दू
को लेखन का माध्यम बनाने वाले चन्द्रभान ख़याल मानते
हैं कि आज जो कुछ भी मैं हूँ, उर्दू के कारण
ही हूँ। रोजगार की तलाश और परिवार की जिम्मेदारी सम्भालने के लिए मैं माखननगर से
दिल्ली आ गया था, उर्दू ने आज़ यह सम्मान दिला दिया। देश
दुनिया में मेरा जो भी नाम है वो उर्दू ने ही दिलाया है। किसी भी तरह का अवार्ड
मिलना खुशी की बात होती है, फिर साहित्य आकादमी का अवार्ड से
बड़ा तो कोई अवार्ड हिंदुस्तान में है ही नहीं। उर्दू भाषा की शायरी और नज़्में
लिखने के जज्बात बयाँ करते हुए चन्द्रभान ख़याल कहते हैं कि बचपन से गालिब को पढ़ा। साथ ही हिंदी
के शायरों को भी पढ़ा। बुन्देली जुबान भी पसन्द थी। बुन्देली जुबान उस वक्त उर्दू
से मेल खाती थी फिर भी माखननगर के ठाकुर ब्रजमोहन साहब ने कहा कि या तो हिन्दी में
लिखो या उर्दू में और उर्दू में लिखना है
तो उर्दू भाषा आनी चाहिए , इसका पूरा ज्ञान होना चाहिए। यह इलाका उर्दू जुबान से
नावाकिफ है ऐसे में कैसे लिखोगे उर्दू में ? इसके लिए
तुम्हें मेहनत करनी पड़ेगी ।। ठाकुर ब्रजमोहन की बातों ने दिशा दी। किसी तरह उर्दू
-हिंदी टीचर किताब मिल गई। ख़याल ने बताया कि तब मेरी उम्र 13-14 साल थी। उर्दू जुबान सीख ली थी। घर के सामने जगदीश वाचनालय होता था।
उसमें किताबें होती थी। उसी से शौक परवान चढ़ा। वर्तमान में उर्दू भाषा की स्थिति
को लेकर ख़याल कहते हैं कि उर्दू के प्रति लोगों में शौक कम
होता जा रहा है, स्कूलों में भी उर्दू भाषा का उपयोग नहीं
होता सिर्फ मदरसें में ही उर्दू भाषा पढ़ाई जा रही है।
खण्डकाव्य
‘लौलाक’ ने दी उन्हें वैश्विक पहचान
चन्द्रभान
ख़याल को अपनी एक रचना ने अंतर्राष्ट्रीय ख्याति दिलाई
। वर्ष 2002 में लिखा खण्ड काव्य - ‘लौलाक’
कुवैत और साउदी अरब के स्कूलों में पढ़ाया जाता है। ख्याल बताते हैं कि चौदह
सौ सालो में किसी गैर मुस्लिम द्वारा लिखी गई यह पहली ऐसी कविता है जिसे ईरान
सरकार द्वारा विशिष्ट अवार्ड भी दिया गया।
लौलाक पैगम्बर इस्लाम हजरत मोहम्मद के पवित्र जीवन पर आधारित कविता है जिसे पूरी
उर्दू दुनिया में अत्याधिक पसन्द किया गया। इसे अपनी तर्ज की ऐसी कालजयी व अनूठी
रचना करार दिया गया है जिसकी दूसरी कोई मिसाल उर्दू शायरी में देखने में नहीं आती
है।
उस्ताद
ने भाषा पर पकड़ बनवाई उस्ताद के उस्ताद ने दिया ‘तफ़ज्जुल’
परिवार
की जिम्मेदारी संभालने के लिए वर्ष 1966
में माखननगर से दिल्ली आ गया। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, नौ
भाई बहन थे। दिल्ली आया तो यहाँ मुलाकात हुई फारसी विद्वान व उर्दू के विख्यात
शायर पंडित रामकृष्ण मुज्जर सा'ब से। उन्हीं को मैंने अपना
उस्ताद बनाया। जिसके बाद जुबान साफ हुई । उनका ' ख़याल '
बनने का सफर भी बड़ा रोचक
है। उनके उस्ताद थे मुज्जर सा'ब और उनके उस्ताद थे ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त रघुपति
सहाय ‘फिराक गोरखपुरी’, जब फिराक गोरखपुरी से उस्ताद ने मिलवाया तब उन्होंने अपनी रचना सुनाने के
लिए कहा। जो फिराक गोरखपुरी को इतनी पसन्द आई कि उन्होंने कहा कि इसमें बहुत ख़याल है इसलिए आज से इनका तलफ्फुज ख़याल रहेगा ।
शायर
ही नहीं ,एक अच्छे इंसान और
निष्पक्ष पत्रकार भी हैं
गरीब
व पिछड़े परिवार में जन्में पेशे से पत्रकार चंद्रभान ख़याल वर्ष 1966
में दिल्ली आये और उसी शहर को अपना कर्मक्षेत्र बना लिया । नईदिल्ली से प्रकाशित
होने वाले राष्ट्रीय उर्दू दैनिक कौमी आवाज में वर्ष 1981 से
2006 तक विशेष संवाददाता के पद पर रहने के बाद अवकाश प्राप्त
किया। फरवरी 2008 से जून 2011 तक भारत
सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय उर्दू विकास परिषद के
उपाध्यक्ष रहे जो देश में उर्दू की सर्वोच्च संस्था है। दो बार उर्दू अकादमी
दिल्ली के सदस्य रहे। उर्दू सलाहकार बोर्ड के संयोजक व कार्यकारिणी सदस्य भी हैं।
प्रथम कविता संग्रह शोलों का शजर वर्ष 1979 में प्रकाशित हुआ
था। जिसने उर्दू के सभी वरिष्ठ लेखकों एवं समालोचकों को आकृष्ट किया। इसके बाद
कविता संग्रह गुमशुदा आदमी का इंतजार और खिली थी धूप भी चर्चित रहे ।आपको केंद्रीय
साहित्य अकादमी व सैमसंग का टैगोर लिट्रेचर अवार्ड, दिल्ली
उर्दू अकादमी का शायरी अवार्ड, मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी का शेरी भोपाली अवार्ड और हिन्दी
उर्दू संगम संस्था लखनऊ के शायरी अवार्ड सहित अनेक पुरस्कार मिल चुके हैं। आप दो
वर्ष तक मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी के वाईस प्रेसीडेंट भी रहे ।
राजा
दुबे
एफ
- 310 राजहर्ष कालोनी ,
अकबरपुर
कोलार
रोड
भोपाल
462042
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