शुक्रवार, 27 जून 2025

मई-जून 2025, अंक 59-60(संयुक्तांक)

 

शब्द-सृष्टि

मई-जून 2025, अंक 59-60(संयुक्तांक)  

व्याकरण विमर्श – क्रिया - बोलना/बुलाना/बुलवाना – डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र

कविता – 1 नारी देवी रूप...(रोला छंद) 2 दूरदर्शन (हास्य रचना-गीतिका छंद) – डॉ. अनिल कुमार बाजपेई ‘काव्यांश’

सामयिक टिप्पणी – ऑपरेशन सिंदूर : भारतमाता की जय ! – डॉ. ऋषभदेव शर्मा

कविता – 1. योग की महिमा 2.रक्त दान 3. नशा करे विनाश– डॉ. राजकुमार शांडिल्य

विशेष – लोकमाता अहिल्याबाई होलकर – अपराजिता ‘उन्मुक्त’

चोका – 1. एक थी यशोधरा 2. जिंदगी – प्रीति अग्रवाल

आलेख – वर्तमान युग में बौद्धधर्म की प्रासंगिकता – डॉ. राजकुमार शांडिल्य

कविता – क्यों करती हो तुम शृंगार प्रिये – लक्ष्मी नितिन डबराल

ग़ज़ल – इंद्र कुमार दीक्षित

आलेख – कालजयी सर्जक रविन्द्रनाथ टैगोर – डॉ. घनश्याम बादल

कविता – राष्ट्रीय चेतना की भोर, रवींद्र नाथ टैगोर – कुमार महेंद्र

कहानी – रिवर्स गियर – एकता चौधरी

दोहे – गुजरात दिवस – डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा

पुस्तक चर्चा – ‘मूर्तियों के जंगल में’आग से गुजरते हुए – गुर्रमकोंडा नीरजा

कविता – 1. विवशता 2. जीवन की त्रासदी – सूर्यनारायण गुप्त ‘सूर्य’

आलेख – सीता जी के ऊद्भव की कथा – सुरेश चौधरी

कविता – डॉ. सुमित शर्मा

पुरस्कृत प्रतिभा – बानू मुश्ताक : दुनिया को रोशन करता कन्नड़ का ‘हृदय दीप’ – डॉ. ऋषभदेव शर्मा

कविता – कभी अपने साथ भी वक्त बिताया कर – मीनू बाला

शोध समाचार – “गुजरात के हिन्दी हाइकुकार : एक सर्वेक्षणपरक अध्ययन” विषयक शोध कार्य पर पीएच.डी.....

पुरस्कृत प्रतिभा

 

बानू मुश्ताक : दुनिया को रोशन करता कन्नड़ का ‘हृदय दीप’

डॉ. ऋषभदेव शर्मा

कर्नाटक की 77 वर्षीय कन्नड़ लेखिका, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता बानू मुश्ताक (ज. 3 अप्रैल, 1948) ने अपने कहानी संग्रह 'हार्ट लैंप' के लिए अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार 2025 जीतकर इतिहास रच दिया है। यह पहली बार है जब कन्नड़ भाषा में लिखी गई किसी कृति को यह प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हुआ है। इस उपलब्धि ने न केवल बानू मुश्ताक को वैश्विक मंच पर सम्मान दिलाया, बल्कि भारतीय साहित्य की समृद्ध परंपरा को भी दुनिया के सामने लाकर खड़ा कर दिया। दीपा भास्ती द्वारा अंग्रेजी में अनुवादित 'हार्ट लैंप' ने साहित्य प्रेमियों के दिलों को छुआ और कन्नड़ साहित्य को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई। इस उपलब्धि पर बानू मुश्ताक और उनकी अनुवादक दीपा भास्ती को हार्दिक बधाई!

सयाने बता रहे हैं कि ‘हृदय दीप’ (हार्ट लैंप) 1990 से 2023 के बीच लिखी गईं बारह कहानियों का संग्रह है। ये कहानियाँ दक्षिण भारत - विशेष रूप से कर्नाटक - की मुस्लिम महिलाओं के रोज़मर्रा के जीवन, उनके संघर्षों, सपनों और हिम्मत को बखूबी उकेरती हैं। बानू मुश्ताक की लेखनी में एक अनोखी संवेदनशीलता और जीवंतता है, जो पाठकों को पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं की चुनौतियों और उनकी आंतरिक शक्ति से रूबरू कराती है। उनकी कहानियाँ हास्य, प्रतिरोध और बहनापे से भरी हैं, जो कन्नड़ संस्कृति की मौखिक परंपराओं से प्रेरित हैं। निर्णायक मंडल ने इस संग्रह की 'जीवंत, मार्मिक और बोलचाल की शैली’ की प्रशंसा की, जो सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों को संतुलन के साथ प्रस्तुत करती है।

बानू मुश्ताक की यह उपलब्धि इसलिए और भी ख़ास है, कि इससे न केवल उनकी व्यक्तिगत प्रतिभा उजागर हुई है, बल्कि वैश्विक मंच पर भारतीय भाषाओं के साहित्य की ताकत भी प्रमाणित हुई है। लंदन में आयोजित समारोह में पुरस्कार स्वीकार करते हुए बानू ने बड़े पते की बात कही कि "यह किताब इस विश्वास से जन्मी है कि कोई भी कहानी छोटी नहीं होती। मानवीय अनुभव का हर धागा महत्वपूर्ण है।" यह बात साहित्य की उस शक्ति की ओर इशारा है, जो समाज को जोड़ने और मानवीय संवेदनाओं को व्यक्त करने का माध्यम बनती है।

हासन (कर्नाटक) के एक मुस्लिम परिवार की बेटी बानू मुश्ताक का साहित्यिक सफर प्रेरणादायक है। किसे पता था कि आरंभ में मदरसे की पढ़ाई के बाद, आठ वर्ष की उम्र से कन्नड़ सीखने वाली बानू एक दिन लेखन को सामाजिक बदलाव का हथियार बनाने के लिए दुनिया भर में जानी जाएँगी! यह हो सका, क्योंकि तमाम तरह की चुनौतियों का सामना करते हुए उन्होंने दलित आंदोलन, महिला अधिकार और भाषा आंदोलन जैसे मुद्दों से जुड़कर अपनी लेखनी को लगातार निखारा। उनकी कहानियाँ उन महिलाओं की आवाज़ बनीं, जो समाज, धर्म और राजनीति के दबाव में चुप रहने को मजबूर होती हैं। उनकी रचनाएँ कर्नाटक साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हो चुकी हैं। उनकी कहानी पर आधारित फिल्म 'हसीना' को 2004 में राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।

ग़ौरतलब है कि यह पुरस्कार  दीपा भास्ती को भी भारतीय अनुवादक के रूप में स्थापित करता है। उन्होंने ही तो कन्नड़ के ‘हृदय दीप’ की रोशनी को 'हार्ट लैंप' के रूप में अनुसृजित करके दुनिया भर के पाठकों तक पहुँचाया। दीपा ने कहा है, "यह मेरी खूबसूरत भाषा के लिए गर्व का पल है।" कहना न होगा कि उनका अनुवाद कन्नड़ की आत्मा को बरकरार रखते हुए बानू की कहानियों को अंग्रेजी पाठकों के लिए जीवंत बनाता है। यह पुरस्कार अनुवाद कला और क्षेत्रीय साहित्य को बढ़ावा देने की उनकी निष्ठा का भी सम्मान है।

कुल मिलाकर, 'हार्ट लैंप' को बुकर मिलना भारतीय साहित्य के लिए गौरव का विषय है। इससे पहले 2022 में गीतांजलि श्री की ‘रेत समाधि’ (टॉम्ब ऑफ सैंड) ने हिंदी साहित्य को यह सम्मान दिलाया था। अब बानू मुश्ताक की इस उपलब्धि ने पुनः सिद्ध किया है कि साहित्य देश, काल, भाषा और संस्कृति की भौतिक हदों को पार करने की ताकत रखता है। यह उपलब्धि कन्नड़ साहित्य को नई ऊँचाइयों पर ले जाएगी और नई पीढ़ी को भारतीय भाषाओं में लिखने के लिए प्रेरित करेगी।

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डॉ. ऋषभदेव शर्मा

सेवा निवृत्त प्रोफ़ेसर

दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा

हैदराबाद

 

कविता

 

डॉ. सुमित शर्मा

 

चलो यूँ करें

बाँट लें हिस्से वफ़ा के

 

बेइंतहा मुहब्बत मैं जताऊँ

तुम प्यार से मुस्कुरा देना

 

थोड़ा रूठो तुम हक़ जताओ

मैं प्यार से रिझा मना लूँगा

 

कभी बरस जाना नादानियों पर मेरी

उठा लूँ नाज़ो नख़रे, तुम मुस्कुरा देना

 

कहने को नहीं रिश्ता कोई दरम्याँ

फिर भी जगे अहसास तो दिल लगा लेना

 

हो कभी बारिश, बूँदों को आँचल में भरकर

भीगना प्रेम में कुछ छींटे मुझपर भी उड़ा देना

 

जब बढ़ने लगे बेक़रारी, बदन सुलगने लगे

बाहों में भरकर होठों से लगा लेना

 

ना आएँगे लौटकर ये हसीं पल

कुछ हौसले मेरे, कुछ दायरे अपने बढ़ा लेना।



डॉ. सुमित शर्मा

वड़ोदरा

कविता

कभी अपने साथ भी वक़्त बिताया कर

मीनू बाला

 

कभी अपने साथ भी वक़्त बिताया कर

कभी खुद से भी मुलाकात कर आया कर,

कभी अपने कंधों को भी थपथपाया कर,

सारा दिन जो तेरे शरीर का बोझ झेलते हैं

कभी इन पैरों को भी सहलाया कर।

कभी अपने साथ भी वक़्त बिताया कर।

 

सारी उम्र ही यह सोचकर गुजार दी

कि कोई उंगली न कर दे,

रखा अपना किरदार शीशे की तरह साफ

कि कोई मानहानि न कर दे।

कब तक लोगों की सोच ‌के साथ जीवन जीयेंगे,

कभी खुद की भी कर जाया कर,

कभी अपने साथ भी वक़्तबिताया कर।

 

भागते-दौड़ते इस जीवन में कब यहाँ तक पहुँच गई,

पता ही न चला

कब छोटी से ‌अचानक‌ बड़ी हो गई,

पता ही न चला।

जब थक‌ जाती हो, तो थोड़ा थम‌ जाया  कर

कभी अपने साथ भी वक़्त बिताया कर।

 

कभी वो कर जो तुम्हें हो पसंद

कभी वो बना जो तू खाना चाहे

कब तक दूसरों की हाँ में हाँ मिलाती रहोगी,

कभी खुद की भी हाँ में हाँ मिलाया कर।

कभी तो अपने‌‌ साथ भी वक़्त बिताया ‌कर।

 

न कुछ रूका है इस दुनिया में और

न कुछ तेरे बगैर रूकेगा

ऐसे ही न खुशफहमियों में दिन बिताया कर‌

कभी अपने मन की भी मान जाया कर

कभी तो अपने साथ भी वक़्त बिताया कर

कभी अपने साथ भी वक़्त बिताया कर।

 


मीनू बाला

राजकीय आदर्श वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय

विभाग 39 सी,चंडीगढ़

आलेख

 


सीता जी के ऊद्भव की कथा

सुरेश चौधरी

ॐ वन्दे विदेह तनया पद पुण्डरीकं कैशोर सौरभ समाहृत योगि चित्तम् ।

हन्तुं त्रिताप मनिशं मुनिहंस सेव्यम् सन्मान-सालि-परिपीत पराग पुञ्जम् ।।

जयति श्री जानकी भानुकुल भानु की प्राण प्रिय बल्लभे तरणि भूपे…

माँ जानकी का प्राकट्य वैशाख शुक्ल नवमी को भू देवी से अयोनिजा रूप में  हुआ था।  मूल प्रकृति  प्रकृति से ही उत्पन्न हो प्रकृति में ही समा जाती हैं .. यह कथा सर्व विदित है।

सूर्य वंशी महाराज ईक्ष्वाकु के पुत्र निमि के भी कुल पुरोहित वशिष्ठ थे, एक यज्ञ में वशिष्ठ जी के अनुपस्थित रहने पर  राजा निमि ने महर्षि गौतम को होता के स्थान पर नियुक्त किया, देवराज इन्द्र का यज्ञ पूर्ण होने पर वशिष्ठ जी ने होता कर्म गौतम ऋषि द्वारा सम्पन्न  देख कर  क्रोध वश महाराज निमि को देह रहित होने का श्राप दे डाला, राजा ने निर्दोष होने पर भी श्राप स्वीकार किया फल स्वरूप श्री वशिष्ठ जी को भी देह त्याग कर मित्रावरुण के पुत्र रूप में पुन: जन्म लेना पड़ा, इधर यज्ञ की समाप्ति पर ऋत्विकों की प्रेरणा से यज्ञपुरुष  वर देने को उद्यत हुये तो महाराज निमि ने लोगों के नेत्रों में वास मांग लिया, जो विदेह होते हुए भी प्राणियों में निमिषोन्मेष ( पलक झँपकना) के रूप में व्याप्त हैं - ( ध्यातव्य:-  मनहुं सकुचि निमि तजेउ दिगँचल )

अराजकता के भय से ऋषियों द्वारा राजा निमि  के शरीर को अरणि से मन्थन किया गया , तो उससे एक कुमार बालक प्रकट हुआ, जो सीधा गर्भ रहित जन्म लेने के कारण  " जनक "  नाम से जाना गया, इनके पिता विदेह थे इस लिये " वैदेह " नाम हुआ और  मन्थन से जन्म होने के कारण "मिथि" संज्ञा हुयी ।

यहीं से जनक की संज्ञा से सभी मिथिला नरेश जाने जाते हैं .. जनक के पुत्र उदावसु जनक, उदावसु के नन्दिवर्धन जनक , नन्दिवर्धन के सुकेतु जनक .. उसी प्रकार निमि से २१ वीं पीढ़ी पर महाराज " सीरध्वज जनक " हुये ये परम ब्रम्ह ज्ञानी थे , जनक वंश के सभी राजा जन्म से ही ब्रम्हनिष्ठ रहे। (श्रीमद्भगवद्गीता में भी श्री कृष्ण ने ज्ञानियों की वंश परम्परा का संकेत किया है )

 

वाल्मिकी रामायण के अनुसार एक बार मिथिला में पड़े भयंकर सूखे से राजा जनक बेहद परेशान हो गए थे, तब इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए उन्हें एक ऋषि ने यज्ञ करने और धरती पर हल चलाने का सुझाव दिया ।

उस ऋषि के सुझाव पर राजा जनक ने यज्ञ करवाया और उसके बाद राजा जनक धरती जोतने लगे. तभी उन्हें धरती में से सोने की डलिया में मिट्टी में लिपटी हुई एक सुंदर कन्या मिली ।

राजा जनक की कोई संतान नहीं थी, इसलिए उस कन्या को हाथों में लेकर उन्हें पिता प्रेम की अनुभूति हुई. राजा जनक ने उस कन्या को सीता नाम दिया और उसे अपनी पुत्री के रूप में अपना लिया।

 


सुरेश चौधरी

एकता हिबिसकस

56 क्रिस्टोफर रोड

कोलकाता 700046

 

कविता

सूर्यनारायण गुप्त ‘सूर्य’

 

 1.

  विवशता

 

किसी के -

स्नेह का मैं जब-जब आकांक्षी रहा

तब-तब -

मुझे तिरस्कार की भेंट मिली

प्यार से-

जब भी नमन करने का प्रयास किया

नफरत की धुंध मेरी आस्मिता को निगल गई

धोखे की लौ में विश्वास झुलसता रहा!

पर / मैं-

सदैव मौन रहा!!

क्यों कि-

मौन भी अभिव्यक्ति का ही एक रूप है  !

और-

जिंदगी भी तो कुछ और नहीं है

मात्र - थोड़ी छाया

और - थोडी धूप है।!

 

 2.

जीवन की त्रासदी

 

मन -

कितना आकुल है!

हर पल-

यह व्याकुल है!!

दर्द की धुंध कितनी घनी है

और-

रोशनी की नीयत भी अनमनी है कैसे करे जीवन का सफर ?

पग-पग पर फूल नहीं -

नागफनी है।!

 


सूर्यनारायण गुप्त ‘सूर्य’ 

ग्राम व पोस्ट - पथरहट (गौरीबाजार)

जिला‌‌ -  देवरिया(उ.प्र.)274202



ग़ज़ल

 



इंद्र कुमार दीक्षित

खुद पर न है भरोसा, अविश्वास सा क्यूँ है

दुनिया में हर इंसान बदहवास सा क्यूँ  है।।

 

जेहन में भरा धूल-धुआँ, ईर्ष्या-द्वेष ,डर

आँखों मेंजलन,धुंध–ए–आकाश सा क्यूँ है।।

 

अरबों खरब लुटा रहे ऐशो आराम पर

फिर नींद न आना यहाँ अभ्यास सा क्यूँ है।।

 

आबो-हवा में घुल गई है ऐसी सियासत

जो बोलते सब लग रहा बकवास सा क्यूँ है

 

इंसानियत की राह इतनी मुश्किलात क्यों

हैरान है हर शख्स ये अहसास-सा क्यूँ है।।

 


इंद्र कुमार दीक्षित

5/45 मुंसिफ कालोनी

रामनाथ - देवरिया(उत्तरी) - 274001

कविता

  

डॉ. राजकुमार शांडिल्य

1.

योग की महिमा

 

योग है अद्भुत-प्रत्यक्ष, वैदिक विज्ञान,

इसी से होगा, मानवमात्र का कल्याण।

पढे़ जो, महर्षि पतंजलि का योग विज्ञान,

चित्तवृत्तियों का निरोध, करे वह इन्सान।

सुख, दु:ख मोह-बन्धन नहीं, सीमित भोग,

सभी अपनाएँ योग, विश्व बने नीरोग।

मन अति चंचल स्वेच्छा से है चलता जाता,

अभ्यास और वैराग्य से ही वश में आता।

यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार,

धारणा, ध्यान, समाधि अष्टांग का व्यवहार।

यम-नियम से होती तन-मन-वाणी शुद्ध,

प्राणायामादि से समाधि तक पहुँचे प्रबुद्ध।

 

शरीर-मन को स्वस्थ रखता है प्राणायाम,

पूरक, रेचक, कुम्भक हैं विविध आयाम।

प्राणायाम असाध्य रोगों को जड़ से मिटाता,

नित्य अभ्यास से दुःख-दर्द जन भूल जाता।

अहिंसा, सत्यास्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह,

अन्तस् वासना शुद्धि से प्रसन्नचित्त रह।

शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान,

नियमों के पालन का हो मानवमात्र को ज्ञान।

***

2.

रक्त दान

रक्त है ईश्वर का वरदान,

इससे बढ़कर नहीं कोई दान।

यह अमूल्य है महान,

लाली है इसकी पहचान।

अब तक नहीं मिला उत्पादन का ज्ञान,

यह नहीं बिकता किसी हाट दुकान।

इसी से जिंदा रहता इंसान,

शरीर में भरपूर रक्त है रोगों का निदान।

दुर्घटना में क्षत-विक्षत चाहता रक्तदान,

उसी से बचते हैं मानव के प्राण।

गंभीर रोगों में शल्य चिकित्सा है निदान,

मृत्यु शय्या पर पड़ा इंसान चाहता रक्तदान।

इसके बाद, रक्त ही देता पुनः प्राण,

समय पर न मिले तो मनुष्य निष्प्राण।

भोजन, वस्त्र, धन, भूमि और ज्ञान,

सबसे बढ़कर दान महान।

प्रतिरोधक क्षमता पुष्टकर बनाता बलवान,

यही है सबसे बड़ा बलिदान।

मनुष्य इससे ही पाता है सम्मान,

वस्तुतः रक्तदान है जीवनदान।

रक्त में गर्मी से ही योद्धा बने महान

तभी सीमा पर शत्रु की कांपे जान।

रक्त में उबाल नहीं तो नर बेजान,

रक्तदाता है मित्र और भगवान, रक्त है ईश्वर का वरदान।

***

3.

नशा करे विनाश

घर में उपेक्षित, असफल और निराश,

अवसाद में भटकें, सुखों की करें तलाश।

सिगरेट, तम्बाकू, सुरा, अफीम और भाँग,

नशा सेवन जो करें, बनते उसी का ग्रास।

उन्मादक, घातक, धन नाश करें ये नाम,

इनके सेवन से बांधवों में हों बदनाम।

दुःखी मनुष्य, जो पहले थोड़ा-सा चख लेता,

क्षणिक सुख लोभ में, मात्रा है बढ़ा देता।

मद्य से क्षणिक आनन्द, मन शिथिल होता,

चिन्तन में असमर्थ, सदा निद्रा है देता।

निर्लज्ज ये, सुरापान जूए में मस्त हो जाते,

दुःखी, त्रस्त, कुटुम्बी, रो-रो दिन बिताते।

कुत्ते मुँह चाटते, जब कहीं भी गिर जाते,

शिक्षा, पद, सम्मान, शून्य ही रह जाते।

स्पर्धा में युवतियाँ भी, करती मद्य-सेवन,

संस्कृति, समाज का क्षरण, होता है पतन।

तीक्ष्ण तम्बाकू सेवन से, होता कैंसर रोग,

जो नहीं समझते, हो जाते हैं मृत्यु का भोग।

पुलिस, नेता, अभिनेता चाहे हों अधिकारी,

आज सभी बने हैं, मादक द्रव्यों के व्यापारी।

स्व हित चाहकर, नशा मुक्ति केन्द्र जो जाता,

दृढ़ निश्चय नर ही, व्यसन मुक्त हो पाता।

विश्व के सुधीजन करें नशा उन्मूलन,

शुद्ध सात्विक भोजन से, हो स्वस्थ तन-मन।

 


डॉ. राजकुमार शांडिल्य

हिन्दी प्रवक्ता

शिक्षा विभाग चंडीगढ़