सूर्यनारायण
गुप्त ‘सूर्य’
1.
विवशता
किसी
के -
स्नेह
का मैं जब-जब आकांक्षी रहा
तब-तब
-
मुझे
तिरस्कार की भेंट मिली
प्यार
से-
जब
भी नमन करने का प्रयास किया
नफरत
की धुंध मेरी आस्मिता को निगल गई
धोखे
की लौ में विश्वास झुलसता रहा!
पर
/ मैं-
सदैव
मौन रहा!!
क्यों
कि-
मौन
भी अभिव्यक्ति का ही एक रूप है !
और-
जिंदगी
भी तो कुछ और नहीं है
मात्र
- थोड़ी छाया
और
- थोडी धूप है।!
2.
जीवन
की त्रासदी
मन
-
कितना
आकुल है!
हर
पल-
यह
व्याकुल है!!
दर्द
की धुंध कितनी घनी है
और-
रोशनी
की नीयत भी अनमनी है कैसे करे जीवन का सफर ?
पग-पग
पर फूल नहीं -
नागफनी
है।!
सूर्यनारायण
गुप्त ‘सूर्य’
ग्राम
व पोस्ट - पथरहट (गौरीबाजार)
जिला
- देवरिया(उ.प्र.)274202
अर्थ गर्भित कविताएं!
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