शुक्रवार, 27 जून 2025

आलेख

 


सीता जी के ऊद्भव की कथा

सुरेश चौधरी

ॐ वन्दे विदेह तनया पद पुण्डरीकं कैशोर सौरभ समाहृत योगि चित्तम् ।

हन्तुं त्रिताप मनिशं मुनिहंस सेव्यम् सन्मान-सालि-परिपीत पराग पुञ्जम् ।।

जयति श्री जानकी भानुकुल भानु की प्राण प्रिय बल्लभे तरणि भूपे…

माँ जानकी का प्राकट्य वैशाख शुक्ल नवमी को भू देवी से अयोनिजा रूप में  हुआ था।  मूल प्रकृति  प्रकृति से ही उत्पन्न हो प्रकृति में ही समा जाती हैं .. यह कथा सर्व विदित है।

सूर्य वंशी महाराज ईक्ष्वाकु के पुत्र निमि के भी कुल पुरोहित वशिष्ठ थे, एक यज्ञ में वशिष्ठ जी के अनुपस्थित रहने पर  राजा निमि ने महर्षि गौतम को होता के स्थान पर नियुक्त किया, देवराज इन्द्र का यज्ञ पूर्ण होने पर वशिष्ठ जी ने होता कर्म गौतम ऋषि द्वारा सम्पन्न  देख कर  क्रोध वश महाराज निमि को देह रहित होने का श्राप दे डाला, राजा ने निर्दोष होने पर भी श्राप स्वीकार किया फल स्वरूप श्री वशिष्ठ जी को भी देह त्याग कर मित्रावरुण के पुत्र रूप में पुन: जन्म लेना पड़ा, इधर यज्ञ की समाप्ति पर ऋत्विकों की प्रेरणा से यज्ञपुरुष  वर देने को उद्यत हुये तो महाराज निमि ने लोगों के नेत्रों में वास मांग लिया, जो विदेह होते हुए भी प्राणियों में निमिषोन्मेष ( पलक झँपकना) के रूप में व्याप्त हैं - ( ध्यातव्य:-  मनहुं सकुचि निमि तजेउ दिगँचल )

अराजकता के भय से ऋषियों द्वारा राजा निमि  के शरीर को अरणि से मन्थन किया गया , तो उससे एक कुमार बालक प्रकट हुआ, जो सीधा गर्भ रहित जन्म लेने के कारण  " जनक "  नाम से जाना गया, इनके पिता विदेह थे इस लिये " वैदेह " नाम हुआ और  मन्थन से जन्म होने के कारण "मिथि" संज्ञा हुयी ।

यहीं से जनक की संज्ञा से सभी मिथिला नरेश जाने जाते हैं .. जनक के पुत्र उदावसु जनक, उदावसु के नन्दिवर्धन जनक , नन्दिवर्धन के सुकेतु जनक .. उसी प्रकार निमि से २१ वीं पीढ़ी पर महाराज " सीरध्वज जनक " हुये ये परम ब्रम्ह ज्ञानी थे , जनक वंश के सभी राजा जन्म से ही ब्रम्हनिष्ठ रहे। (श्रीमद्भगवद्गीता में भी श्री कृष्ण ने ज्ञानियों की वंश परम्परा का संकेत किया है )

 

वाल्मिकी रामायण के अनुसार एक बार मिथिला में पड़े भयंकर सूखे से राजा जनक बेहद परेशान हो गए थे, तब इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए उन्हें एक ऋषि ने यज्ञ करने और धरती पर हल चलाने का सुझाव दिया ।

उस ऋषि के सुझाव पर राजा जनक ने यज्ञ करवाया और उसके बाद राजा जनक धरती जोतने लगे. तभी उन्हें धरती में से सोने की डलिया में मिट्टी में लिपटी हुई एक सुंदर कन्या मिली ।

राजा जनक की कोई संतान नहीं थी, इसलिए उस कन्या को हाथों में लेकर उन्हें पिता प्रेम की अनुभूति हुई. राजा जनक ने उस कन्या को सीता नाम दिया और उसे अपनी पुत्री के रूप में अपना लिया।

 


सुरेश चौधरी

एकता हिबिसकस

56 क्रिस्टोफर रोड

कोलकाता 700046

 

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