पाठक
की कलम से -1
डॉ.
मायाप्रकाश पाण्डेय
‘शब्द सृष्टि’ नाम से ‘वेब पत्रिका’ का साहित्यिक ब्लॉग पिछले एक वर्ष से चल रहा है,
जिसमें हिन्दी भाषा एवं साहित्य,
साहित्यकार के साथ साथ भारतीय संस्कृति,
इतिहास आदि से संबंधित सामग्री समय-समय पर प्रकाशित होती रही है। इस प्रतिष्ठित ‘शब्द
सृष्टि’ ब्लॉग का श्रेय ब्लॉगर/संपादक डॉ. पूर्वा शर्मा,
परामर्शक डॉ. हसमुख परमार को जाता है जिनके अथक परिश्रम से यह ‘वेब पत्रिका’ हम
पाठकों तक अबाधगति से पहुँच रही है। यह वेब पत्रिका साहित्य,
समाज,
संस्कृति,
इतिहास आदि तमाम साहित्यिक गतिविधियों का विस्तृत ब्यौरा पाठकों के समक्ष पस्तुत
कर रही है। ‘शब्द सृष्टि’ वेब पत्रिका का नियमित पाठक होने के नाते उसके एक साल
पूर्ण करने के उपलक्ष में ‘शब्द सृष्टि’ की पूरी टीम को धन्यवाद और बधाई देना
चाहता हूँ,
धन्यवाद इसलिए कि समय की भाग-दौड़ी के बीच से समय निकाल कर उत्कृष्ट सामग्री के साथ
वे उसे पाठकों तक पहुँचा रहे है और बधाई इसलिए कि उस टीम का हौंसला बढ़े,
वे कठिन परिश्रम करने के लिए प्रेरित हो,
जिससे ‘शब्द सृष्टि’ नियमित चलती रहे तथा पाठक उससे लाभान्वित होते रहें।
‘शब्द सृष्टि’ वेब पत्रिका डॉ. पूर्वा शर्मा,
परामर्शक डॉ. हसमुख परमार तथा उनकी टीम के द्वारा गत वर्ष अक्टूबर -२०२० में शुरू की
गई और अक्टूबर-२०२१ तक बिना किसी व्यवधान के निरंतर नियमित समय पर निकलती रही है।
इसके एक वर्ष पूर्ण करने की जितनी खुशी उन्हें है उतनी ही खुशी हम पाठकों को भी
है। मैं यहाँ ‘शब्द सृष्टि’ की एक वर्ष की
यात्रा से आप सभी को रू-ब-रू कराना चाहता
हूँ।
‘शब्द सृष्टि’ का प्रथम अंक अक्टूबर
-२०२० में डॉ. पूर्वा शर्मा के संपादकीय और उनके हाइकु के साथ अपनी अनंत यात्रा के
लिए प्रयाण करता है। इस अंक में ‘सुख राई -सा’ ‘दुःख’ के परबत’ अर्धशतक लगाते अदभुत
हाइकु पुस्तक समीक्षा तथा कुछ हाइकु हैं।
इस शुभ शुरुआत के बाद नवम्बर- २०२० का दूसरा अंक गुजराती साहित्य को भी अपने में
समाहित कर लेता है,
इसके विचार स्तवक में – धूमकेतु/ थोरो –आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी पाठकों को
प्रभावित करते हैं। हिन्दी भाषा एवं भाषा विज्ञान के विद्वान डॉ. योगेन्द्रनाथ
मिश्र ने ‘शब्द संज्ञान’ शीर्षक में
पाठकों को हिन्दी व्याकरण का विधिवत ज्ञान कराया है। इसके साथ ही इस अंक में ‘कबीरा
खड़ा बाजार में ’व्यंग्य- प्रो. पारुकान्त देसाई,
‘स्त्री
शक्ति’ कविता –डॉ. अनु महेता,
परफेक्ट.....डॉ.पूर्वा शर्मा,
हाइकु- झीनाभाई देसाई,
आचार्य रघुनाथ भट्ट,
मुकेश रावल,
आलेख - डॉ. पूर्वा शर्मा के हाइकु – काव्य में पिरोये प्रेम-पुलक पल-डॉ. हसमुख
परमार,हाइगा
– डॉ. पूर्वा शर्मा,
गुजराती कहानी- रोटलो नजराई गयो - जोसेफ मेकवान जिसका अनुवाद डॉ. योगेन्द्रनाथ
मिश्र ने किया और अंत में पुस्तक परिचय के अन्तर्गत समकालीन हिन्दी साहित्य में
डॉ. पारुकान्त देसाई ‘कबीरा’ का योगदान को दिया है।
‘शब्द सृष्टि’ का तीसरा अंक नवम्बर में ही ‘ज्योति पर्व की विशेष शब्द
सौगात’ के साथ प्रकाशित हुआ है। जिसमें विचार स्तवक के अन्तर्गत आइन्स्टाइन/ आ.
रामचन्द्र शुक्ल/ शेक्सपियर हैं। इस अंक के रचनाकार डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र,
प्रो. पारुकान्त देसाई,
डॉ. ज्योत्सना शर्मा,
डॉ. हसमुख परमार,
त्रिलोक सिंह ठकुरेला,
कुमार गौरव अजीतेन्दु,
डॉ. पूर्वा शर्मा,
सुकेश साहनी,
महेश राजा तथा डॉ. अंशु सुर्वे हैं जिन्होंने अपनी रचनाओं से अंक को सुशोभित किया
है।
‘शब्द सृष्टि’ का अंक ४,
वर्षांत
की सप्रेम भेंट के साथ सामने आता है।
इसमें विचार स्वतक के अन्तर्गत स्वामी विवेकानंद-शेक्सपियर-थोरो को लिया है,
शब्द संज्ञान –ब्रजमोहन,
आलेख- प्रकृतिक साहचर्य और कोविद -१९ प्रो. शिवप्रसाद शुक्ल,
अनुसंधान क्या और क्यों ?-
डॉ. हसमुख परमार,
कविता –बाबूजी- रचना श्रीवास्तव,
कविता- डॉ. सुधा गुप्ता,
कहानी – ममा – डॉ. कुँवर दिनेश सिंह,
हाइगा –डॉ. पूर्वा शर्मा,
डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र के द्वारा कविता
का हिन्दी अनुवाद,
सुदर्शन रत्नाकर ने शुद्ध जात नामक लधुकथा,
पुस्तक समीक्षा में डॉ. दयाशंकर ने मशालें फिर जलाने का समय है और अन्त में डॉ. पूर्वा
शर्मा ने दास्तान कहे दिसंबर नामक कविता लिख कर इस अंक को पूर्णता प्रदान की है।
अंक ५ ,
जनवरी २०२१ में हिन्दी के वरिष्ठ
अध्येताओं की रचनाओं के साथ सामने आया। इस अंक में डॉ. मदनमोहन शर्मा – शब्द संज्ञान,
हिन्दी के विविध रूप – डॉ. हसमुख परमार,
राष्ट्रभाषा तथा संपर्क भाषा के रूप में हिन्दी की भूमिका –डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र,
संस्मरण के अन्तर्गत डॉ. शिवकुमार मिश्र : जैसा मैंने देखा : जैसा मैंने जाना आदि तमाम उत्कृष्ट रचनाएँ इसमें समाहित हैं।
‘शब्द
सृष्टि’ का अंक ६ फरवरी २०२१ में प्रकाशित
हुआ। इसमें विचार स्तवक में गुजराती के प्रसिद्ध कवि,
चिंतक सुरेश दलाल,
रवीन्द्रनाथ टैगोर,
गेरार्ड डे नर्वल को रखा गया है जो इस अंक की गरिमा को बढ़ाते हैं। इस अंक में गीत,
गीतिका,
आलेख,
दोहे,
हाइकु,
भारतीय साहित्य में अंकित वसंत शोभा- काव्यांश
जिसमें कालिदास,
विद्यापति,
दलपतराम आदि को समाहित किया गया है। इसी में हजारी प्रसाद द्विवेदी तथा विद्यानिवास
मिश्र के निबंधों की भी चर्चा की गई है। इस अंक का जो आकर्षण रहा है वह ‘प्रकृति
प्रेरित लोकगीत’ डॉ. हसमुख परमार और ‘वेलेंटाइन डे’ डॉ. पूर्वा शर्मा की रचना रही है। इसके साथ ही
इसमें भारतीय एवं भारतीयेतर भाषाओं की रचना को भी स्थान दिया गया है जो शब्द
सृष्टि को महत्वपूर्ण बनाता है।
‘शब्द
सृष्टि’ का सातवाँ अंक मार्च २०२१ में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की
शुभकामनाएँ देता हुआ और साहित्यिक विविधता
लिए हुए प्रकाशित हुआ। इसमें विचार स्तवक में गाँधी,
शरतचंद्र,
आंबेडकर,
विवेकानंद,
मैथिलीशरण गुप्त,
दिनकर तथा प्रेमचंद हैं जो सहित्य के आधार स्तंभ माने जाते हैं। उसमें भी आंबेडकर
जी तो संविधान रचयिता हैं जिनका नाम लेने मात्र से ही इस अंक की गरिमा बढ़ जाती है।
डॉ. दयाशंकर का आलेख ‘स्त्री पुरुष संबंध की पहेलियों को पढ़ने –समझने की जरूरत है’।
२१ वीं सदी और नारी- डॉ. सुरंगमा यादव तथा नारी हूँ मैं !
कविता –डॉ. पूर्वा शर्मा आदि की रचनाएँ विचारों की गंभीरता लिए हुए है। शेष रचनाकारों
में – डॉ. ज्योत्सना शर्मा,
सुदर्शन रत्नाकर,
डॉ. भावना ठक्कर,
ज्योत्सना प्रदीप,
रवि शर्मा,
डॉ. अनु मेहता आदि की रचनाएँ उच्च कोटी की हैं।
‘शब्द सृष्टि’ का अंक ८ मार्च २०२१ ‘बरसे प्रेम के रंग,
सजन के संग,
भिजे सब अंग’ पावन पर्व होली की शुभकामनाएँ देता हुआ सामने आया। यह अंक भी अन्य
अंकों की भाँति नवीनता लिए हुए है। विचार स्तवक में डॉ. एस. पी. उपाध्याय,
डॉ. मदन मोहन शर्मा,
डॉ. पूर्वा शर्मा,
शब्द संज्ञान – डॉ. हसमुख परमार,
आलेख –होली विषयक फिल्मी गीत –रवि शर्मा,
निबंध – होली- डॉ. अनिला मिश्रा,
फगुआ- डॉ. जेन्नी शबनम,
लघुकथा –अशोक भाटिया,
प्रेम की होली- प्रेमचंद आदि रचनाएँ व साहित्यिक सामग्री पठनीय एवं ज्ञानवर्धक है।
‘शब्द सृष्टि’ का अंक ९ अप्रैल २०२१ में अपनी
विविधता के साथ प्रकाशित हुआ। इसमें विचार
स्तवक,
शब्द संज्ञान, व्यंग्य,
हाइगा – डॉ. ज्योत्सना शर्मा,
संस्मरण – डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र,
मुक्तक –डॉ. पूर्वा शर्मा,
आलेख- आदिवासियों का संवेदनशील दस्तावेज़ : शालवानों का द्वीप – डॉ. मायाप्रकाश
पाण्डेय,
कविता सपने अनीता मंडा तथा ‘भोलाराम का जीव’ कहानी,
दक्षिण गुजरात की चौधरी बोली भाषा का प्रयोग क्षेत्र एवं लोकव्यवहार विमल चौधरी
तथा परिचय के अंतर्गत प्रो. पारुकांत
देसाई – डॉ. हसमुख परमार आदि की रचनाओं को इस अंक में समाहित किया गया है
जो इस अंक की उपलब्धि रही है।
दसवाँ अंक मई २०२१ में प्रकाशित हुआ। इस
अंक के रचनाकार – डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र,
संपत सरल,
ज्योत्सना प्रदीप,
डॉ. हसमुख परमार,
त्रिलोक सिंह ठकुरेला,
अनीता मंडा,
डॉ. भावना ठक्कर,
प्रीति अग्रवाल तथा डॉ. पूर्वा शर्मा आदि हैं जिन्होनें अपनी उत्कृष्ट रचनाओं,
विचारों को प्रस्तुत करके इस अंक की गरिमा को बनाए रखा है।
‘शब्द सृष्टि’ का अंक ११ जून- २०२१ में अंतरराष्ट्रीय
योग दिवस की शुभकामनाओं के साथ हम सबके समक्ष प्रस्तुत हुआ है। जिसमें आलेख- नाथ,
नाथ संप्रदाय और नाथ साहित्य- डॉ. हसमुख परमार,
योग का वास्तविक स्वरूप – डॉ. जयना पाठक,
प्राणायाम के मूल में निहित वैज्ञानिक सिद्धान्त एवं आधार –डॉ. कविता भट्ट,
जीवन में योग का व्यवहारिक महत्व – डॉ. आशा पथिक,
योग दर्शन में ध्यान – डॉ. ईशान आचार्य,
श्री अरविन्द का पूर्णयोग- डॉ. परम पाठक,
रोज़मर्रा के जीवन में योग का महत्व – मीता पटेल,
योग: स्वरूप एवं महत्व – डिंपल जे. राणा,
कोरोना काल में योग की भूमिका – डॉ. पूर्वा शर्मा,
योग का विज्ञान – डॉ. रूपल वसंत आदि के आलेख निश्चित रूप से महत्वपूर्ण और जीवन के
लिए उपयोगी हैं। कोरोना काल की महामारी
में तो योग अमृततुल्य बन गया है। इस अंक की शेष रचनाओं में लघुकथा,
कविता,
योगकथात्मक लोकगाथा तथा फोटो अलबम के अन्तर्गत योगासन को लिया गया है। यह अंक न
सिर्फ पठनीय है अपितु संग्रहणीय भी है।
‘शब्द सृष्टि’ का अंक १२ जुलाई २०२१ में प्रेमचंद की स्मृति में निकाला गया।
इसकी आधिकांश सामग्री मुंशी प्रेमचंद के जीवन एवं कृतित्व पर आधारित है। इसमें
प्रेमचन्द के विचार, प्रेमचंद
के पत्र जो उन्होंने जैनेन्द्र, उपेंद्रनाथ
अश्क को लिखे थे, प्रेमचंद
के संस्मरण जैनेन्द्र, बनारसीदास चतुर्वेदी,
महादेवी वर्मा के लिखे हुए हैं,
कलम
का सिपाही अमृतराय को प्रस्तुत करते हुए
प्रेमचंद की रचनाओं के कुछ अंश भी प्रस्तुत किए गए हैं जो निश्चित रूप से
सराहनीय कार्य है। इसके अतिरिक्त इस अंक के अन्य लेखकों में डॉ. दयाशंकर त्रिपाठी,
डॉ. हसमुख परमार, डॉ. मदन मोहन शर्मा,
डॉ. पूर्वा शर्मा,
डॉ. मायाप्रकाश पाण्डेय,
अनीता मंडा,
डॉ. गिरीश रोहित आदि लेखकों ने प्रेमचंद पर अपने विचार प्रस्तुत किए
हैं जिसके कारण इस अंक की गरिमा और अधिक बढ़ जाती है।
‘शब्द सृष्टि’ का अंक १३ अगस्त -२०२१ को प्रकाशित हुआ। इसके लेखक – डॉ. योगेन्द्रनाथ
मिश्र,
डॉ. पूर्वा शर्मा,
राजा दुबे,
विश्वंभरनाथ शर्मा ‘कौशिक’,डॉ.
सुरंगमा यादव,
ज्योत्सना प्रदीप,
अनीता मंडा,
सत्या शर्मा,
राजेन्द्र चन्द्रकान्त राय,
डॉ. हसमुख परमार आदि हैं जिन्होंने अपनी उत्कृष्ट रचनाएँ व आलेख प्रस्तुत किए हैं।
इसके साथ ही इस अंक में हिन्दी तथा गुजराती
के सुप्रसिद्ध कवियों की प्रसिद्ध रचनाएँ भी प्रस्तुत की गई हैं जो इस अंक
को महत्वपूर्ण बनाती हैं।
‘शब्द
सृष्टि’ का अंक- १४ अगस्त -२०२१ में प्रकाशित हुआ। यह अंक भी अन्य अंकों की भाँति
ही अपने आपमें नवीनता लिए हुए है। इसमे पं. गिरिधर शर्मा ‘नवरत्न’,
भवानीप्रसाद मिश्र,
धूमिल की कविताओं के साथ ही नए कवियों –त्रिलोकसिंह ठकुरेला,
डॉ. पूर्वा शर्मा,
अनीता मंडा, रचना
श्रीवास्तव,
अनिल वडगेरी आदि की कविताएं भी प्रस्तुत की गई हैं। आलेख के अन्तर्गत विश्व में
हिन्दी के बढ़ते चरण- डॉ. मनीष गोहील,
साहित्य और समाज – डॉ. हसमुख परमार,
सरहद के पार : हिन्दी हाइकुकार – डॉ. पूर्वा शर्मा,
आदि के महत्वपूर्ण लेख हैं। इसके साथ ही इस अंक में कहानी अनीता मंडा,मुक्तक-
प्रीति अग्रवाल,
डॉ. जयंतिलाल बी. बारिस
आदि ने अपनी प्रतिभा संपन्न रचनाओं को
प्रस्तुत किया है। परिचय के अन्तर्गत ‘गुजरात के मेघावी मेघाणी’ : जीवन और लेखन पर रजनी कुमार जयंतिभाई परमार ने अपने
विचार व्यक्त किए हैं। यह अंक अपने आप में पूर्णता लिए हुए है।
‘शब्द सृष्टि’ के अभी तक के सभी अंक
अपने आपमें विशेष हैं। कहीं पर भी साहित्यिक सामग्री का पुनरावर्तन नहीं हुआ है जो
पत्र-पत्रिकाओं में बहुत कम देखने को मिलता हैं। ‘शब्द सृष्टि’ में विचार स्तवक
एवं शब्द संज्ञान कॉलम जो इसे सबसे अलग पहचान दिलाते हैं। मैं ‘शब्द सृष्टि’ के
संपादक डॉ. पूर्वा शर्मा,
परामर्शक डॉ. हसमुख परमार तथा उनकी पूरी मण्ड्ली
की सराहना करता हूँ उनके इस असंभव कार्य को संभव बनाने के लिए । मैं अपनी ओर
से और पाठकों की ओर से पुनः डॉ. पूर्वा शर्मा तथा डॉ. हसमुख परमार और इनकी पूरी
टीम को धन्यवाद देता हूँ।
डॉ.
मायाप्रकाश पाण्डेय
हिन्दी
विभाग,
कला संकाय,
महाराजा
सयाजीराव विश्वविद्यालय,
बड़ौदा,
गुजरात
पाठक की कलम से - 2
डॉ. गिरीश रोहित
हिन्दी वेब पत्रिका (ब्लॉग) ‘शब्दसृष्टि’ अक्टूबर-2021 में अपना पहला वर्ष पूरा कर रही है। अब तक उसने
हमें निरंतर चौदह अंक उपलब्ध कराये हैं, जो अपने आपमें पठनीय व संग्रहणीय बने हुए
हैं। इसकी इस सक्रिय निरंतरता के पीछे ब्लॉगर डॉ. पूर्वा शर्मा व परामर्शक डॉ.
हसमुख परमारजी की साहित्यिक लगन व प्रतिबद्धता तथा सूझबूझयुक्त सुनियोजित
कार्यप्रणाली रही है। इस अवसर पर दोनों को मैं बहुत-बहुत हार्दिक बधाई के साथ
धन्यवाद देता हूँ।
‘शब्द-सृष्टि’ वेब पत्रिका अपने भीतर
विचार-स्तवक, शब्द-संज्ञान, कविता, हाइकु, हाइगा, व्यंग्य, कहानी, उपन्यास व जीवनी
अंश, गीत, पुस्तक - परिचय व समीक्षा, व्यक्ति - विशेष परिचय, आलेख व अनुवाद जैसे
विविध स्तंभों को संजोये हुई है। अब तक आये उसके चौदह अंकों में से आठ अंक तो
अच्छे-खासे पठनीय विशेषांक बने हुए हैं। उनमें गुजरात की हिन्दी वाणी, ज्योति-पर्व
(दिपावली) विशेष नववर्ष व विश्व हिन्दी दिवस विशेष, वसंत-विशेष, अन्तर्राष्ट्रीय
महिला-दिवस विशेष प्रेमचंद-स्मृति अंक व हिन्दी-दिवस विशेष आदि उल्लेखनीय रहे हैं।
इन विशेषांकों की उल्लेखनीय बात यह है कि उन सबके केन्द्र में हिन्दीभाषा व
साहित्य रहा है। पत्रिका के ब्लॉगर व परामर्शक ने पाठकों को अतीत व साम्प्रत
हिन्दी साहित्य से जोड़े रखने का सुंदर प्रयास किया है। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं
होगी कि प्रत्येक विशेषांक अपने आपमें एक सुंदर पुस्तक बनने की क्षमता व योग्यता
रखता है।
‘शब्द - सृष्टि’ का प्रत्येक स्तंभ विषयानुरूप
व प्रासंगिक रहा है, फिरभी पुस्तक-समीक्षा से लेकर समीक्षात्मक आलेख व
व्यक्ति-विशेष परिचय स्तंभ-लेखन अपने आप में मननीय व सराहनीय बने हुए हैं। ‘शब्द-सृष्टि’
का स्तंभ-लेखन विषय-वैविध्य की दृष्टि से भी ताजगीसभर व अत्यंत रसप्रद रहा है। या
कहिये कि ‘गागर में सागर’ भरने का काम करता है।
अंत में इसी शुभकामना के साथ कि ‘शब्द-सृष्टि’
पठनीय व स्तरीय सामग्री के साथ निरंतर प्रस्तुत होकर पाठक के हृदय में अपनी
अविस्मरणीय छवि अंकित करे.....।
डॉ. गिरीश रोहित
अध्यक्ष, हिन्दी विभाग
आर्ट्स-कॉमर्स-सायन्स कॉलेज
खंभात, जिला. आणंद (गुजरात)