रविवार, 31 अगस्त 2025

कविता

 


1.

वाह रे जिन्दगी....

शेर सिंह हुंकार

 

वाह रे जिन्दगी....

भरोसा तेरा एक पल का नही,

और नखरे हैं, मौत से ज्यादा।

 

जितना  मैं  चाहता, उतना ही  दूर तू जाती,

लम्हा लम्हा खत्म होकर तू खडी मुस्कुराती।

वाह रे जिन्दगी....

भरोसा तेरा एक पल का नही,

और नखरे हैं मौत से ज्यादा।

 

बाँध कर साँसों की डोरी, मैं खडा हो जाता,

पर रूकी है तू कहाँ कब,खींच कर ले जाती।

वाह रे जिन्दगी.....

भरोसा तेरा एक पल का नही,

और नखरे हैं मौत से ज्यादा।

 

जिन्दगी  के  पास  हो  करके , ये  मैनें जाना।

आज में जी ले न कल का,ठौर है ना ठिकाना।

वाह रे जिन्दगी.....

भरोसा तेरा एक पल का नहीं,

और नखरे हैं मौत से ज्यादा।

 

नाम जिसका था बहुत, वो भी तो जिन्दा न बचे।

खाक कर देंगे  जहाँ को, खाक में मिल खो गये।

वाह रे जिन्दगी.....

भरोसा तेरा एक पल का नही,

और नखरे हैं, मौत से ज्यादा।

 

पीर  पैगंबर बचे ना, मुल्ला काजी पादरी।

मिट गए ना जाने कितने,संत साधु आरसी।

वाह रे जिन्दगी.....

भरोसा तेरा एक पल का नही,

और  नखरे हैं मौत से ज्यादा।

 

तू भरोसा कितना भी दे, साथ तेरा ना रहा।

मौत ही है आखिरी, हुंकार जिससे ना बचा।

वाह रे जिन्दगी.....

भरोसा तेरा एक पल का नही,

और नखरे हैं, मौत से ज्यादा।

 ***


2. उर्मिला

हे मधुकर क्यों रसपान करे, तुम प्रिय प्रसून को ऐसे।

कहीं छोड के तो ना चल दोगे, तुम दशरथनन्दन जैसे।

 

हे खग  हे  मृग हे दशों  दिशा, हे  सूर्य  चन्द्र  हे  तारे,

नक्षत्रों  ने भी  ना  देखा, उर्मिला  से  भाग्य  अभागे।

 

वो जनक नन्दनी पावन थी, मिथिला की राजकुमारी।

निष्काम प्रेम की वह  देवी, लक्ष्मण के संग थी ब्याही।

 

जिसने ना कोई प्रतिकार किया, जो मिला उसे स्वीकार किया।

माँगा ना कभी अधिकार कोई, खुद से ही खुद वनवास लिया।

 

निःशब्द रही निष्काम रही, अच्छुण्य मगर सौभाग्य रही।

जिस पे ना कभी कुछ लिखा गया,दिन में भी जैसे रात रही।

 

चौदह वर्षों का था वियोग, चक्षु नीर भरे पर नहीं गिरे।

कुल के गौरव में बँधी हुई, मन मचल रहे पर नहीं डिगे।

 

उस पर बोलो मैंs क्या लिखूँ, हुंकार लिखूँ या हूंक लिखूँ।

मन शेर वेदना में लिपटी, संयोग का अमिट वियोग लिखूँ।

***

 

शेर सिंह हुंकार


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