एक
खाली प्लाट की करुण कहानी
प्रेम
नारायन तिवारी
बगल
का घर खूब सजा हुआ है। उसमें शहनाई बज रही है। उस घर की मालकिन की पोती की आज
बारात जो आ रही है। ऐसे खुशी के अवसर पर मुझे रोना सा आ रहा है। आप पूछेंगे कि “कौन
दुष्टात्मा हो तुम, जो इस शुभ अवसर पर उस खुशी
में खुशी मनाने की जगह रोना चाहती है। क्या यही एक पड़ोसी का धर्म है?”
“क्यों नहीं रोऊँ, क्या किसी दुखिया को रोने का हक
नहीं? वैसे मैं उसके सौभाग्य पर थोड़ी रो रही हूँ। मुझे तो
अपने दुर्भाग्य पर रोना आ रहा है।”
“आखिर तुम हो कौन मत पूछना। मैं खुद ब खुद अपना परिचय बता रही हूँ। मेरा
नाम प्रापर्टी है, वैसे कुछ लोग मुझे खाली प्लाट कहते हैं।
शादी वाला घर जिस प्लाट पर बना है वह और मैं एक ही खेत के टुकड़े हैं। आज से पचास
साल पहले हम बँटे थे। हमारा क्षेत्रफल और मूल्य एक बराबर रखा गया था। और तो जाने
दीजिये हम एक ही दिन बिके भी।”
“मुझे बखूबी याद है वह दिन जब हमारे खरीददार हमें देखने आये थे। शादी वाले
घर में जो आज दादी दादी कही जाती हैं एक वह थीं। तब बीस बाईस साल की उम्र थी इनकी,
गोद में दो तीन साल का लड़का। अपने पति के साथ यह बहुत खुश नजर आ
रहीं थीं। प्लाट इनको भा गया था। मेरी खरीददार भी उसी समय आई बिल्कुल अकेले।
अतिसुन्दर अविवाहित महिला, लड़की उसे हरगिज़ नहीं कहा जा
सकता। उम्र यही कोई अठाइस तीस साल की। दोनों खरीददारों मे हँस हँस कर हुई बात से
पता चला कि मेरी मालकिन इन्वेस्टमेंट के तौर पर मुझे खरीद रही हैं। जबकि दूसरे
प्लाट की मालकिन घर बनवाने के लिए।”
“प्लाटों के खरीदने मकान बनाने का सिलसिला जो शुरू हुआ तो चलता ही गया। कॉलोनी
के सभी प्लाटों पर मकान बन गये, मेरे जैसे कुछ अभागों को
छोड़कर। बगल के मकान का जिस दिन गृहप्रवेश था वह दिन बहुत ही सुन्दर था, पंडितों के मंत्र के साथ महिलाओं के मधुर कंठ में गाये जा रहे गीत मेरा मन
मोह रहे थे। तब मैं भी इसी तरह के गृहप्रवेश की कल्पना में खो गई थी। जब होश आया
तब गीत गाने खत्म हो गये थे और मेरे ऊपर जूठे पत्तल गिलास का ढेर लगा हुआ था।”
“उसके बाद तो अनगिनत शुभकार्य इस घर में हुए। वह गोदी का बच्चा बड़ा हुआ,
पढकर पास हुआ, उसकी नौकरी लगी। उसके विवाह की
तो पूछो मत, बाप रे एक सप्ताह तक कार्यक्रम चला। मैं तो जैसे
जूठे पत्तल, गिलास, पालीथीन आदि से ढँक-सा
गया। शायद मेरी किस्मत में यही लिखा है।”
“आप पूछेंगे आखिर तुम्हारी मालकिन का क्या हुआ जो तुम्हारी खोज खबर लेने
नहीं आई? तो बता दूँ कि जिसे अपनी फिक्र नहीं वह मेरी फिक्र
क्यों करेगा। उनका हालचाल मुझे बगल के मकान की मालकिन से मिलता रहा है। जब भी उनके
यहाँ आने वाला कोई मेहमान मेरे बारे मे पूछा है तो उनके बताये अनुसार मालकिन की
खोज खबर मुझे मिला है। उसके अनुसार मालकिन की कहानी यूँ है।”
“मालकिन बहुत पढी लिखी अकेली कामकाजी महिला रही हैं। बहुत ऊँचा पद, बहुत
मोटा वेतन, शादी नामक बंधन से अत्यंत घृणा। जवानी के दिन दो
एक लोगों के साथ लिव इन मे रहीं। एक एक दिन करके उनकी उम्र और मेरा मूल्य बढता
गया। आज वह अकेले बीमार तनहाई मे हैं तो मैं उनकी करोड़ों की प्रापर्टी के रूप मे
हूँ। सुना हूँ मुझसे खराब हालत उनकी है, रूपया पैसा, प्लाट सबकुछ है मगर कहने को कोई अपना नहीं है।”
“कहाँ चल दिए मेरी कहानी सुनकर! रुको ना क्या मेरे दुखी होने का कारण नहीं
जानना चाहोगे? ठीक है मत सुनो कल आकर देख लेना मेरे ऊपर जूठे
पत्तल का एक और परत जमा हुआ दिख जायेगा।उससे मेरा मूल्य कुछ लाख और बढ जायेगा।”
प्रेम
नारायन तिवारी
रुद्रपुर, देवरिया
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