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तुलसीदास का काव्य
भावुकता व पांडित्य, दोनों के पूर्ण समन्वय वाला कवि-व्यक्तित्व गोस्वामी
तुलसीदास । तुलसीदास की रचना शैली तथा उनके काव्य में विषय विस्तार व विषय-वैविध्य
को लेकर रामचंद्र शुक्ल लिखते हैं- “हिन्दी काव्य की सब प्रकार की रचनाशैली के ऊपर
गोस्वामी जी ने अपना ऊँचा आसन प्रतिष्ठित किया है । यह उच्चता और किसी को प्राप्त
नहीं ।”.... भारतीय जनता का प्रतिनिधि कवि
यदि किसी को कह सकते हैं तो इन्हीं महानुभाव को । और कवि जीवन का कोई एक पक्ष लेकर
चले हैं- जैसे वीरकाल के कवि उत्साह को, भक्तिकाल के दूसरे कवि प्रेम और ज्ञान को;
अलंकार काल के कवि दांपत्य प्रणय या शृंगार को । पर इनकी
वाणी की पहुँच मनुष्य के सारे भावों और व्यवहारों तक है । एक ओर तो वह व्यक्तिगत
साधना के मार्ग में विरागपूर्ण शुद्ध भगवदभक्ति का उपदेश करती है,
दूसरी ओर लोकपक्ष में आकर पारिवारिक और सामाजिक कर्तव्यों
का सौंदर्य दिखाकर मुग्ध करती है । व्यक्तिगत साधना के साथ ही साथ लोकधर्म की
अत्यंत उज्ज्वल छटा उनमें वर्तमान है ।”
तुलसीदास का काव्य मतलब भारतीय साहित्य की अमूल्य निधि ।
उनका ‘रामचरितमानस’ ग्रंथ तो भारतीय धर्म, दर्शन, भक्ति, लोक, संस्कृति को लेकर भारतीय साहित्य का शीर्षस्थ ग्रंथ है ।
शिवमंगलसिंह सुमन ने तो यहाँ तक कहा कि यदि किन्हीं कारणों से हिन्दुओं के तमाम
धर्मग्रंथ नष्ट हो जायें, लेकिन यदि ‘मानस’ बच जाय तो हिन्दु धर्म पुनः पल्लवित हो
सकता है ।
वैसे तो तुलसीदास के काव्य में लगभग सभी रसों का परिपाक
मिलता है फिर भी प्रमुख या अंगीरस तो शांत रस ही है । आखिर मर्यादा पुरुषोत्तम राम
के परम भक्त जो ठहरे !
‘पायो परम विश्राम राम समान हित नाही कहूँ’
तुलसीदास की चर्चा के इस प्रसंग में हम यहाँ एक और जानकारी
देना चाहेंगे, जो हमें कुछ समय पूर्व सोशल मीडिया के मंच से प्राप्त हुई - डॉ. सुनीता वर्मा,
बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी का एक ग्रंथ ‘आयुर्वेद मर्मज्ञ गोस्वामी तुलसीदास’
शीर्षक से प्रकाशित हुआ । इस ग्रंथ में
लेखिका ने एक अलग दृष्टि से तुलसीकाव्य का अध्ययन करते हुए उनके साहित्य में
निरूपित कुछ आयुर्वेद से संबंधी संदर्भों को प्रस्तुत किया है । इस ग्रंथ में
तुलसीदास द्वारा आयुर्वेद की अवधारणा, तुलसी साहित्य में स्वास्थ्य संबंधी वर्णन,
विविध रोग तथा उसके इलाज हेतु उपचार एवं औषधियाँ,
वैद्य एवं चिकित्सा संबंधी विचार,
विविध वनस्पतियाँ जैसे मुद्दों की सोदाहरण चर्चा है ।
प्रस्तुत ग्रंथ के बारे में प्रो.पुनीत बिसारीया का मत है- “ स्पष्ट है कि
डॉ.सुनीता जी का समीक्षा ग्रंथ गोस्वामी जी के साहित्य में आयुर्वेद चिंतन जैसे
नवीन एवं प्रासंगिक विषय को विकसित, विश्लेषित एवं
उद्घाटित करने में पूर्णतः सफल रहा है । ”
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