रविवार, 29 अक्तूबर 2023

कविता

 


आह्वान

मालिनी त्रिवेदी पाठक

 

आओ माँ का करें आह्वान!

जागृत हो नई चेतना

घर-घर गूँजे शक्ति पर्व

हो प्रकाशित ज्योत जागरण

नगर-नगर घर द्वार में।

 

एक नन्हा-सा दीप जला कर

बन जाएँ हम रात के प्रहरी।

प्रभात आने तक जल जल कर

करें प्रज्वलित  हर घर-देहरी।

टिमटिम तारक  पुष्प बिछाएँ

सविता के सत्कार में।

 

हों स्थापित देवी प्रतिमाएँ

नगर-नगर हर गाँव में।

जन-जन हों पुलकित उत्साहित

माँ के आँचल की छाँव में।

मैं भी एक प्रतिमा रख लूँ,

भीतर हृदय पंडाल में।

 

हे दुर्गा! हे दुर्बुद्धि नाशिनी!

दानव दल का नाश करो।

हे जगत जननी! विश्व वन्दिनी!

त्रिविध ताप दुख त्रास हरो।

शक्ति, शौर्य, साहस, सद्गुण

संचार करो संसार में।

 

वसुधा के अंतर की ज्वाला

धधक-धधक कर कहती है

जगह-जगह महिषासुर जीवित,

क्यों नारियाँ सह रही?

हो माँ की प्रतिकृति हर बाला

खड़ग शस्त्र हो हाथ में।

 

सुन्दर शब्द सुमन चुन-चुन कर

सरस भाव स्तुति बुन-बुन कर

मातृ चरित्र शौर्य  के  गाकर

करें जीवन लक्ष्य साधना

 माँ तेरे ही संधान में।

 

हे महाशक्ति! हे जगदंबा!

विनती सुन लो हे माँ अंबा!

आशाओं के दीप जला कर

करुणा का निर्झर नीर बहा कर

रोग-शोक को दूर करो माँ

कलियुग विषम  काल में।

    


   मालिनी  त्रिवेदी पाठक

वड़ोदरा

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