रविवार, 29 अक्तूबर 2023

सामयिक दोहे

 



रक्तपात से कब मिटी,  रक्तपान की प्यास

डॉ. ऋषभदेव शर्मा

1

सुनो, राधिके, जब तलक, रही असुरता जीत।

तब तक वर्जित हैं मुझे, वृंदावन के गीत।। 

2

जो चुप रहकर देखते, बिना किए प्रतिकार।

शीलहरण के पाप में, वे भी भागीदार ।। 

3

जिनके भी माथे चढ़ा, यहाँ युद्ध उन्माद।

उनके कानों ने सुना, कहाँ शांति संवाद ।। 

4

चीख-चीख कर पूछता, युद्धों का इतिहास।

रक्तपात से कब मिटी,  रक्तपान की प्यास ।। 

5

शत्रु पक्ष की औरतें, बनीं गिद्ध का ग्रास।

उनको ही सहना पड़ा, सदा युद्ध का त्रास ।। 

6

सत्ता की उस भूख को, बार-बार धिक्कार।

जो बच्चों से छीन ले, जीने का अधिकार ।। 

7

बदले की इस आग में, जली मनुजता आप।

उधर क्रोध तांडव करे, करुणा इधर विलाप ।। 

8

हिंसा से, दुष्कर्म से, मिटी प्रीत की रीत।

बंदूकों को कब रुचे, काव्य, कला, संगीत ।। 


डॉ. ऋषभदेव शर्मा

सेवा निवृत्त प्रोफ़ेसर

दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा

हैदराबाद


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