रक्तपात से कब मिटी, रक्तपान की प्यास
डॉ. ऋषभदेव शर्मा
1
सुनो, राधिके, जब तलक, रही असुरता जीत।
तब तक वर्जित हैं मुझे, वृंदावन के गीत।।
2
जो चुप रहकर देखते, बिना किए प्रतिकार।
शीलहरण के पाप में, वे भी भागीदार ।।
3
जिनके भी माथे चढ़ा, यहाँ युद्ध उन्माद।
उनके कानों ने सुना, कहाँ शांति संवाद ।।
4
चीख-चीख कर पूछता, युद्धों का इतिहास।
रक्तपात से कब मिटी, रक्तपान
की प्यास ।।
5
शत्रु पक्ष की औरतें, बनीं गिद्ध का ग्रास।
उनको ही सहना पड़ा, सदा युद्ध का त्रास ।।
6
सत्ता की उस भूख को, बार-बार धिक्कार।
जो बच्चों से छीन ले, जीने का अधिकार ।।
7
बदले की इस आग में, जली मनुजता आप।
उधर क्रोध तांडव करे, करुणा इधर विलाप ।।
8
हिंसा से, दुष्कर्म से, मिटी प्रीत की रीत।
बंदूकों को कब रुचे, काव्य, कला, संगीत ।।
डॉ. ऋषभदेव शर्मा
सेवा निवृत्त प्रोफ़ेसर
दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा
हैदराबाद
बहुत सुंदर व भावपूर्ण दोहे!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर दोहे। सुदर्शन रत्नाकर
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