मकर संक्रांति
डॉ.
पूर्वा शर्मा
1.
पतंग-सी मैं
पवन बन तुम
सहलाओ ना ।
2.
उड़ ही चली
जब बनके डोर
तुझसे जुड़ी ।
3.
लहरा रही
सुख-दुःख पतंग
प्रत्येक छत ।
4.
उम्मीद-माँझा
ख्वाहिशों की पतंग
जीवन यही ।
5.
डोर ना उड़े
पतंग के प्यार में
खींचती चले ।
6.
दुःख का माँझा
सुख की हवा चली
पतंग उड़ी ।
डॉ.
पूर्वा शर्मा
वड़ोदरा
Bahut khoob 👏👌👌
जवाब देंहटाएं👌🏻👌🏻👌🏻👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻😊
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंपतंग के माध्यम से सरस एवं दार्शनिक भाव के सुंदर हाइकु।बधाई पूर्वा जी।
जवाब देंहटाएंDidi... Bahot hi sundar likha hai aapne. Bahot inspire karte ho aap.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर, हार्दिक बधाई शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया... हार्दिक बधाई!
जवाब देंहटाएंपतंग पर सुंदर रचनाओं को पढ़कर मन आनंदित हो गया ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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