सुनो
ट्रंप जी : इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं!
डॉ.
ऋषभदेव शर्मा
अमेरिकी
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 6 अगस्त, 2025 को भारत पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ की घोषणा
करके वैश्विक व्यापार और कूटनीति में नया तनाव पैदा कर दिया है। यह बढ़ोतरी पहले से
लागू 25 प्रतिशत टैरिफ के अतिरिक्त है। ट्रंप महोदय का कहना है कि उन्होंने यह कदम
भारत के रूस से कच्चे तेल और सैन्य उपकरणों की खरीद के जवाब में उठाया है। लगता है,
वे हर उस देश को दंडित करने पर तुले हैं, जो
उनकी सनकभरी नीतियों का आँख मूँदकर समर्थन करने से इनकार करे। लेकिन भारत दृढ़ता
किंतु शालीनता से उन्हें यह जता चुका है कि भारत राष्ट्रीय हितों से समझौता करने
और झुकने को तैयार नहीं। यह शायद केवल संयोग नहीं कि अतिरिक्त टैरिफ की इस घोषणा
के वक़्त भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल रूस की यात्रा पर
थे। यह भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और कूटनीतिक संतुलन को रेखांकित करता है और
अमेरिका को याद दिलाता है कि, ‘इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ
नाहीं!’
ग़ौरतलब
है कि अमेरिका, और ख़ासकर राष्ट्रपति ट्रंप न तो कभी
विश्वसनीय दोस्त थे और न हो सकते हैं। इसलिए भारत उन्हें कूटनैतिक संकेत दे चुका
है कि उनकी ख़ातिर वह अपने परखे हुए दोस्त रूस की बलि नहीं दे सकता। (इनकार नहीं कि
इससे भविष्य में ‘क्वाड’ अप्रासंगिक हो सकता है!) भले ही ट्रंप अब यह साबित करने
पर तुले हों कि भारत का रूस के साथ व्यापार बढ़ाना रूस-यूक्रेन युद्ध में रूस की
आर्थिक मदद करना है। इसी को कहते हैं उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे। पूरी दुनिया
जानती है कि यूक्रेन की पीठ पर अमेरिका का हाथ है। लेकिन चूँकि शांति का मसीहा
बनने के ट्रंप के सारे पैंतरों को रूस ने व्यर्थ कर दिया है, तो ट्रंप भारत की बाँह मरोड़कर खीझ निकाल रहे हैं। डोभाल की मास्को यात्रा
(जो पहले से निर्धारित थी) इस संदर्भ में
और महत्वपूर्ण हो गई है, क्योंकि यह भारत-रूस रक्षा सहयोग और
ऊर्जा आपूर्ति पर केंद्रित है। यह यात्रा भारत की स्वतंत्र नीति का संदेश देती है,
जो किसी एक ध्रुवीय गठबंधन में विश्वास नहीं करती।
ट्रंप
का दावा है कि भारत अमेरिकी सामानों पर ‘दुनिया में सबसे ऊँचा’ टैरिफ लगाता है,
जिससे व्यापार असंतुलन पैदा होता है। उन्हें इस बात से कोई फ़र्क़
नहीं पड़ता कि यह दावा तथ्यों से मेल नहीं खाता। भारत के विदेश मंत्रालय ने ट्रंप
के आरोपों को ‘अनुचित’ बताते हुए कहा भी है कि भारत का रूस से तेल आयात राष्ट्रीय
हितों और उपभोक्ता जरूरतों के लिए अनिवार्य है, और खुद अमेरिका सहित कई पश्चिमी देश भी रूस के साथ
व्यापार कर रहे हैं। इसके बावजूद ट्रंप बड़े ‘सम्मान’ के साथ झूठ पर झूठ बोले जा
रहे हैं। मानो ‘झूठ’ ही नई विश्व व्यवस्था का बीज बनने जा रहा हो!
अंततः
यह दोहराना ज़रूरी है कि भारत पर दोहरा टैरिफ ठोकने का ट्रंप महोदय का फैसला अनुचित,
अन्यायपूर्ण और अतार्किक तो है ही, कालांतर
में ख़ुद अमेरिका के लिए आत्मघाती भी साबित हो सकता है। रही बात भारत की तो यक़ीनन
डोभाल की मॉस्को यात्रा से रूस के साथ भारत की रणनीतिक साझेदारी को और बल मिलेगा,
जो अमेरिकी दबाव के खिलाफ संतुलन बनाए रखेगा। भारत को विश्व व्यापार
संगठन (डब्ल्यूटीओ) में टैरिफ के इस मुद्दे को उठाना चाहिए और अमेरिका के साथ
द्विपक्षीय व्यापार वार्ता को तेज करना चाहिए। साथ ही, आत्मनिर्भरता
पर जोर देते हुए यूरोप और जापान जैसे वैकल्पिक बाजारों पर ध्यान देना होगा। हम
किसी भी स्वयंभू वैश्विक चौधरी की कठपुतली नहीं बन सकते, क्योंकि
हमारे लिए हमारे अपने आर्थिक और
सामरिक हित सर्वोपरि हैं।
डॉ.
ऋषभदेव शर्मा
सेवा
निवृत्त प्रोफ़ेसर
दक्षिण
भारत हिन्दी प्रचार सभा
हैदराबाद
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें