शुक्रवार, 27 जून 2025

कविता

सूर्यनारायण गुप्त ‘सूर्य’

 

 1.

  विवशता

 

किसी के -

स्नेह का मैं जब-जब आकांक्षी रहा

तब-तब -

मुझे तिरस्कार की भेंट मिली

प्यार से-

जब भी नमन करने का प्रयास किया

नफरत की धुंध मेरी आस्मिता को निगल गई

धोखे की लौ में विश्वास झुलसता रहा!

पर / मैं-

सदैव मौन रहा!!

क्यों कि-

मौन भी अभिव्यक्ति का ही एक रूप है  !

और-

जिंदगी भी तो कुछ और नहीं है

मात्र - थोड़ी छाया

और - थोडी धूप है।!

 

 2.

जीवन की त्रासदी

 

मन -

कितना आकुल है!

हर पल-

यह व्याकुल है!!

दर्द की धुंध कितनी घनी है

और-

रोशनी की नीयत भी अनमनी है कैसे करे जीवन का सफर ?

पग-पग पर फूल नहीं -

नागफनी है।!

 


सूर्यनारायण गुप्त ‘सूर्य’ 

ग्राम व पोस्ट - पथरहट (गौरीबाजार)

जिला‌‌ -  देवरिया(उ.प्र.)274202



1 टिप्पणी: