बुधवार, 30 अक्तूबर 2024

खण्ड-3

 


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व्यवहारविदे’ की दृष्टि से उपन्यास साहित्य

भारतीय काव्यशास्त्र में ‘काव्यप्रयोजन’ की चर्चा के  क्रम में आचार्य मम्मट का मत सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण रहा है । आचार्य मम्मट ने अपने ग्रंथ ‘काव्यप्रकाश’ में काव्यप्रयोजनों की व्यवस्थित व वैज्ञानिक चर्चा की है-

काव्यं यशसेङर्थकृते व्यवहारविदे शिवेतरेक्षतये ।

सद्यः परिनिवृतये कांतासंमितयोपदेशयुजे ।।”

इस श्लोक में काव्य अर्थात् साहित्य के प्रमुख छः प्रयोजन बताए गए हैं । इन छः प्रयोजनों में से सिर्फ एक ‘व्यवहारविदे’ ( व्यवहार जानने-समझने के लिए / व्यवहार ज्ञान के लिए ) की दृष्टि से यहाँ हम थोड़ी चर्चा कर रहे हैं ।

वैसे यह प्रयोजन लेखक/कवि-पाठक दोनों के लिए है । उपन्यास के तत्वों में एक परिवेश या वातावरण है । श्रेष्ठ उपन्यास की रचना उसके यथार्थ-परिवेश निर्माण पर आधारित है । उपन्यास में जिस समाज का वर्णन किया जाता है उसके लोक-व्यवहार, रीति-रिवाजों, मान्यताओं, विश्वासों-अंधविश्वासों के यथार्थ चित्रण के लिए लेखक को स्वयं जद्दोजहद करनी पड़ती है । उपन्यास की एक परिभाषा है- “ A Novel is in its brodest definition a Personal, a direct impression of life’- उपन्यास में लेखक समाज का जो अनुभव निरूपित करता है वह प्रत्यक्ष और वैयक्तिक होता है । पढ़ा हुआ या सुना-सुनाया हुआ नहीं । ऐसा कहा जाता है कि ‘सागर, लहरें और मनुष्य’(उदयशंकर भट्ट) लिखने से पूर्व उसका लेखक मुंबई के मछुआरों की बरसोवा बस्ती में कुछ समय जाकर रहे थे । देशकाल या परिवेश के यथार्थ निर्माण के  लिए लेखक को कई बार अनुसंधान की प्रक्रिया से गुजरता पड़ता है । ‘मादाम बोवरी’ का लेखक अपने मित्र की श्मशान यात्रा में जाते समय भी सोचता है कि शायद मुझे मेरी ‘बोवरी’ के लिए कुछ मिला जाय । प्रसिद्ध एतिहासिक उपन्यासकार वृंदावनलाल वर्मा लिखने से पूर्व अपने विषय के संबंध में खूब छान-बीन करते थे । इस प्रकार उपन्यास लेखन में स्वयं लेखक का व्यवहार ज्ञान तो पक्का होता ही है, परंतु पाठक भी उससे लाभान्वित होता है । झवेरचंद मेघाणी के उपन्यास में हम कठियावाड ( सौराष्ट्र), पन्नालाल पटेल के उपन्यासों में उत्तर गुजरात, नागार्जुन-रेणु के उपन्यासों में बिहार, बंकिम-शरद-टैगोर आदि के उपन्यासों में बंगाल, प्रेमचंद के उपन्यासों में उत्तरप्रदेश , राजेन्द्र अवस्थी ( ‘जंगल के फूल’ के लेखक) से आदिवासी समाज, प्रभा खेतान से मारवाडी समाज की पहचान, मैत्रेयी पुष्पा से बुंदेलखंड का ग्रामीण समाज, राही मासूम रजा, शानी, असगर वजाहत, मेहरून्निसा परवेज, नासिरा शर्मा आदि के उपन्यासों में मुस्लिम समाज के रीति-रिवाज और उनकी बारीकियों को बाकायदा समझ सकते हैं । इस प्रकार उपन्यास एक छोटा-सा जेबी थियेटर भी है ।  

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