वर्ष 2024 के संदर्भ में - 01, 10, 14, 22 और 26 जनवरी, जनवरी मास की इन पाँच तारीखों में से 22 जनवरी का दिन छोड़कर शेष चारों दिवस [क्रमश: नव वर्ष,
विश्व हिन्दी दिवस, मकर संक्रांति, गणतंत्र दिवस] अपने विशेष महत्त्व के लिहाज़ से सिर्फ वर्ष 2024 में ही नहीं बल्कि पिछले कई वर्षों से,
कई दशकों से हर वर्ष इनका पुनरावर्तन होता है। हाँ,
इन तिथियों-तारीखों को बड़े पर्वोत्सव के रूप में मनाने का
हमारा उत्साह तथा हमारी ऊर्जा, हर वर्ष नवल रूप में व्यक्त होती है। 22 जनवरी, 2024 यानी, एक अति गौरवशाली ऐतिहासिक दिवस, जब एक दीर्घावधि के बाद,
कई सदियों के बाद, हर भारतीय के संघर्ष व कईयों के बलिदान के पश्चात् प्रभु
राम जन्मभूमि अयोध्या में पुनःनिर्मित-नवनिर्मित राममंदिर में राम लला की प्राण
प्रतिष्ठा हुई, अत:
आने वाले समय में यह 22 जनवरी का दिन सिर्फ कैलेण्डर में ही नहीं बल्कि जन-जन के
मन में पूर्ण आस्था भक्ति व श्रद्धा से पूरित उत्साह के साथ अंकित होगा,
सदा-सदा के लिए स्मरणीय रहेगा।
1 जनवरी को, ‘आगत का स्वागत है’ के भाव से वर्ष 2023 को अलविदा कहकर हमने वर्ष 2024 की आगमन बेला में, अति आनंदकर पलों में नव वर्ष का स्वागत किया। साथ में,
इस अवसर पर हिन्दी के ख्यातनाम कवि वंदनीय सोहनलाल द्विवेरी
की प्रसंगानुकूल इन पंक्तियों को भी पढ़ा-गुना और खूब गुनगुनाया –
स्वागत ! जीवन के नवल
वर्ष
आओ, नूतन-निर्माण
लिये,
इस महा जागरण के युग
में
जाग्रत जीवन अभिमान
लिये ।
दीनों दुखियों का
त्राण लिये
मानवता का कल्याण
लिये
स्वागत! नवयुग के नवल
वर्ष ।
तुम आओ स्वर्ण-विहान
लिये।
***
मुर्दा शरीर में नये
प्राण
प्राणों में नव अरमान
लिये,
स्वागत! स्वागत! मेरे
आगत!
तुम आओ स्वर्ण विहान
लिये ।
युग युग तक पिसते
आये
कृषकों को जीवन-दान
लिये
कंकाल-मात्र रह गये
शेष
मजदूरों का नव प्राण
लिये ।
***
जीवन में नूतन
क्रान्ति
क्रान्ति में नये-नये
बलिदान लिये,
स्वागत! जीवन के नवल
वर्ष
आओ,
तुम स्वर्ण विहान लिये !
[सोहनलाल द्विवेदी]
हमारे विचार से यह कहना अनुचित नहीं हैं कि मनुष्य की बुनियादी
जरूरतों में से एक जरूरत भाषा भी है, चाहे वह भाषा मातृभाषा हो, राष्ट्रभाषा हो, रोजगार की भाषा हो या फिर शिक्षा की माध्यम भाषा। इस दृष्टि
से किसी भाषा विशेष की गौरव-गरिमा, अस्मिता व महत्त्व को किसी दिवस या तिथि विशेष तक ही
मर्यादित करना वैसे तो ठीक नहीं; बावजूद इसके यदि किसी भाषा का कोई खास संदर्भ किसी दिवस से जुड़ा
है तो उस दिवस विशेष की महिमा उस भाषा को लेकर अन्य तिथियों से कुछ अलग ही होती है।
10 जनवरी, यानी हिन्दी भाषा के साहित्य व साहित्येतर क्षेत्रों में
प्रयोग को लेकर इसकी वैश्विक व्याप्ति को देखने-सुनने व इस पर विचार विमर्श करने
का दिन। भारत एवं भारतेतर देशों में असंख्य अकादमिक मंचों से हिन्दी की शिक्षा,
विश्व मंच पर हिन्दी साहित्य की एक विशेष पहचान,
हिन्दी के प्रवासी साहित्य में निरंतर इजाफ़ा,
भूमंडलीकरण -वैश्वीकरण के दौर में हिन्दी का भी व्याप,
हिन्दी के संवर्द्धन में भारतीय एवं विदेशी तथा हिन्दी व
अहिंदी भाषी विद्वानों का महत्त्वपूर्ण अवदान, भारत के बाहर लिखे गए – लिखे जा रहे
साहित्य में भारतीयता ऐसे अनेक बिंदु-मुद्दे हो सकते हैं,
जिस पर इस खास दिवस पर लंबी चर्चा हो सकती है।
हम जानते हैं कि 14 जनवरी को मनाया जाने वाले ‘मकर संक्रांति’
पर्व के साथ एकाधिक संदर्भ जुड़े हैं। प्रकृति का वैशिष्ट्य,
पौराणिक कथा, खगोलशास्त्र इत्यादि संदर्भों के अंतर्गत ‘मकर संक्रांति’
पर बात होती है। जिस दिन सूर्य धनु से मकर राशि में प्रवेश करता है तब ‘मकर
संक्रांति’ का
पर्व मनाया जाता है।
सूर्य ‘उत्तरायण’ में ज्यों आया –
लहराती पतंगों का
कुनबा
आसमान पे छाया...
मकर संक्रांति के
अनेक नाम –
बिहू,
खिचड़ी, माघी संगरांद
जन हैं करते तिल,
खिचड़ी दान।
[डॉ. पूर्वा शर्मा]
इस उत्सव को लेकार कुछ हाइकु भी देखिए –
लहरा रही
सुख-दुःख पतंग
प्रत्येक छत ।
·
उम्मीद-माँझा
ख्वाहिशों की पतंग
जीवन यही ।
·
दुःख का माँझा
सुख की हवा चली
पतंग उड़ी ।
·
हालात-भट्टी
तिल-तिल है जला
जीवन-तिल ।
·
धनु को छोड़
चल दिया है सूर्य
उत्तरायण।
[डॉ.
पूर्वा शर्मा]
********
हरि अनंत हरि कथा
अनंता।
कहहिं सुनहिं बहुबिधि
सब संता ।
रामचंद्र के चरित
सुहाए ।
कलप कोटि लगि माहिं न
गाए ।।
[गोस्वामी तुलसीदास]
राम तुम्हारा चरित
स्वयं ही काव्य है,
कोई कवि बन जाए सहज
सम्भाव्य है।
[मैथिलीशरण गुप्त]
लगभग 500 वर्षों की लम्बी प्रतिक्षा एवं कड़े संघर्ष के बाद
भारतभूमि के कणकण में, भारतीयों के घट-घट में विराजमान प्रभु श्रीराम पुनः अपनी जन्मभूमि-मातृभूमि –
“जम्बु द्वीपे, भरत खंडे, आर्यवर्ते, भारत वर्षे,
इक नगरी है विख्यात अयोध्या नाम की
यही जन्मभूमि है, परम पूज्य श्री राम की”
– में नवनिर्मित भव्य मंदिर में विराजमान हुए। और देश दुनिया के हर रामभक्त को
जिस घडी का इंतजार था वह ऐतिहासिक दिन 22 जनवरी 2024 । अंततः तो ‘रामो राजमणि सदा
विजयते।’
सर्वविदित है कि 26 जनवरी, 1950 से
हमारे राष्ट्र में हर वर्ष 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाने की परंपरा का
प्रारंभ हुआ। मूल संदर्भ ‘संविधान’ का है। हम जानते ही हैं कि 26 नवम्बर, 1949 को ‘भारतीय संविधान’
तैयार हुआ जो विश्व का सबसे बड़ा लिखित रूप का संविधान है। 26 नवम्बर, संविधान दिवस और भारत के एक सार्वभौम, गणतंत्र राष्ट्र होने
की घोषणा के साथ यह संविधान 26 जनवरी, 1950 से लागू हुआ। 26 जनवरी – यानी हमारा गणतंत्र दिवस,
गणतंत्र से मतलब सामान्य व्यक्ति,
सामान्य नागरिक का तंत्र । राजतंत्र से लोकतंत्र का होना
बहुत ही बड़ी बात है। हम और हमारा देश किस रूप में गणतंत्र है?
इस पर जब विचार करते हैं तो हम देखते हैं कि गणतंत्र होने
की बुनियादी शर्तें, तात्विक और मूल्यपरक दोनों तरह से, मूल्यपरक में कुछ बातें जरूर विचारणीय हैं, बावजूद इसके
हमारे यहाँ पूरी तरह से गणतंत्र है।
26 जनवरी, 2024 के गुजराती दैनिक ‘संदेश’ के ‘प्रजासत्ताक पर्व विशेष’ अंक में आज की जनरेशन को हमारे संविधान के बारे में कतिपय
महत्वपूर्ण तथ्यों से अवगत कराता मैत्री दवे का आलेख वाकई में बहुत ही ज्ञानवर्धक
जानकारीपूर्ण था, इसी आलेख से कुछ बातें हम साभार यहाँ रेखांकित कर रहे हैं –
• दो वर्ष, ग्यारह महीने और अठारह दिनों की मेहनत,
अति बौद्धिक व्यायाम के बाद २६ नवम्बर,
1949 को भारतीय संविधान तैयार हुआ।
• 26 जनवरी, 1950 को यह संविधान लागू हुआ।
• 26 नवम्बर, 1949 को भारतीय संविधान का लेखन पूर्ण हुआ और संविधान निर्माण
में डॉ. बाबा साहब आंबेडकर की विशेष भूमिका को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2015 में 26 नवम्बर को बाबासाहब आंबेडकर की 125वीं जन्म जयंती के निमित्त यह दिवस संविधान दिवस के रूप में
घोषित हुआ ।
• भारतीय संविधान को BAG OF BORROWINGS भी कहा जाता है।
• भारतीय संविधान टाइप या मुद्रित रूप में नहीं पर
हस्तलिखित और जिसे लिखने का श्रेय प्रेम बिहारी नारायण रायजादा को है।
• संविधान की हस्तलिखित प्रतियों को
हमारे संसद के पुस्तकालय में रखा गया है।
• हमारा संविधान 25 भाग, 448 अनुच्छेद और 12 सूची। संविधान के मूल रूप में 395 अनुच्छेद और 22 भाग । वर्तमान रूप में 448 अनुच्छेद और 25 भाग हैं।
• हिन्दी और अंग्रेजी यानी दो भाषाओं में हमारा संविधान लिखा
हुआ है।
भारतीय गणतंत्र दिवस, हर भारतीय के गौरव-गरिमा का द्योतक। इस पावन पर्व को मनाना
एक सुखद अनुभूति है। हमारी राष्ट्रीय भावना के विकास का यह पर्व है। राष्ट्रीय
मूल्यों का निर्वाह, राष्ट्रीय अस्मिता को बनाये रखने, राष्ट्र की प्रगति में अपनी भूमिका का बोध,
सामाजिक-सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रखने,
देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले शहीदों तथा हमारे
अधिकारों के लिए जीवन भर संघर्षरत रहे महापुरुषों के स्मरण से ही हम हमारे इस
राष्ट्रीय त्यौहार की सार्थकता व सफलता को बनाये रख सकते हैं।
‘शब्द दृष्टि’ का 43वाँ अंक आप सभी सुधी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है। पूर्ववत् अंकों की तरह ही
प्रस्तुत अंक में भी हमने इसके विविध स्तंभों के अंतर्गत वैविध्यपूर्ण सामग्री
देने का प्रयास किया है। ख्यातनाम भाषावैज्ञानिक व वैयाकरण डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र
तथा प्रसिद्ध कवि-लेखक-चिंतक-समीक्षक डॉ. ऋषभदेव शर्मा की लेखनी लगभग ‘शब्द
सृष्टि’ की यात्रा के प्रस्थान से ही बहुत ही सहयोगी रही है। प्रो. पुनीत बिसारिया
के ज्ञान व उनकी शोधपरक-समीक्षात्मक सुलझी दृष्टि से भी‘शब्द सृष्टि’ लाभान्वित होती
रही है। शोधार्थियों के लिए बहुत ही उपयोगी पुस्तक ‘शोध कैसे करें’ [पुनीत बिसारिया]
की बुंदेलखंडी युवा लेखक किसान गिरजाशंकर कुशवाहा द्वारा लिखी गई समीक्षा को ‘पुस्तक
समीक्षा’ स्तंभ में रखा है। हिमकर श्याम, अनिल वडगेरी, सुरेश चौधरी ‘इंदु’, डॉ. सुपर्णा मुखर्जी, तुकाराम पुंडलिक खिल्लारे, डॉ. सुष्मा देवी,
अनिकेत सिन्हा, अनिता मंडा, ख्याति केयूर खारोड तथा इंद्र कुमार दीक्षित की सर्जनात्मक
प्रतिभा एवं समीक्षात्मक सूझ-बूझ भी प्रस्तुत अंक के कलेवर को गरिष्ठता व वैविध्य
प्रदान करने में उपयोगी रही हैं।
अंत में, अंक का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे तमाम साहित्य सेवियों के हम
उपकृत हैं।
डॉ. पूर्वा शर्मा
वड़ोदरा
रवि कुमार शर्मा
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय अंक । संपादकीय सहित सभी लेख उत्तम । बधाई पूरी टीम को।
जवाब देंहटाएंनिखरता हुआ सुंदर अंक। उत्तम सम्पादकीय, बेहतरीन आलेख,रचनाएँ। सम्पादक एवं सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
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