रविवार, 29 अक्तूबर 2023

शब्द-विवेक



अध्यक्ष : मुखिया (विभाग के अध्यक्ष) ।

सभापति : अधिवेशन या बैठक के।

***

अनुमति : जब हम कुछ करना चाहते हैं और वैसा करने के लिए किसी अधिकारी से पूछना आवश्यक होता है, तब हम उसकी अनुमति माँगते हैं।

आदेश : जब कोई माननीय व्यक्ति या बड़ा आधिकारी अपनी ओर से वह चाहता है कि उसके मातहत या अधिकार क्षेत्र में आने वाले लोग ऐसा करें या न करें तब वह ‘आदेश’ का रूप लेता है।

आज्ञा : इस शब्द का प्रयोग अक्सर दोनों ही अर्थों में होता है। जब आज्ञा ली जाती है तब वह अनुमति की समानार्थक होती है। जब अधिकारपूर्वक आज्ञा दी जाती है तब वह आदेश के निकट आ जाती है। 

***

अनिवार्य : जिसका निवारण न हो सके या जो टाला या छोड़ा न जा।

आवश्यक : जरूरी। आवश्यक में अनिवार्य जैसी बाध्यता नहीं होती।

***

अपराध : नियम या कानून तोड़ना अपराध है, जिसका दंड मिलता है।

पाप : नैतिक, सामाजिक या धार्मिक नियमों का उल्लंघन पाप है।  

***

आग्रह : थोड़ा-थोड़ा हठ ।

अनुरोध : प्रार्थना के साथ आग्रह।

***

 

आलोचना : किसी चीज के दोष निकालना आलोचना है।

           समालोचना : गुण-दोषों का सम्यक् विवेचन और मूल्यांकन करना समालोचना है।

***

उद्देश्य : जिस सिद्धि की ओर मन प्रवृत्त हो।

ध्येय : निशाना, जिसपर दृष्टि रखकर कार्य किया जाए।

***

उन्नति : ऊपर उठकर विकास करना ।

प्रगति : आगे बढ़ना।

***

उपस्थिति : आदमियों की ।

            विद्यमानता : वस्तुओं की।

***

उपहास : किसी की कमी या अटपटेपन की ओर संकेत करके, प्रत्यक्ष रूप से किसी की हँसी उड़ाना उपहास है। इसमें दूसरों की प्रतिष्ठा गिराई जाती है।

व्यंग्य : किसी की कमी की ओर प्रत्यक्ष रूप से संकेत न करके, घुमा-फिराकर ध्यान आकृष्ट करना, व्यंग्य है। व्यंग्य करने और उन्हें समझने के लिए सूझ-बूझ की आवश्यकता होती है।  

***

उपहार : प्रायः बराबर वालों को जो सामग्री प्रेमपूर्वक पेश की जाती है, वह उपहार है।

भेंट : प्रायः बड़ों को श्रद्धा और नम्रतापूर्वक जो सामग्री प्रस्तुत की जाती है, वह भेंट है।


[हिन्दी शब्द सामर्थ्य (लेखक- शिवनारायण चतुर्वेदी, तुमन सिंह) से साभार]


1 टिप्पणी: