शुक्रवार, 4 मार्च 2022

क्षणिकाएँ

 



प्रीति अग्रवाल

1.

नैना फिर से

दगा दे गए

कहा था कुछ न कहना

सब कह गए....।

2.

बड़ी अजीब-सी आदत है

यादों की

अच्छी, जाने कहाँ छुप जाती हैं

बुरी, जाने क्यों खटखटाती हैं...

कहीं ऐसा तो नहीं

ये आदत इनकी नहीं

मेरी हो....!

3.

अतीत के पन्ने

कुछ मुसे, कुछ धुँधले

रोज़ पलटूँ

जाने कहाँ छिप जाएँ

मधुर स्मृतियाँ

बरबस ढूँढूँ!

4.

अतीत की गलियाँ

फिर से बुलाएँ

सुख-दुख के प्रतिबिम्ब

धुँधले हुए जाएँ

कुहासे में भला

कोई कैसे देख पाए....!

5.

क्या ढूँढ़ता है...

पाएगा क्या...

मुट्ठी में देख

वहीं, सारा जहाँ।

6.

कल का इंतज़ार

करता रह गया कल

आज भी

वही कर रहा है...

जाने कब आएगा

वो हसीन कल

जिसका इंतज़ार

रहता पल-पल...!

7.

कहानियाँ

नयी-पुरानी

कहता है मन

कुछ

आधी-अधूरी

को बूझता है अंत....।

8.

मृगतृष्णा-सी

सुख की परछाइयाँ

रिझाएँ

भटकाएँ

छूना जो चाहूँ

छूमंतर हो जाएँ!

9.

कब, कहाँ

क्यूँ और कैसे

अनगिनत सवालों के

अनगिनत बाण

बींधते मन को

उत्तर तक मगर

कोई पहुँच न पाए...।

10.

दोराहे खड़ी

फिर एक बार

किस राह को चुनूँ...

जिस राह को चुनूँ

जाने कहाँ ले जाए...!

11.

पिघला आसमाँ

नैनों में उतरा

फिर बहा

....अविराम!

12.

मदहोश समाँ

बहके

लड़खड़ाए

सिर्फ प्रेम था किया

ये हमें क्या हुआ...!




प्रीति अग्रवाल

कैनेडा

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर अंक, मेरी रचनाओं को पत्रिका में स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार पूर्वा जी!

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  2. बहुत सुंदर रचनाएं प्रीति जी । मन मे गहरे उतरने वाली । आपकी लेखनी को नमन ।

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