सोमवार, 3 जनवरी 2022

पहेलियाँ

 



मनोविनोद और दिमागी व्यायाम की उक्तियाँ : पहेलियाँ

मनोविनोद, वाणीविलास, बुद्धि परीक्षण, आकारगत संक्षिप्तता जैसी विशेषताओं की दृष्टि से पहेलियों का भी बहुत पहले से लोक और साहित्य में एक विशेष स्थान व महत्त्व रहा है। मनुष्य की सूक्ष्म निरिक्षण शक्ति तथा रहस्यात्मक प्रवृत्ति की द्योतक पहेलियों की प्रस्तुति मूलतः प्रश्नात्मक होती है। मनोरंजन के साथ-साथ बुद्धि का व्यायाम पहेलियों की रचना और प्रयोग का मुख्य प्रयोजन है। फुरसत के समय में पहेलियों को पूछने व इसके उत्तर ढूँढने में हमें आनन्द तो मिलता ही है, साथ ही इनके प्रयोग का आशय सामने वाले की बुद्धि की परीक्षा  लेना भी होता है। इस तरह मनोविनोद करने वाली ये उक्तियाँ सुनने वाले-उत्तर देने वाले को काफी दिमागी कसरत भी कराती हैं।

“पहेलियाँ बुद्धि पर शान चढ़ाने का यंत्र है। ये स्मरण शक्ति और वस्तुज्ञान बढ़ाने की कला है।”

हमारे यहाँ पहेलियों की दीर्घकालीन परंपरा है। वेद, महाभारत, संस्कृत साहित्य तथा मध्यकालीन व आधुनिक काल की विविध भाषाओं- बोलियों में प्रचुर मात्रा में पहेलियाँ मिलती हैं। लोकसाहित्य विषयक पुस्तकों तथा अन्य स्रोतों से प्राप्त कतिपय पहेलियाँ देखें –

1

संध्या को पैदा हुई, आधी रात जवान ।

बड़े सवेरे मर गई, घर हो गया मसान ॥

2

दिनभर घूमैं पिय के संग, चिपटी रहे रात भर अंग ।

देखि दिया के यह सरमाय, झट से सरकि दूर होई जाय ॥

3

स्याम बरन मुख उज्जर कित्ते ?

रावन सीस मंदोदरी जित्ते ।

4

लग-लग कहे तो ना लगे,

बेलग कहे लग जाय ।

5

लाल घोडी खर खाय,

पानी पिये मर जाय ।

6

चार आना बकरी, आठ आना गाय ।

चार रुपया भैंस बिकाय, बीसे रुपया बीसै जीव ॥

7

सिर केसर मुर्गा नहीं, नीलकंठ नहीं मोर

लंबी पूँछ लंगूर नहीं, चार पाँव ना ढोर ।

8

एक जानवर ऐसा जिसकी दुम पर पैसा ।

9

नाज़ुक नारि पिया संग सोती,

अंग सो अंग मिलाय।

पिय को बिछुड़त जानि के,

संग सती हो जाय ॥

10

काली हूँ पर कोयल नहीं

लंबी हूँ पर डंडी नहीं

डोर नहीं पर बाँधी जाती

मैया मेरा नाम बताती ।

11

नीता की बेटी के पिता के ससुर की चार बेटियाँ –

(1) सीता (2) गीता (3) मीता (4) ?

12

तीन अक्षर का नाम है मेरा

बाएँ से दाएँ पढ़ो या दाएँ से बाएँ

ना मेरा नाम बदले ना पहचान ।

13

एक मुर्गा चालतो, फिरतौ थाक गियौ ।

पाती लायो गर्दन काटी, पाछौ चालण लाग गियौ ।

 





 

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