1.
सुनो प्रार्थना हे प्रभु मेरी !
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
और करो मंगल ,
मचा मन-संसद में दंगल !
ये इच्छाएँ लड़ें परस्पर
भाषण झाड़ रहीं
एक दूजे के लिखे हुए सब
पन्ने फाड़ रहीं
नहीं बस्तियाँ सभ्यजनों की
लगता है जंगल !
मचा मन-संसद में दंगल!
मुझको ही तड़पाकर इनको
दर्द नहीं होता
सूख गया है जैसे इनके
भावों का सोता
लिपटी चारों ओर सर्पिणी
त्याग हुआ संदल !
मचा मन-संसद में दंगल!
नम्र निवेदन मेरा ,इस पर
थोड़ा करो मनन
समझा दो कुछ या फिर इनका
कर दो आप दमन
अश्रु-जल से और अधिक अब
सिक्त न हो अंचल !
मचा मन-संसद में दंगल !
2.
फिर उड़ान भर पँछी
बैठ ऐसे न हारकर पँछी
देख तू फिर उड़ान भर पँछी
तेज तूफान है , घटाएँ हैं
कड़कती बिजलियाँ डराएँ हैं
कोई मौसम सदा नहीं रहता
साथ तेरे मेरी दुआएँ हैं
जीत होगी ,न ऐसे डर
पँछी
देख तू फिर उड़ान भर पँछी !
पथ में सूरज कभी सताता है
खुद भी जलता , तुझे जलाता
है
इसको ढलना , ढलेगा ही,इसका
आना-जाना यही बताता है -
हौंसले रख संभालकर पँछी
देख तू फिर उड़ान भर पँछी !
बैठ ऐसे न हारकर पँछी
देख तू फिर उड़ान भर पँछी !
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
एच-604 , प्रमुख हिल्स
,छरवाडा रोड ,वापी
जिला- वलसाड(गुजरात) 396191
सुंदर कविताएँ,बधाई डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा जी
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रेरणादायक गीत, बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर, भावपूर्ण.... बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण, बहुत बहुत बधाई
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