1.
अभिनन्दन
कर लें!
डॉ.
सुरंगमा यादव
पौ
फट रही
अवतरित
हो रहा
वर्ष
सूरज
नयी
ऊष्मा से भरे
मन
का हरेक कोना
धरा
ने परिक्रमा
फिर
पूरी की
नियत
पथ पर
नववर्ष
की खुशी
हमने
मनायी
हम
भी अपने
पथ
पर चलें तो
खुशियाँ
मनेंगी
हरेक
दिन ही
क्यों
विपथ फिर
जा
रहे हम?
वर्ष
के संग
उम्र
का सोपान तो
हमने
भी चढ़ा है
अब
तो जागें
आलोक
गठरी
रोज
लेकर
आता-जाता
सूर्य
आ
तनिक-सा
मन
में भर कर
नववर्ष
का अभिनंदन कर लें!
दर्प
नफरत
का हथियार दिखाकर
गीत
प्रेम के गाते जाओ
हम
बारूद बिछाते जाएँ
तुम
गुलाब के फूल उगाओ
लपटों
में हम घी डालेंगे
अग्नि
परीक्षा तुम दे जाओ
ठेकेदार
हैं हम नदिया के
कूप
खोद तुम प्यास बुझाओ
हम
सोपानों पर चढ़ जाएँ
तुम
धरती पर दृष्टि गढ़ाओ
माला
हम बिखराएँ तो क्या!
मोती
तुम फिर चुनते जाओ
सिंहासन
पर हम बैठेंगे
तुम
चाहो पाया बन जाओ
फूलों
पर हम हक रखते हैं
तुम
काँटों से दिल बहलाओ
अधिकारों
का दर्प हमें है
तुम
कर्त्तव्य निभाते जाओ
कभी
शिकायत कोई न करना
अधरों
पर मुस्कान सजाओ
शर्तों
के कंधों पर हँसकर
संबंधों
का बोझ उठाओ।
डॉ.
सुरंगमा यादव
असि.
प्रो.
महामाया
राजकीय महाविद्यालय,
महोना,
लखनऊ (उ. प्र.)
सुंदर रचनाएँ।बधाई डॉ. सुरंगमा यादव जी।
जवाब देंहटाएं