रविवार, 25 अप्रैल 2021

परिचय

प्रो. पारूकांत देसाई

डॉ. हसमुख परमार

गुजरात के समकालीन हिन्दी साहित्यकारों की अग्रिम पंक्ति में प्रो. पारूकांत देसाई का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। 7 जुलाई, 1943 को इनका जन्म गुजरात में बड़ौदा जिले के गुताल नामक गाँव में हुआ। प्राइमरी से पीएच.डी. तक की शिक्षा में अपनी तेजस्विता को प्रमाणित करने वाली इस उम्दा शख़्सियत की आगे की जीवन-यात्रा अध्ययन-अध्यापन के पथ पर ही अग्रसर रही। लगभग साढ़े तीन दशक के दीर्घ कालीन अध्यापकीय अनुभव के साथ वर्ष 2005 में आप हिन्दी विभागमहाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, बड़ौदा से सेवानिवृत्त हुए। एक संस्था सेएक व्यवस्था सेएक कक्षा से देसाई जी जरूर निवृत्त हुएपरंतु अध्यापक के आचरण सेसाहित्यिक संस्कार सेलेखन की ललक से वे कतई निवृत्त नहीं हुए। आज 77 वर्ष की आयु मेंशारीरिक अस्वस्थता के बावजूद इस साहित्यसेवी की कलम बराबर चलती रही है।

प्रो. पारूकांत जी के सफल व पर्याप्त निर्देशन में कुल इक्कीस छात्रों ने पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की । इस संबंध में एक विशेष उल्लेखनीय बात यह है कि सलीम ए. वोरा नामक इनका एक पीएच.डी. छात्र प्रज्ञाचक्षु था और हिन्दी में इस प्रज्ञाचक्षु छात्र को पीएच. डी. (1991) कराने के उपलक्ष्य में तत्कालीन राष्ट्रपति श्री वेंकटरमण के द्वारा पीएच.डी. उपाधि प्राप्त डॉ. सलीम वोरा तथा निर्देशक प्रो. पारूकांत देसाई दोनों का अभिनंदन व सम्मान किया गया था। और भी विविध साहित्यिक गति विधियों के चलते डॉ. देसाई विविध पुरस्कारों से पुरस्कृत हुए।

अपने अध्यापन-कौशल व छात्र प्रेम के कारण देसाई ‘सर’ को विद्यार्थी कुछ ज्यादा ही पसंद करते थेसाथ ही राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों तथा रिफ्रेशर कोर्स आदि में भी इनके व्याख्यान प्रतिभागियों को अत्यधिक प्रभावित करने वाले होते थे। केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय दिल्ली की एक योजना के अंतर्गत सन् 1986-87 में देसाई जी का चयन हिन्दी के राष्ट्रीय व्याख्याता के रूप में हुआ था।

इस तरह एक कुशल अध्यापकएक उम्दा – कवि-लेखकएक प्रभावशाली वक्ता और इससे भी कहीं ज्यादा एक अच्छे इन्सान के रूप में प्रारूकांत जी की पहचान रही है। शिष्य वत्सलताप्रगतिवादी सोचविद्वताविद्यानुरागग्रंथ-संग्रह-व्यसनपूर्णता तथा उच्च लक्ष्य का आग्रह, मानवतावादी दृष्टि जैसे गुणों से भरा देसाई जी का व्यक्तित्व इनके छात्रों व  परिचितों को सदैव प्रभावित करता रहा है।

हिन्दी कथा साहित्यहिन्दी दलित साहित्य, नारी विमर्श आदि देसाई जी के शोध के प्रमुख क्षेत्र रहे हैं। हिन्दी साहित्य के अंतर्गत सृजन व समीक्षा उभय क्षेत्रों के लेखन से वे जुड़े रहे । पिछले लगभग तीन-चार दशकों की समयावधि में अपनी सृजनात्मक एवं समीक्षात्मक प्रतिभा की शाब्दिक अभिव्यक्ति की बदौलत आज प्रो. देसाई जी की गुजरातगुजरात बाहर एवं हिन्दी साहित्य जगत में एक कविव्यंग्यकारउपन्यास समीक्षकसाहित्य इतिहास लेखक के रूप में महत्वपूर्ण पहचान बनी हुई है। कविताव्यंग्यसाहित्यिक रचनाओं की आलोचनासाहित्य इतिहास लेखन एवं अनुवाद के साथ-साथ काव्यशास्त्र व साहित्य-समीक्षा भी इनके अध्ययन एवं लेखन का पसंदीदा विषय-क्षेत्र रहा है। इनके काव्यशास्त्रीय व साहित्य-समीक्षा संबंधी चिन्तन का प्रमाण है ‘समीक्षायण’ पुस्तक। 1994 ई. में प्रकाशित यह पुस्तक केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय से पुरस्कृत रही है।

सृष्टि, समाज एवं स्वयं के विविध रूप रंग से देसाई जी कविता बहुत ही अच्छी तरह से सजी हुई है। इन्हीं की पंक्तियाँ हैं –

सत्य बात कवि ही कहे क्योंकि हृदय में आग।

शिव सुन्दर भी वह कहे क्योंकि हृदय में राग ।।

कवि और इनकी कविता का यह गुण इस कवि के काव्य संसार में भी हम बखूबी देख सकते हैं। कबीर की विचारधार से अत्यधिक प्रभावित होने की वजह से इनके कई दोहों में कबीर-काव्य जैसा मिजाज़ देखने को मिलता है। डॉ. माया प्रकाश पाण्डेय के मतानुसार “मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित प्रो. पारूफांत देसाई आधुनिक कबीर कहे जाते हैं क्योंकि उनके दोहों में ‘कबीरा’ अवश्य आता है। जिसे उनका साहित्यिक उपनाम कहा जा सकता है। इसे उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है कि दोहों को लिखते समय ‘कबीरा’ कब और कैसे दाखिल हो गया इसका पता मुझे भी नहीं चला। पहले कुछ दोहों में ‘फकीरा’ भी लिखा था और ‘कबीरा’ ‘फकीरा’ ही तो था। इसलिए उन्हें यदि आधुनिक कबीर कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।” देसाई जी का समग्र काव्य संसार पर्याप्त विषय वैविध्य को लेकर विकसित हुआ है। यह कहना अनुचित नहीं होगा कि पारूकांत जी कवि है – प्रेमप्रकृति और प्रगतिवादी संवेदना के और सामाजिक यथार्थ तथा विविध विमर्शों पर विचार करने वाले और इसे व्याख्यायित करने वाले लेखक-समीक्षक। इनके लिखे निबंधों में व्यंग्य एवं चिंतन की प्रधानता है। बेशकप्रो. देसाई के सर्जक व समीक्षक रूप द्वारा निर्मित विश्व काफी विस्तृत व बहुआयामी है ।

प्रो. पारूकांत जी की लगभग डेढ़ दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं –

·  बिजली के फूलमिलन के क्षण चारसूखे सेमल के वृन्तों परमानसमाला, भेद कु   खोला, कबीरा बोला (काव्य)

·  कबीरा खड़ा बाजार मेंचिंतनिका (निबंध संग्रह)

·  युगनिर्माता प्रेमचंद तथा कुछ अन्य निबंधसाठोत्तरी हिन्दी उपन्यासआधुनिक लेखिकाओं के नगरीय परिवेश के उपन्यास (आलोचना)

·  हिन्दी उपन्यास-साहित्य की परंपरा में साठोत्तरी उपन्यास (शोध प्रबंध)

·  समीक्षायण (काव्यशास्त्र)

·  हिन्दी साहित्य का संक्षिप्त सुगम इतिहास

·  गीता का कर्म सिद्धांत (अनुवाद )

हाल ही में बाल-कहानी से संबंधी इनकी पुस्तक – ‘चींटी ने ऊँट को जन्म दिया प्रकाशित हुई।

इसी वर्ष (2021) डॉ. दिलीप मेहरा और डॉ. हसमुख परमार द्वारा संपादित प्रो. पारूकांत देसाई : अभिनंदन ग्रंथ समकालीन हिन्दी साहित्य में डॉ. पारूकांत देसाई ‘कबिरा’ का योगदान शीर्षक से प्रकाशित हुआ।

इस अभिनंदन ग्रंथ में डॉ. पारूकांत देसाई की जन्म से लेकर जरावस्था तक की जीवन यात्राइनके व्यक्तित्व के विविध पहलुओं एवं इनकी लेखनी की गति व प्रकृति को बराबर रेखांकित किया गया है। प्रस्तुत ग्रंथ का का उद्देश्य प्रो. पारूकांत देसाई के जीवन का मात्र ऐतिहासिक दस्तावेज प्रस्तुत करना ही नहीं हैग्रंथ महज़ इनकी ज़िन्दगी का लेखा-जोखा ही नहीं है बल्कि इससे भी आगे इसका उद्देश्य है – प्रो. पारुकांत जी के लेखन में अदृश्य व अप्रत्यक्ष रूप में रहे इनके व्यक्तित्व को जानना-पहचाननाइनके सृजन के स्वभाव से परिचित होना और पाठकों को परिचित करानाहिन्दी साहित्यसमीक्षा व शोध के क्षेत्र में एक अहिन्दीभाषी क्षेत्र के एक हिन्दी साहित्य सेवी के योगदान को समझना और इसे स्थाई रूप देना ।

अंत में इस ‘कबीरा’ के कुछ दोहे –

1

व्यथा सदा से सो रहीअंतर सेज बिछाय ।

झकझोरे जब कोई भीगीत प्रीति के गाय ।।

2

कबीरा वो ही कह सके जो जाने है प्रीत ।

आग में नहाए हुए शब्दों वाले गीत ।।

3

कबीरा गहरी बात यह समझ सके गर काश !

डूब जाती है जिंदगी तिर उठती है लाश ।।

4

लड़ते-लड़ते मर गया सैंतालीस में देश ।

गीदड़ गीध चबा रहे बदल कबीरा वेश ।।

5

मन माधव पीर बाँसुरी जोबन जमना तीर

राधे कविता बावरी पीती जाए पीर ।।

6

मधुरा क्यातो प्रेयसीगंध मधुर ?, तन-बास ।

बसे कहाँ ? उन नयन मेंउलझेंकुंतल पाश ।।

7

चाँद तुम्हारे रूप का कुछ-कुछ है अनुमान ।

इस तरफ है राधिका उस तरफ है कहान ।।

डॉ. हसमुख परमार

एसोसिएट प्रोफ़ेसर

स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग

सरदार पटेल विश्वविद्यालयवल्लभ विद्यानगर

जिला- आणंद (गुजरात) – 388120

 

 

 


9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत सुंदर सर, ईश्वर सदेव देते रहे।
    खालीद

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  2. ईश्वर सदेव उन्नति देते रहे।

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  3. अपने गुरुजी के जीवन एवम् लेखन का सुन्दर परिचय।
    देसाई सर को प्रणाम 🙏
    हसमुख जी को बधाई 💐

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  4. बहुत सुन्दर परिचय दिया है। शुक्रिया सर आप ऐसे ही आगे बढ़ते रहे। धन्यवाद

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  5. अपने गुरुजी के जीवन एवम् लेखन का सुन्दर परिचय।
    बहुत सुन्दर परिचय दिया है। सर आप ऐसे ही आगे बढ़ते रहे। धन्यवाद

    Vijay parmar

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  6. बहुत ही सुंदर लेखन एवं प्रेरणादायक जीवन परिचय देने के लिए आपका खूब-खूब आभार।

    जिग्नाशा परमार

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  7. बहुत ही सुन्दर और प्रभावशाली परिचय ...सर।

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  8. बहुत ही सुन्दर और प्रभावशाली परिचय ...सर।

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