ज़रूरत
दीवाली की सफ़ाई धूम-धाम से चल
रही थी। बेटा-बहू, पोता-पोती
सब, पूरे मनोयोग से लगे हुए थे।
वे सुबह से ही, छत पर चले आए
थे। सफ़ाई में एक पुराना एलबम हाथ लग गया था, सो कुनकुनी धूप
में बैठे, पुरानी यादों को ताज़ा कर रहे थे।
ज्यादातर तस्वीरें उनकी जवानी
के दिनों की थीं, जिनमें
वे अपनी दिवंगत पत्नी के साथ थे। तक़रीबन हर तस्वीर में पत्नी किसी बुत की तरह थी,
तो वे मुस्कुराते हुए, बल्कि ठहाका लगाते हुए
कैमरा फ़ेस कर रहे थे। उन्हें सदा से ही ख़ासा शाक़ था तस्वीरें खिंचवाने का। वे
पत्नी को अकसर डपटते, 'तस्वीर खिंचवाते वक्त मुस्कुराया करो।
हमेशा सन्न-सी खड़ी रह जाती हो, भौंचक्की-सी!'
चाय की तलब के चलते नीचे उतरकर
आए, तो
देखा, घर का सारा पुराना सामान इकट्ठा करके अहाते में करीने
से जमा कर दिया गया था और पोता अपने फ़ोन कैमरा से उसकी तस्वीरें ले रहा था।
यह उनके लिए एक नई बात थी। पता
चला कि आजकल पुराने सामान को ऑन-लाइन बेचने का चलन है।
वे बेहद दिलचस्पी से इस
फ़ोटो-सेशन को देखने लगे। एकाएक, उनके शरीर में एक सिरहन-सी उठी-और
ठीक उसी वक्त पोते ने शरारत से मुस्कुराते हुए कैमरा उनकी तरफ़ करके क्लिक कर
दिया-'ग्रैंडपा, स्माइल!
कैमरे का फ्लैश तेज़ी से उनकी
तरफ़ लपकी और वे पहली बार तस्वीर खिंचवाते हुए सन्न-से खड़े रह गए।
महेश शर्मा
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