बुधवार, 31 दिसंबर 2025

लघुकथा

वतन के लिए

प्रेम नारायन तिवारी

            दादी! मैं ड्यूटी जा रहा हूँ, तुम्हारे लिए नास्ता खाना बनाकर रख दिया हूँ। समय से उठकर खा-पी लेना।बिस्तर पर मुंह ढक कर लेटी अपनी बूढी दादी अमीना से डाक्टर हामिद बोला। डा० हामिद तीस- बत्तीस साल का अविवाहित गबरू जवान है, अमीना लगभग अस्सी साल की बेवा। दोनों एक बहुत बड़े मकान मे रहते हैं। हामिद ने अपने इस मकान और दादी की देखभाल के लिए एक भी नौकर- चाकर नहीं रखा है। अमीना उसे विवाह करने तथा नौकर रखने के लिए कहती तो कहता " दादी जब गरीबी मे हमारे तुम्हारे साथ कोई दूसरा नहीं था तो अब अमीरी मे किसी को नहीं लाऊँगा।

"लेकिन मुझ बुढिया के जाने के बाद तू अकेले कैसे जियेगा? " अमीना ने एक दिन पूछ लिया था। तो वह बोला बहुत से लोग कौम के लिए जीतें हैं मैं भी कौम के लिए जीऊँगा मरूँगा। डाक्टर हामिद की इस सादगी की शहर मे बहुत चर्चा होती है। लोग कहते हैं अमीना ने पोते के रूप मे हीरा पाया है।

वैसे आप सब इस अमीना और हामिद को भलीभाँति जानते हैं। मुझे लगता है आप भूल गये हैं।अरे भाई इनको ही केन्द्र मे रखकर तो प्रेमचंद जी ने अपनी कालजयी कहानी ईदगाह लिखा था‌, चिमटा वाली कहानी। हामिद के ऊपर तब की प्रसन्न हुई अमीना का मन आज रात से बहुत दुखी है। हामिद के जाने के बाद वह बिस्तर पर बैठी सुबककर रो रही है। उसके चेहरे पर दुख और अनिश्चितता के भाव हैं। थोड़ी देर रोने लेने के बाद वह बिस्तर से उठकर अपनी छड़ी लिए घर से बाहर निकल गयी।

एक जमाने के बाद वह बाहर निकली थी, जो भी उसे देखता हाथ उठाकर सलाम करता। “अम्मा कहाँ जा रही हो, कुछ सौदा लाना हो तो बोलो मैं जाकर ला दूँ।” जुम्मन ने सलाम करके पूछा था।

“नहीं कुछ लाना नहीं है, घर में जी नहीं लग रहा था तो बाहर निकल आई।” ऐसा कह वह बाहर निकल आई। सचमुच मे वह बेचारी बेचैन थी। कल रात हामिद के चार डाक्टर दोस्त आये थे। उनमें से एक महिला डाक्टर भी थी। सभी ने मिलजुलकर मुर्गा पकाया खाया। अमीना को सुलाकर हामिद उनके पास चला गया था। रात के एक बजे अमीना को प्यास लगी। टेबल पर पानी नहीं था, वह पानी लेने जा रही थी कि हामिद के कमरे से कौम के लिए मर मिटने की बात उसके कानों मे पड़ी। और वह पानी लेने के बजाय हामिद के कमरे के और पास चली गई थी।

अब उसका मन जार-जार रो रहा था। जिस हामिद की पढ़ाई के लिए उसने बाप दादा से मिली जायदाद बेच दी, जिसके लिए सड़क पर बैठकर भीख माँगी वही हामिद आतंकी हो गया था। घर मे लाकर रखे बम-बारूद को कोई देख न ले इसके लिए वह नौकर नहीं रखता था। कोई जैश मुहम्मद उसको राह बता रहा था। “कौन है जैश मुहम्मद” उसने अपने आप से पूछा। मगर कोई उत्तर नहीं था। कुछ देर के बाद वह पुलिस थाने मे थानेदार के सामने कुर्सी पर बैठे सारी बात बता रही थी।

“आपका पोता कौम के लिए आतंकी बना है, फिर आप उसे पकड़वाने पुलिस के पास क्यों आ गयीं?” थानेदार ने अंतिम सवाल पूछा।

“वतन के लिए।” ऐसा कहने के साथ अमीना कुर्सी से लुढ़क गयीं। सभी ने उसे छूकर देखा अमीना का प्राण पखेरू जन्नत की राह मे उड़ान भर चुका था। अगले दिन के अखबारों मे अमीना और हामिद के साथ चिमटा और एके 47 की भी तस्वीर छपी थीं।

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प्रेम नारायन तिवारी

रुद्रपुर, देवरिया


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