मणिबेन
पटेल : विशेष स्मरण
सरदार
वल्लभभाई पटेल की पुत्री मणिबेन पटेल [1903 - 1990] का भी स्वाधीनता आंदोलन, राजनीति एवं समाजसेवा में महत्त्वपूर्ण
योगदान रहा। बोरसद, मुंबई तथा अहमदाबाद में अपनी स्कूली
शिक्षा प्राप्त करने के बाद 1925 ई. में मणिबेन ने गुजरात
विद्यापीठ से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। महात्मा गाँधी और पिता सरदार पटेल के
विचारों व कार्यों से प्रभावित और प्रेरित मणिबेन ने अपना पूरा जीवन देश की सेवा
में समर्पित कर दिया। अपने इन दोनों आदर्शों से प्रेरित मणिबेन ने अपनी मात्र 15-17 वर्ष की आयु से ही स्वातंत्र्य संग्राम की विविध प्रवृत्तियों में सहभागी
होना प्रारंभ कर दिया था।
सत्याग्रह
में सक्रिय भागीदारी, देश के लिए त्याग-समर्पण
तथा समाज सेवा संबंधी मणिबेन की उम्दा गतिविधियों की सूची बड़ी लम्बी है।
स्वतंत्रता संग्राम में, अपने देश के लिए कुछ खास कर गुजरने
की भावना तो ऐसी कि अपनी 17 वर्ष की आयु में स्वतंत्रता
संग्राम के कार्य के लिए उन्होंने अपने गहने तक गाँधी आश्रम में दे दिए थे। वे
नियमित रूप से अहमदाबाद स्थित साबरमती आश्रम में जाती थी, वहाँ
रहकर आश्रम के कार्यों में मदद करती थीं। “उन्होंने 1923-24 में
बोरसद आंदोलन, 1928 में बारडोली सत्याग्रह और 1938 में राजफोट आंदोलन में हिस्सा लिया था। उन्होंने असहयोग आंदोलन और नमक
सत्याग्रह में भी भाग लिया था। सन् 1942 में भारत छोड़ो
आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें 1942 से 1945 तक यरवदा केन्द्रीय कारागार में बंदी बनाकर रखा गया था।” वैसे आजादी की
लड़ाई के दरमियान अन्य स्वतंत्रता सेनानियों की तरह मणिबेन को भी कई बार जेल जाना
पड़ा था।
मणिबेन
की देशभक्ति जितनी महान थी उतनी ही उम्दा और अनुकरणीय उनकी पितृभक्ति। उनकी
पितृभक्ति और देशभक्ति को लेकर कहा जाता है कि वह एक महान बेटी भी थी और देशभक्त
भी। सरदार पटेल के देहांत तक उनकी इस महान बेटी ने उनका बराबर ध्यान रखा। पिता के
साथ रहते हुए पिता के खानपान, कपड़े, पत्रव्यवहार, स्वाधीनता आंदोलन, देशसेवा-समाजसेवा, राजनीति आदि कार्यों में पूरी
सहयोगी रहने वाली मणिबेन ने वाकई में एक आदर्श पुत्री का उदाहरण प्रस्तुत किया।
मणिबेन अविवाहित रहीं और पूरा जीवन देशसेवा और पिता की सेवा करती रहीं, पिता के देशहित कार्यों में सहयोग करते हुए सेवा, त्याग,
सादगी, साहस, विश्वास की
एक मिसाल कायम की। लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष [कार्यकाल 1952-1956 ई.) ने एक बार कहा था- “भारत सदैव उनका ऋणी रहेगा। क्योंकि वह अपने पिता
की सेवा के माध्यम से भारत की सेवा कर रही थी।”
भारत
के महान सपूत सरदार पटेल की साहसी, सेविका,
संस्कारी, आज्ञाकारी इस बेटी की विनम्रता,
ईमानदारी, प्रामाणिकता और राष्ट्रभक्ति का एक प्रसंग
– सरदार पटेल की मृत्यु के बाद, पिता की आज्ञा अनुसार मणिबेन
पटेल, कांग्रेस पार्टी के 35 लाख रुपये
और पार्टी के हिसाब -किताब की नोट लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के
पास पहुँचकर उनको ये दोनों – रुपये और हिसाब की किताब- दे देती हैं, और बताती हैं
कि उनके पिता ने इसे नेहरू जी को दे देने के लिए कहा था। 35
लाख जितनी बड़ी रकम और पार्टी के अकाउंट का डिटेल्स नेहरू जी को सौंप देना,
ये भी मणिबेन की उच्च मूल्यनिष्ठा का एक बहुत बड़ा प्रमाण है।
पिता
जी के पथ पर अग्रसर मणिबेन आजादी के बाद लगभग ढाई-तीन दशक तक राजनीति में भी बड़ी
सक्रिय रहीं। गुजरात में रहते हुए लोकसभा की सांसद तथा गुजरात कांग्रेस वाइस
प्रेसिडेंट के रूप में मणिबेन ने कार्य किया। प्रांत व देश की सेवा की। इसके अलावा
मणिबेन कई शैक्षणिक व गैर शैक्षणिक संस्थाओं से जुड़ी रहीं और विविध पदों-ओहदों पर
रहते हुए अपनी सेवाएँ देती रहीं, जैसे -गुजरात
विद्यापीठ, महादेव देसाई मेमोरियल ट्रस्ट बारडोली, स्वराज आश्रम ट्रस्ट, सरदार वल्लभभाई समाजसेवा
ट्रस्ट, केन्द्रीय समाजकल्याण बोर्ड, खादी
एवं ग्रामोद्योग बोर्ड आदि।
पिता
सरदार पटेल के जीवनकाल व कार्यकाल में उनके विविध कार्यों व गतिविधियों का मानो एक
दस्तावेजीकरण रूप में व्यवस्थित करने व रखने का काम मणिबेन ने बहुत अच्छी तरह से
किया था। “सरदार पटेल की सचिव के रूप में कार्यरत मणिबेन ने सरदार पटेल के जीवन के
अनेक कार्यों से जुड़े दस्तावेजों, पत्रों
और सूचनाओं का रिकार्ड रखा, साथ ही गाँधीवादी युग में भारत
के राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन से जुड़ी घटनाओं का भी।” मणिबेन ने लेखन-संपादन का
कार्य भी किया। कहते हैं कि उनकी डायरी, जिसमें 1936 से 1950 की समयावधि में सरदार पटेल के कार्यों एवं
कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण बातें लिखी थीं।
26 मार्च, 1990 को मणिबेन पटेल का देहांत हुआ। अंतिम
समय में उनकी आर्थिक एवं स्वास्थ्य स्थिति अच्छी नहीं रही, किंतु
इस स्वतंत्रता संग्राम की सबला, पिता व राष्ट्र की सेविका,
राजनीतिज्ञ, सादगी-सेवा-त्याग-समर्पण की
प्रतिमूर्ति ने अपने पिता से मिले साहस, सेवा, राष्ट्रप्रेम, राजनीतिज्ञता, लोकहित
के गुणों-संस्कारों की विरासत को अंतिम साँस तक अपने व्यक्तित्व में, विचारों व व्यवहार में जीवित रखा। किसी भी निमित्त सरदार पटेल के बारे में विचार
करते-बात करते मणिबेन पटेल का स्मरण बिल्कुल स्वाभाविक है। इस उम्दा व्यक्तित्व को,
उनके स्मरण को शत शत नमन!



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