रविवार, 30 नवंबर 2025

आलेख


सरदार एक, चुनौतियाँ अनेक के क्रम में ....

देसी रियासतों का एकीकरण : एक बड़ी चुनौती

पं. श्रीराम शर्मा ने सरदार पटेल को राष्ट्र मंदिर के कुशल शिल्पी बताते हुए कहा है कि “जर्मनी के एकीकरण में जो भूमिका बिस्मार्क ने और जापान के एकीकरण में जो भूमिका मिडाको ने निभाई उन्हें  विश्व के इतिहास में आश्चर्य माना गया है। ये देश अपने समय तो चार-पाँच करोड़ की जनसंख्या वाले ही थे। किंतु सरदार पटेल द्वारा किए गए भारत के एकीकरण को क्या संज्ञा दी जाय जिसे दुनिया के अन्य देश इसके विशाल आकार और अपरिमित जनशक्ति को देखते हुए ‘उप महाद्वीप’ कहा करते हैं। निश्चय ही यह एफ आश्चर्य ही कहा जाएगा।”(महापुरुषों के अविस्मरणीय जीवन प्रसंग, पं. श्रीराम शर्मा आचार्य वांगमय, संपादक ब्रह्म वरचस, पृ. 4.16) 

दरअसल आजादी के बाद 562 रियासतों को भारत के गणतंत्र में मिलाना- सबको एक करना देश के सामने, देश के शासकों के सामने एक  पहाड़-सी चुनौती थी किंतु लौह पुरुष सरदार पटेल की सूझ बूझ, नीति कौशल, बुद्धिमत्ता, विवेकपूर्ण निर्णय शक्ति तथा अन्य राजनेताओं के सहयोग के कारण भारत को खंड-खंड करने वाली इस विकट समस्या का निराकरण हो गया।

माउंटबेटन और अन्य राज्यों के शाही परिवार के सदस्य   

वैश्विक स्तर पर कुछेक देशों - विशेषत: भारत और जर्मनी के एकीकरण के विषय को लेकर सरदार पटेल और बिस्मार्क की तुलना की जाती है और सरदार को भारत के बिस्मार्क के रूप में देखा जाता है, परंतु हम उन विचारकों के मत से सहमत होंगे जो सरदार को भारत का बिस्मार्क कहने के बजाय बिस्मार्क को जर्मनी का सरदार पटेल कहना ज्यादा पसंद करते हैं। किंतु ऐतिहासिक क्रम से बिस्मार्क सरदार से पहले आते हैं, अतः सरदार को बिस्मार्क कहा जाता है।

दोनों के एकीकरण के काम की तुलना करते हैं तो सरदार के लिए यह काम ज्यादा बड़ा और चुनौतीपूर्ण कहा जा सकता है। मोरारजी देसाई ने अपने एक लेख में पटेल तथा बिस्मार्क की तुलना करते हुए कहा कि बिस्मार्क ने जर्मनी का एकीकरण किया परंतु उन्होंने अधिक समय लिया और वह भी एक छोटे देश में जहाँ कुछ ही राज्य थे तथा एक ही धर्म के लोग थे। परंतु पटेल ने यह कार्य एक विशाल देश में किया जहाँ विभिन्न धर्म तथा भाषा के लोग थे और जहाँ देश के प्रति अधिक देशभक्ति भी न थी।"

बिस्मार्क से भी बड़ी चुनौती सरदार पटेल के लिए थी, क्यों-कैसे? 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में जर्मनी का एकत्रीकरण करने वाले बिस्मार्क के लिए इस काम में सिर्फ 16 राज्यों को ही एकत्र करना था और दूसरी बात ये कि ये सभी राज्यों के निवासी एक ही जाति तथा एक ही धर्म तथा एक ही भाषा बोलने वाले थे। और जर्मनी का उस समय भौगोलिक क्षेत्र लगभग 375000 चो. कि. और जनसंख्या 5 करोड़ के ही आसपास थी, लेकिन भारत जब स्वतंत्र हुआ, सरदार के सामने एकीकरण की चुनौती आई तब तो भारत का एक राज्य का ही (जैसे इस समय विदर्भ जिसमें ग्वालियर, भोपाल, इंदौर एक साथ में थे) क्षेत्र 4 लाख चो. कि. तथा जनसंख्या लगभग साढे पाँच करोड यानी एक राज्य जर्मनी के बराबर और जर्मनी के तो 16 राज्यों को एकत्र करना था, लेकिन भारत के एकत्रीकरण के समय 562 रियासतों, जिसमें धर्म और भाषा को लेकर वैविध्य, जिसके चलते उनको एफ सूत्र में बाँधना वाकई में एक बड़ा काम था जिसे सरदार पटेल ने किया, जो एक असाधारण सिद्धि कही जा सकती। " [प्रस्तावनासे ..... गुजराती पुस्तक- सवाया बिस्मार्क-लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल, दिनेश प्र. देसाई]

राष्ट्रीय एकता को प्राथमिकता देने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल आजीवन भारत की एकता और अखंडता के लिए प्रयासरत रहे और अपने इस महान उद्देश्य व कार्य में सफल भी रहे। 15 अगस्त 1947 को जब भारत आजाद हुआ तब देश में छोटी-बड़ी 562 रियासतें थीं। इन सब रियासतों को देश में मिलाना बड़ी चुनौती भरा काम था। और इसमें भी हैदराबाद और जूनागढ़, जिनके नवाबों ने अपने राज्य को भारत में मिलाने से मना कर दिया। इनको मिलाना तो बहुत बड़ी चुनौती थी, लेकिन इस चुनौती से भी बड़ा एक व्यक्तित्व था-बौद्धिक क्षमता थी-एक समझदारी थी सरदार पटेल के रूप में। सरदार पटेल मतलब एक ऐसी बुद्धि जो यथार्थ समस्याओं का हवाई बातों से नहीं बल्कि यथार्थ धरातल पर समाधान ढूँढ लेती थी। अतः सरदार पटेल ने यह असंभव सा काम संभव कर दिखाया। असल में सरदार पटेल की नीति व मेधा पर बात करते हुए चाणक्य की नीति व बुद्धि का स्मरण हो आता है। भारत के एकीकरण में सरदार पटेल का यह महान योगदान विश्व इतिहास में विशेष उल्लेखनीय रहा है। महत्व की बात यह है कि इतने सारे राज रजवाड़ों का सरदार ने बगैर किसी खास बल प्रयोग के शांतिपूर्ण राजकीय संवाद व समझौते से एकीकरण किया, जो कि इसके लिए सरदार पटेल को लम्बा संघर्ष व कड़ी मेहनत करनी पड़ी, परंतु इन सभी रियासतों में से विशेषत : जूनागढ़, हैदराबाद आदि कुछेक राज्यों को भारतीय संघ में मिलाने के लिए सरदार पटेल को ज्यादा ही लम्बा संघर्ष व मेहनत करनी पड़ी। हैदराबाद को तो मिलाने के लिए सेना बल तक का उपयोग करना पड़ा। और अंततः सरदार पटेल के लोहे जैसे इरादों-संकल्पों के सामने हैदराबाद के नवाब को भी झुकना पड़ा। हैदरबाद का प्रश्न हल करके सरदार पटेल ने भारतीय सैन्य शक्ति और राजनीतिक ताकत का परिचय पूरे देश को कराया।  

हैदराबाद निज़ाम के साथ 

निष्कर्षत: हम कह सकते हैं कि आजादी के बाद देसी रियासतों का भारत संघ में विलय एक बड़ी चुनौती थी, बड़ी कठिनाइयों से भरा काम था और इस चुनौती व कठिनाइयों का मुकाबला करते हुए उक्त समस्या को सुलझाने में सरदार पटेल की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण रही। भारत की एकता और अखंडिता को ही सर्वोपरि मानने वाले इस सरदारने, इस लौह पुरुषने देसी रियासतों को भारत संघ से अलग नहीं होने दिया। हैदराबाद- जूनागढ़, जम्मू कश्मीर जैसी रियासतों को तो भारत संघ में मिलाना बड़ा ही मुश्किल था, लेकिन सरदार पटेल ही थे जो इस मुश्किल और यह कहना भी अत्युक्ति नहीं कि इस असंभव कार्य को इस कद्दावर नेता ने, एक राष्ट्र प्रेमी व राष्ट्र-निर्माता ने अपनी राजनीतिक सूझबूझ, राष्ट्रप्रेम व कूटनीतिक कौशल से कर दिखाया। सरदार पटेल मानते थे, कहते थे कि भारत को यह बर्दाश्त नहीं होगा कि उसके क्षेत्र का कोई ऐसा इलाका रह जाएगा जो उस संघ को नष्ट कर दे जिसे सबने मिलकर अपने खून-पसीने से खंडित नहीं होने दिया। इन्होंने छोटी-छोटी रियासतों के टुकड़ों को जोड़कर भारत वर्ष को उसके मानचित्र व सामाजिक-राजनीतिक व्यवहार-व्यवस्था को लेकर एकजुट एवं सुरक्षित किया। कुछ विचारकों का यह कहना बिल्कुल सही है कि आजादी के बाद इन देसी रियासतों का भारतीय संघ में यदि विलय-एकीकरण न होता तो आज हम भारतवासियों को भारत के ही अलग-अलग राज्यों के बड़े शहरों-नगरों में आने-जाने के लिए वीजा व पोसपोर्ट की जरूरत पड़ती, और आज जैसे दो देशों के बीच संघर्ष होता है वैसा संघर्ष भारत के भीतर ही अलग-अलग रियासातों-राज्यों में होता.... ऐसा नहीं हुआ, कारण है उस समय सरदार पटेल थे.... उनके बुलंद इरादे और हौंसले थे।  सरदार पटेल को इतिहास में अमरत्व प्रदान करने वाले कार्यों में भारत को छिन्न-भिन्न करने वाली समस्या का निराकरण मतलब देसी रियासतों का एकीकरण के कार्य का सबसे पहले उल्लेख किया जाता है।

जूनागढ़ निज़ाम

 




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