हिंदी हाइकु कोश में बेटी विषयक हाइकु
तुकाराम पुंडलिक खिल्लारे
‘हिंदी हाइकु कोश’ में समावेशित चुनिंदा छह हजार से अधिक हाइकु में कुछ बेटियों
पर आधारित भी हाइकु हैं౹ इसी से २५ हाइकु मैं ले आया हूँ౹ हाइकु
का यह अनुपम ख़ज़ाना डॉ. जगदीश व्योम जी ने हमें दिया है౹ यह पुस्तक
हर हाइकुकार एवं हाइकु के पाठक एवं अध्येता के लिए मिल का पत्थर साबित होगी౹
बेटी घर के लोगों की लाड़ली होती है౹ किसी दम्पती को पहली बेटी हुई तो वो
भाग्य का लक्षण माना जाता है౹ मराठी में एक कहावत है,’
पहिली बेटी, तूप रोटी’, यानी ‘पहली बेटी, घी रोटी’౹ ऐसा
ही एक हाइकु देखिए:
‘बेटियाँ जन्मीं / तभी से संसार में / नेकियाँ जन्मीं’
-डॉ. शिवजी श्रीवास्तव
बेटियाँ जन्म से ही बहुत हँसमुख होती हैं౹ वह नींद
से उठते ही इधर उधर घूमते रहती हैं ౹ बेटी की मुस्कान कितनी लुभावनी है౹ देखें
इन हाइकु में -
‘गुनगुनाई / हवाओं ने जो लोरी / बेटी मुस्काई’
- शशि पाधा
‘मिटा देती है / माँ की सारी थकान / बेटी की हँसी’
- ईप्सा यादव
‘हँसती बेटी / बिखरती सुगंध / घर-आँगन’
- सत्या शर्मा ‘कीर्ति’
‘नन्ही-सी लाड़ो / पकड़ना चाहती / मुट्ठी में धूप’
- कंचन अपराजिता
‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ इस योजना के अंतर्गत बेटियों को मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था शासन
द्वारा की गई ౹ फिर भी, भ्रूणहत्या की वारदातें होती रहती हैं౹ कुछ
ही लोग अक्ल के अंधे होते हैं, जो दुर्व्यवहार करते हैं,
बेटी के जन्म पर नाखुश होते हैं;
और मजे की बात देखिए,
जो पहले बेटी थी वह अब सास बनकर बेटी का ही बुरा सोचती है౹
‘बेटी का जन्म / लकवा मारे जैसे / घर के लोग’
- डॉ.शैल रस्तोगी
‘नई कहानी / हुई शुरू फिर से / बेटी जन्मी है’
- ज्योत्स्ना सिंह
‘रोती गुड़िया / किताबों में खो गयीं / नन्हीं परियाँ’
- सुनीता अग्रवाल ‘नेह’
जैसे बेटियाँ माँ बाप के आँखों का तारा होती है,
उतना ही स्नेहमयी बेटी का दिल भी होता है౹ कभी
पिता बाहर गये तो, घर आने तक रो रो कर धराकाश एक करती है౹ माँ
तो उसकी सबकुछ होती है౹ उम्र के पहले ही बेटियाँ सयानी बन घरकाज में ध्यान देती हैं ౹ जिस घर में बेटी नहीं होती,
वो इस अभाव को प्रतिदिन याद करते रहते हैं ౹
‘स्कूल जाती माँ / खिड़की से झाँकती / नन्हीं बिटियाँ’
- पूर्णिमा वर्मन
‘हाथ फैलाये / चले पेंगुइन-सी / मेरी बिटिया’
- नवलकिशोर नवल
‘सात रंगों की / बेटियाँ मेरी बनी / इन्द्रधनुष्य’
- जसवन्त सिंह विरदी
‘दवा के साथ / सलाह देती बेटी / लगे माँ जैसी’
- रामनिवास बांयला
‘देख गरीबी / अच्छे नहीं खिलौने / बिटिया बोली’
- साकेत कुमार सेन
बेटों की तरह बेटियाँ भी हर क्षेत्र में उन्नति के शिखर पर हैं౹ राष्ट्रपति,
प्रधानमंत्री या कलेक्टर,
डॉक्टर क्या नहीं है बेटी! इतनी बड़ी अधिकारी होकर भी वो बेटी
का कर्तव्य नहीं भूलती! ऐसे बड़े पद के बेटे माँ -बाप को पहचानते ही नहीं! ऐसी बहुत
सारी घटनाएँ दिखाई देती हैं౹ कितनी भी उड़ान क्यों न लें,
लड़की के पाँव भू पर ही रहते हैं౹
‘काट बेड़ियाँ / बेटी भरे उड़ान / बढ़ा दे मान’
- प्रवीन मलिक
‘रस्सी टापते / उछली वो लड़की / छुआ आकाश’
- हरेराम समीप
‘गत्ते का घर / छत पर तिरंगा / लगाती बच्ची’
- अनंत पुरोहित ‘अनंत’
कितनी भी बड़ी मुसीबत आये, बेटी उसका मुकाबला बड़े धैर्य से करती है౹ बाहरी
समाज से ही नहीं, घर में भी कभी कभी उसकी प्रताड़ना होती रहती है౹ सारा
दुख अपने दिल में छुपाकर चेहरे पर हँसी कैसे दिखाना यह अनोखी कला हम बेटियों से सीख
सकते हैं౹
‘गोधूलि वेला / गजरा बेच रही / दिव्यांग बाला’
- सविता बरई वीणा
‘होस्टल पथ / बेटी की कुर्ती पर / उड़ते पंछी’
- सुनीता अग्रवाल ‘नेह’
‘बाँटते बेटे / ज़मीन-जायदाद / बेटियाँ दर्द’
- घनश्याम नाथ कच्छावा
‘रोबोट बनी / गरीब की लड़की / बड़े घर में’
- पुष्पा सिंघी
कुछ माँ-बाप ऐसे भी होते हैं, जों बेटी के जनम पर खुश नहीं होते౹ कभी-कभी
प्रसूता माता को ससुराल वाले ऐसे परेशान करते है,
जैसे बेटा या बेटी प्रसूत करना उसके हाथ में हो! बेटी को शादी
के बाद ससुराल जाना पड़ता है, क्या यही वजह इस त्रासदी के पीछे है?
या शादी करके बेटी का नाम बदल जाता है ये भी कारण है?
यह सोच बेकार की है౹ क्योंकि,
कोई कहाँ भी रहे, कुछ घंटों की यात्रा करके इच्छित स्थान पर पहुँच सकते हैं౹ रही
बात नाम की या वंश चलाने की, यह तो एक अंधश्रद्धा ही है౹ आदमी
एक बार कालवश हो गया, तो उसके पीछे उसका कुछ भी नहीं रहता! मरनेवाले के पीछे सारा
धनसंचय कुड़े-कचरे के समान है౹ बेटियों को इस नजरिये से देखना सरासर गलत बात है౹
‘बेटी ने झेली / कोख से कब्र तक / अनन्त पीड़ा’
- डॉ.सूरजमणि स्टेला कुजूर
‘भाई को लाने / बेटी को भेजा स्वर्ग / माता - पिता ने’
- दिनेश चन्द्र पाण्डेय
‘बाल विधवा / अकेली मोमबत्ती / जली,
पिघली’ - नीलमेंदु सागर
बेटी का ब्याह तो एक आँख से हँसना और एक से रोना है౹ लाड़-प्यार
से पली बेटी को ससुराल वाले कैसे रखेंगे, यह आशंका रहती है౹ किंतु यह विचार बेटी के मोह से आता
है, वास्तव
में ऐसा कुछ भी नहीं रहता౹ जरूर, कभी कभार विपरीत घटनाएँ दिखाई देतीं है,
लेकिन, नहीं के बराबर! आजकाल तो बिदाई के समय कैसे रोये,
इसका भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है౹
‘बिंदी-सिन्दूर / लो हो गई बेटियाँ / ख्वाबों से दूर’
- सुशीला शील राणा
‘रातें कटतीं / मगर,
बेटियों-सी / लम्बी दिखतीं’
- द्विजेन्द्र शर्मा
‘हिंदी हाइकु कोश’ में समाये गये विषय बहुत सारे हैं౹ एक लेख
में सभी विषय लिए तो, अच्छे हाइकु भी छूट सकते हैं౹ यह ध्यान
में रखकर ऐसे छोटे परिचय की शृंखला के अंतर्गत मैं अच्छे हाइकु आपके सामने लाने की
कोशिश कर रहा हूँ౹
***
तुकाराम पुंडलिक खिल्लारे
57,
‘पार्वती निवास’
गणपती मंदिर के पास,
लोकमान्यनगर,
परभणी - 431401 ( महाराष्ट्र )
बेटियों पर हाइकु का सुंदर आलेख, बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका ౹
जवाब देंहटाएंसुन्दर आलेख, मेरे भी हाइकु का उल्लेख करने हेतु हार्दिक धन्यवाद.
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