श्रीकृष्ण जन्म
डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी ‘काव्यांश’
बन्दीगृह के ताले,
कैसे टूट गए ।
भाग्य कंस के देखो, कैसे रूठ गए ।।
सातों संतानों को, उसने मार दिया ।
प्रभुजी ने ही उसका, फिर उद्धार किया ।।
मुखड़ा प्रभु का कितना, भोलाभाला है ।
हर्षित संग
देवकी, हर ब्रजवाला है ।।
मोर पंख माथे का, सबको है सोहे ।
मधुरिम मुख मुस्काये, जग को है मोहे ।।
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डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी काव्यांश
जबलपुर
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