बुधवार, 30 जुलाई 2025

आलेख

 

मुंशी प्रेमचन्द

डॉ. राजकुमार शांडिल्य

ऐसा कोई छात्र, अध्यापक और साहित्यकार नहीं होगा जो कहानी-उपन्यास के क्षेत्र में अग्रगण्य उपन्यास सम्राट मुन्शी प्रेमचंद के नाम से परिचित न हो। वे जनमानस के अध्येता चिन्तक और अपने युग की समस्याओं को अपनी सूक्ष्म दृष्टि से समझकर सहज समाधान प्रस्तुत करने वाले विश्वविख्यात  लेखक हैं। वे कालजयी रचनाओं के कारण युगों तक अमर, यशस्वी बने रहेंगे।

इनका जन्म लम्ही ग्राम, वाराणसी, उ . प्र.  में 1880 में हुआ। इनका नाम धनपतराय था लेकिन नवाब राय नाम से उर्दू में लेखन आरम्भ किया।  युग प्रभाव से हिन्दी की ओर आकृष्ट हुए। कुछ पत्रों का सम्पादन किया फिर सरस्वतीप्रेस नाम से अपनी प्रकाशन संस्था की स्थापना की।  देशभक्ति के पथ पर दृढ़ रहने से सरकार का दबाव रहा।  इनकी आत्मा की आवाज़ पाठकों तक पहुँची। पटकथा लेखक थे तो फिल्म निर्माताओं की इच्छा के अनुसार लिखने का बन्धन था इसलिए इन्होंने स्वतन्त्र लेखन का रास्ता चुना।  निरन्तर साहित्य साधना करते हुए जीवनभर अभाव से संघर्ष करते रहे और सन् ई. 1936 में स्वर्गवास हो गया।

सभी वर्ग इनकी रचना का विषय बने।  निर्धन, पीड़ित, पिछड़े वर्ग के प्रति इनकी विशेष सहानुभूति है। शोषक-शोषित दोनों वर्गों का सुन्दर चित्रण हुआ है। वे ग्रामीण जीवन के चित्रण में अप्रतिम हैं।  इनका साहित्य कथात्मक, नाटकीय, वर्णनात्मक तथा स्वाभाविक शैली में रचित है। यहाँ मौलिक चिंतन, गंभीर अध्ययन और सूक्ष्म दृष्टि का परिचय मिलता है। कला की दृष्टि से उच्चस्तरीय साहित्य इनके प्रतिभा सम्पन्न होने का साक्षी है। कथा साहित्य ठोस जीवन पर आधारित मानव जीवन का प्रतिबिंब तथा मानव कल्याण की भावना से ओतप्रोत है। वे साहित्य को जीवन की आलोचना मानते हैं। इसमें उस काल की सामाजिक, राजनैतिक तथा आर्थिक अवस्था का विशद चित्रण है। इसमें राजनैतिक गतिविधियों और जन मानस उद्वेलन की गूँज सुनाई देती है। वे साहित्य में युग को साथ लेकर चले। उन्होंने जैसा देखा और भोगा वैसा ही कथा साहित्य में अवतरित हुआ और कहीं-कहीं युग को दिशा निर्देश देने का प्रयत्न किया। आश्रमों और सदनों द्वारा समस्या का समाधान देने का प्रयत्न किया है। सुधार वाद के संस्कार लेकर उन्होंने साहित्य जगत् में पदार्पण किया। उपन्यास साहित्य में इसकी प्रतिध्वनि सुनाई देती है।

उस समय जनता कृषि पर निर्भर थी। प्रेमचंद ने ईमानदारी और सहानुभूति से कृषक वर्ग का चित्रण किया है।

उस समय मध्य वर्गीय समाज दिखावे की भावना से ग्रस्त, झूठी सम्मान की भावना का भक्त, आर्थिक विषमता के कारण उद्विग्न तथा राजनैतिक चेतना के कारण समाज का नेतृत्व करने के लिए लालायित था।

इन्होंने कृषक और मध्य वर्ग दोनों की यथार्थस्थिति का मार्मिक एवं सजीव चित्रण किया है। उच्च वर्ग को अभावों में पलने वाले प्रेमचन्द की सहानुभूति प्राप्त नहीं हो सकी। उन्होंने किसी क्रांति का आह्वान नहीं किया। समाज में फैली कुरीतियों के उन्मूलन से सुधार पर बल दिया है।

उन्होंने समष्टिगत भावनाओं को अधिक महत्वपूर्ण माना है। मानव जीवन के यथार्थ का ही चित्रण संवेदनशीलता के साथ किया है। कहानियों में वैयक्तिक जीवन का चित्रण अधिक हुआ है। समाज से ही व्यक्ति का अस्तित्व है। समाज से विछिन्न होकर उसका मूल्य शून्य ही रह जाता है। वे व्यक्ति को व्यक्ति की दृष्टि से नहीं सामाजिक दृष्टिकोण से आंकते हैं।

उस युग में नारी जीवन ही समस्याओं से भरा हुआ था। विधवा समस्या, वेश्या समस्या, दहेज समस्या, बेमेल विवाह, आर्थिक स्वतंत्रता की समस्या, शिक्षा प्राप्ति की समस्या, सामाजिक और राजनैतिक अधिकार प्राप्ति की समस्याएँ नारी का रास्ता रोके खड़ी थी।

अछूतों की समस्या - छुआछूत, मंदिर प्रवेश, शादी आदि। वे सजग साहित्यकार होने के कारण किसी भी समस्या की उपेक्षा नहीं कर सके।

दहेज प्रथा के कारण अनेक भोली- भाली निर्दोष लड़कियों को जीवन भर दारुण दु:ख भोगना पड़ता है। इन सभी समस्याओं को इन्होंने अपने उपन्यासों में उठाया।

उन्हें हरिजनों( अछूतों) और अन्य लोगों में विवाह संबंध का समर्थन किया। उनके मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष भी करना पड़ा।

इनके साहित्य में मध्य वर्गीय समाज की दिखावे की भावना, ईर्ष्या -द्वेष, आभूषण -प्रियता आदि का चित्रण मिलता है। यहाँ शोषित वर्ग का दारुण क्रंदन सुनाई देता है। स्वार्थ - लिप्सा में फंसे लोगों की नीचता,  सामंत शाही का बोलबाला, धर्म का खोखला पन, शोषण तथा संयुक्त परिवार प्रथा के टूटने का चित्रण भी है। यहाँ साधन हीन, महत्त्वहीन, निम्नवर्ग के पात्रों की सहानुभूति और कुशलता से प्रस्तुति अनुपम है। गोदान में होरी किसान का नायक के रूप में सजीव चित्रण हुआ है।

यथार्थ की भित्ति पर खड़ी स्वतंत्र रचना गोदान कृषक जीवन का महाकाव्य है। इसमें ग्रामीणों की निर्धनता, विवशता, रूढ़िवादिता आदि का सुंदर चित्रण है। ऋण के बोझ से दबा समाज से संत्रस्त  किसान होरी मजदूर बन जाता है । यहाँ नागरिक और ग्राम्य जीवन का तुलनात्मक चित्र प्रस्तुत किया है। यहाँ साहित्य समाज का दर्पण होता है कथन की सत्यता दिखाई देती है।

 

डॉ. राजकुमार शांडिल्य

हिन्दी प्रवक्ता

शिक्षा विभाग चंडीगढ़


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