बुधवार, 30 अप्रैल 2025

आलेख

 

कन्नड़ साहित्य में मूलभूत कौशल

(विशेष संदर्भ दिगंबर विद्रोहिणी : अक्क महादेवी)

डॉ. सुपर्णा मुखर्जी

शोध सार- मूलभूत कौशल का अंग्रेजी अर्थ होता है ‘Basic Skills’. यानी जीवन को जीने के लिए जो नियम या पद्धति हमेशा एक समान रहते हैं उन्हें ही मूलभूत कौशल या ‘Basic Skills’ कहा जाता है। अब नियम तो बहुत सारे हैं उनमें से कौन से नियम या कौशल दीर्घ जीवन काल यात्रा को प्रभावित करते हैं यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। मनुष्य जन्म लेने के बाद जैसे ही होश संभालता है अपने परिवार के माध्यम से धार्मिक, सामाजिक, नैतिक बातों को लिखित और मौखिक नियमों के माध्यम से जानने-समझने लगता है। ये नियम लिखित और मौखिक दोनों ही रूपों में कथा-कविता के माध्यम से देखने-सुनने को मिलता है। इस प्रकार से साहित्य और मूलभूत कौशल एक दूसरे के साथ जुड़ गए है। प्रस्तुत आलेख में कन्नड़ साहित्य में मूलभूत कौशलकैसे दिखाई पड़ता है? इसी प्रश्न को केंद्र में रखकर चर्चा की गई है।  इस कड़ी में विशेष रूप से कन्नड़ साहित्य की लेखिका अक्क महादेवी के साहित्य को आलेख का विशेष संदर्भ स्वरूप लिया गया है। आज जब आधुनिकता के नाम पर कहीं-कहीं स्त्रियाँ भी अनुशासनहीनता की शिकार दिखाई पड़ती हैं वहाँ अक्क महादेवी का जीवन और साहित्य दोनों दिशानिर्देश प्रदान करने में सक्षम दिखाई पड़ती है।

बीज शब्द- 1. मूलभूत 2. कौशल 3. दिगंबर 4. वीरशैव 5. सर्वविदित 6. श्रीशैल 7. ब्राम्ही लिपि 8. व्यक्तित्व 9. मल्लिकार्जुन 10. शिवमोग्गा 11. उतुतडी 12. मानवाधिकार 13. सामाजिक न्याय 14. अस्तित्व

1.   प्रस्तावना- मूलभूत कौशल का अर्थ होता है- किसी भी प्रकार के काम को करने के लिए या स्वयं के द्वारा किए गए काम को दूसरों तक पहुँचाने के लिए अपनी योग्यता अर्थात बोलने की योग्यता, लिखने की योग्यता, सुनने की योग्यता आदि को विकसित करना। व्यक्ति जैसे ही एक आयु के बाद समाज के साथ जुड़ता है वैसे ही वह अपनी मूलभूत कौशल को जाने-अनजाने ही विकसित करने लगता है। जो व्यक्ति अपनी मूलभूत कौशल को लेकर जितना सचेत होता है उतना ही वह व्यक्ति के रूप में अपने व्यक्तित्व को विकसित कर पाता है। मूलभूत कौशल को निखारने में माता-पिता, गुरु, पठनीय पुस्तकों और साहित्यिक पुस्तकों का महत्वपूर्ण योगदान रहता है।

     प्रस्तुत आलेख में कन्नड़ साहित्य में मूलभूत कौशल को विकसित करने में अक्क महादेवी ने कैसे योगदान दिया? इसी विषय पर चर्चा की गई है।

2.   विश्लेषण- शोध सार, बीज शब्द और प्रस्तावना इन सबका अवलोकन करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि आगे आलेख में कन्नड़ साहित्य की विशेषताओं को दर्शाते हुए आलेख जैसे-जैसे आगे बढ़ेगा अक्क महादेवी के जीवन को समझने के साथ-साथ उनके साहित्य में कैसे जीवन को नवीन तरीके से देखने के लिए प्रेरित किया गया है इसका अद्धयन करने का अवसर भी पाठकों को मिलेगा।

3.   कन्नड़ साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ- दिगंबर विद्रोहिणी:अक्क महादेवी नामक पुस्तक में कन्नड़ साहित्य की जानकारी देते हुए लिखा गया है कि,  “कन्नड़ भाषा का अस्तित्व करीब 2,500 साल पहले से है। कन्नड़ भाषा संस्कृत भाषा से बहुत अधिक प्रभावित है। कन्नड़ लिपि, अशोकन ब्राम्ही लिपि की दक्षिणी किस्मों से प्रभावित हुई है। कन्नड़ साहित्य को विकसित करने में पंपा, रन्ना, पोन्ना, कुमारव्यास, हरिहर आदि साहित्यकारों का महत्वपूर्ण योगदान तो रहा ही है साथ ही साथ कन्नड़ की स्त्री भक्ति आंदोलन ने कन्नड़ साहित्य को अलग ही पहचान प्रदान की है। पाँचवी, छठी शताब्दी में तमिलनाडु में जन्मी भक्ति ने बाद के एक हज़ार वर्षों में भारत के विशाल भूभाग की हवा को अपनी मानवीयता, अपने माधुर्य, अपने बेलागपन और अपने क्रांतिकारी विचार-गीतों, पदों, वचनों, वाखों और साखियों की सुगंध से सराबोर कर दिया। बड़ी संख्या में स्त्रियाँ इस आंदोलन का हिस्सा बनीं, जिन्हें हम आज भी बहुत आदर, सम्मान से याद करते हैं1

   आंडाल, कोट्टणद सोमम्मा, लिंगम्मा आदि के साथ ही साथ अक्क महादेवी का नाम इस धार्मिक आंदोलन में प्रमुख रूप से लिया जाता है। जीवन कौशल सीखने की आवश्यकता हरेक को है और माँ प्रथम गुरु होती है जो चलना, बोलना, खाना आदि सभी सीखते हुए जीवन कौशल के साथ ही जोड़ देती है। तमिलनाडु के इस स्त्री भक्ति आंदोलन ने और इस आंदोलन में भाग लेनेवाली असाधारण स्त्रियों  ने तमिल साहित्य को सदा के लिए जीवन कौशल के साथ जोड़कर उसे समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

4.   अक्क महादेवी का संक्षेप में जीवन परिचय- अक्क महादेवी का जीवन एक मधुर संगीत-यात्रा की तरह है। दिगंबर विद्रोहिणी:अक्क महादेवी नामक पुस्तक में उनकी इस भक्ति यात्रा को विश्लेषित करते हुए लिखा गया है कि, “वे एक अनोखे, असाधारण जीवन की अद्भुत महायात्रा को जिस तन्मयता और काव्यतात्माकता से गाती हैं, वह भक्ति के देखना दुर्लभ है। उनकी यात्रा एक दुनिया से चल कर दूसरी दुनिया में जाने की है, मर्त्य से अमर्त्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर, समस्त भौतिक सीमाओं के पार असंभव और अनंत की ओर जाने की है। उन्हें लक्ष्य का पता है, रास्ते का नहीं। रास्ता वे स्वयं बनाती हैं2.

उनका जन्म हुआ तमिलनाडु के शिवमोगगा के उतुतडि गाँव बारहवीं शताब्दी में 1130-1150 इसवीं के बीच में हुआ। यह गाँव सुंदर प्राकृतिक परिवेश से भरा हुआ था। इनकी माँ का नाम सुमति और पिता का नाम निर्मल था। घर का वातावरण शैवमय था। गुरु के रूप में अक्क महादेवी को गुरु लिंगदेवारू मिलें। जिन्होंने महादेवी को शिव नाम की दीक्षा दी। महादेवी ने चेन्न मल्लिकार्जुन को ही अपना पति स्वीकार कर लिया। लेकिन समाज का दबाव या फिर नियति जो भी कहें राजा कौशिक युवा महादेवी के रूप से सम्मोहित हुआ और उनसे महादेवी को विवाह करना पड़ा। शिव प्रेम यहाँ समाप्त नहीं हुआ यहीं से तो उनकी मुक्ति और साधना का मार्ग और भी अधिक प्रशस्त हो गया। महादेवी ने हिम्मत करके पति का राजमहल यहाँ तक कि शरीर के वस्त्र तक को त्याग दिया। पग-पग पर बाधाओं को देखा लेकिन बिना डरे शिव प्रेम में मतवाली महादेवी आगे बढ़ती रहीं। दिगंबर विद्रोहिणी:अक्क महादेवी नामक पुस्तक के अनुसार, “श्रीशैल पहुँच कर वे खुशी से नाच उठती हैं। वे महसूस करती हैं कि यह पर्वत सामान्य पर्वत नहीं है, यहाँ का जंगल सामान्य नहीं है। उन्हें विश्वास है कि यहीं उनका प्रियतम रहता है। वे प्रेम की अपूर्व मादकता में खो जाती हैं। प्रिय के घर पहुँचने का नशा मन पर हावी हो जाता है। उन्हें चारों ओर मल्लिकार्जुन दिखाई पड़ने लगते हैं3.

दिगंबर विद्रोहिणी:अक्क महादेवी नामक पुस्तक में महादेवी कैसे शिवमय हो जाती हैं उसका वर्णन करते हुए लिखा गया है कि, “श्रीशैल में उनका प्रियतम उनका स्वागत करता है। उसने पल-पल देखा है उनकी पीड़ा, उनका संघर्ष। उसने महसूस किया है उनकी मिलन की आतुरता, एक होने की उनकी अदम्य, अकुंठ चाह। वह उडुतडि से ही चल रहा था उनके साथ। वही ले रहा था उनकी परीक्षा, जैसे अपनी ही परीक्षा ले रहा हो। वह उनकी पीड़ा में शामिल था। वही ले गया उन्हें कल्याण, वही ले आया उन्हें श्रीशैल। जैसे महादेवी अब एक पल का भी विछोह सहने को तैयार नहीं हैं, वैसे वह भी अपनी प्रिया को और भुलावे में नहीं रखना चाहता था। उसने बाँहें फैलायीं और महादेवी को अपने अंतिम आलिंगन में कस लिया। वे उसी में समा गयीं। एक महायात्रा पूरी हुई। एक इतिहास का जन्म हुआ”।4

अवश्य ही अक्क महादेवी की जीवन गाथा भक्ति, लौकिक जीवन और अलौकिक जीवन की त्रिवेणी के संगम को दर्शाता है।

5.   अक्क महादेवी का साहित्य और जीवन कौशल- यह तो सर्वविदित तथ्य है कि साहित्य तो जीवन को जीवन जीने के नए मार्गों के साथ जोड़ता है। अक्क महादेवी का साहित्य भी इससे पृथक नहीं है। अक्क महादेवी की रचनाओं को पढ़ने से निम्न कौशलों का विकास तो अवश्य ही होता है-

5.1 स्त्री जीवन और भक्ति कौशल-  अक्क महादेवी कर्नाटक के नाम के बिना कर्नाटक के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन को समझना उसका अधूरा ज्ञान पाना ही है। दिगंबर विद्रोहिणी:अक्क महादेवी नामक पुस्तक में कर्नाटक के भक्ति साहित्य में महादेवी के योगदान की विस्तृत जानकारी देते हुए स्पष्टतया लिखा गया है कि, “महादेवी ने न केवल दक्षिण भारत के सामाजिक जीवन को रूढ़िग्रस्त मानसिकता से मुक्त किया था अपितु भारतीय साहित्य को भी अपने वचनों के द्वारा प्रभावित किया। अभी तक उनके 434 वचनों को खोजकर पाया गया है। वचन साहित्य अपने मूल रूप में भक्ति साहित्य हुआ करता था, उन्हें धर्म साहित्य की मान्यता दिलाने का प्रयास भी नहीं किया गया था। वचन साहित्य के केंद्र में शिव अवश्य ही थे।  इसी कारण से वीरशैव आंदोलन के साथ वचन साहित्य का संबंध  जुड़ा हुआ दिखाई पड़ता तो है लेकिन वीरशैव आंदोलन ने मनुष्य को धार्मिक जड़ता से बाहर निकालकर मनुष्य को मनुष्यता के साथ जोड़ने का महत्वपूर्ण  कार्य किया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि वीरशैवआंदोलन ने पहली बार घोषित किया कि ज्ञान पर स्त्रियों का भी अधिकार है, एकांत और अध्यात्म पर भी उनका उतना ही अधिकार है, जितना पुरुषों का। जब पश्चिमी देशों में भी स्त्रियों पर अनेक तरह के बंधन थे, उन्हें पुरुषों के बराबरी के अधिकार नहीं मिले थे, उस समय 12वीं शताब्दी में बड़ी संख्या में महिलाएँ या तो अपने पतियों के साथ या पतियों को अस्वीकार कर वीरशैव आंदोलन की छतरी के नीचे आ गयी थीं। वे पुरुषों के साथ बैठ कर समान अधिकार से विचार-विमर्श कर रहीं थीं, वचन रच रही थीं और समाज को नेतृत्व प्रदान कर रही थीं5  

  एक योगिनी ने 12वीं शताब्दी में स्त्री विमर्श को भक्ति के साथ ही जोड़ दिया था। इस योगदान को अनदेखा करना या कमतर आँकना मूर्खता ही होगी।

5.2 दैहिक स्वतन्त्रता को पाने का कौशल- स्त्री देह हमेशा से ही सौन्दर्य, आकर्षण, रहस्य का विषय रहा है। राजा कौशिक भी तो युवा अक्क महादेवी के रूप सौंदर्य को देखकर ही उसे पाने के लिए पागल हो गया था। वह कहाँ समझ सका था महादेवी की साधना की शक्ति को। इसी कारण से संसार भर के अधिकांश धर्मों ने स्त्री शरीर को माया की जननी मानकर उसे धर्म क्षेत्र से अलग रखा लेकिन यह तो कोई तार्किक बात हुई नहीं। धर्म ने स्त्री को कैसे परिभाषित किया है? यह समझना आवश्यक है। दिगंबर विद्रोहिणी:अक्क महादेवी नामक पुस्तक में धर्म कैसे मनुष्य जीवन को परिभाषित करता है इसका विश्लेषण करते हुए लिखा गया है कि, “चेतना के स्तर पर पुरुष और प्रकृति या स्त्री में कोई भेद नहीं है लेकिन देह के स्तर पर भिन्नताएँ हैं। यह भिन्नता ही सृजन का मूल है, इसी में सौंदर्य भी है। पुरुष ने जब भी इसे समझने की कोशिश की है, उसके भीतर स्त्री की शक्ति और सामर्थ्य के प्रति आदर भाव पैदा हुआ है लेकिन जब भी उसने देह को अपनी जरूरत की तरह देखा है, उस पर नियंत्रण की कोशिश की है, उसने खुद को भटकाव की गहरी सुरंग में डाल दिया है। काम मंगल से मंडित श्रेय, सर्ग इच्छा का है परिणाम। लेकिन अमंगल काम ने हमेशा स्त्रियों का पीछा किया है, उन्हें भोग की वस्तु बनाया है, उन्हें कैद में डाला है, उनके अधिकार छीने हैं, उन्हें यातनाएं दी हैं, मारा है6 

        अक्क महादेवी ने अमंगल काम का विरोध कैसे करना है इसे अपने जीवन के द्वारा स्त्रियों को सिखाया है। कामान्ध पति ने जब ध्यानामग्न महादेवी को खींचकर अपने कक्ष की ओर ले जाने का प्रयास किया तब छीना-झपटी में महादेवी की साड़ी खींच गई। महादेवी ने साड़ी को संभालने का प्रयास नहीं किया। कौशिक के साड़ी को खींचने से वे निर्वस्त्र हो गयीं। महादेवी मुड़ी और उसी अवस्था में महल से निकल गईं। केदारनाथ सिंह महादेवी की नग्नता को पुरुष वर्चस्व के विरुद्ध एक स्त्री के आक्रोश के रूप में देखते हुए अपना वक्तव्य इस प्रकार से दिया है कि, “सबसे चौंकाने और तिलमिला देने वाला तथ्य यह है कि अक्क ने सिर्फ राजमहल नहीं छोड़ा, वहाँ से निकलते समय पुरुष वर्चस्व के विरुद्ध अपने आक्रोश की अभिव्यक्ति के रूप में अपने वस्त्रों को भी उतार फेंका। यह पूरे संभ्रांत वर्ग की सुरुचि के गाल पर एक तमाचे की तरह था, जो आज भी इतिहासकारों को विचलित करता है। पर अंतत: स्त्री को पुरुष नेत्रों का सामना तो करना था। कहते हैं, अक्क ने इसका समाधान यह निकाला कि वह अपनी नग्नता को अपने लंबे-लंबे केशों से ढँक लिया

जिसके चलते उनका नाम केशांबरा पड़ गया था। पर इस सारी पीड़ादायक स्थिति से गुजरते हुए इस महान कवि को, अपने भीतर और बाहर जो झेलना पड़ा, उसका साक्ष्य है उनकी कविता7

दिगंबर विद्रोहिणी: अक्क महादेवी नामक पुस्तक में महादेवी की कविताओं को भी उद्धृत किया गया है। महादेवी के द्वारा लिखित निम्न पंक्तियों को देखना उचित होगा। महादेवी ने लिखा है कि,

छीन सकते हो हमारे पास

जो धन-संपदा है

पर कभी क्या छीन पाओगे

हमारी देह का वैभव?

खींच सकते हो कभी भी

चीर तुम इस देह से

पर कभी क्या इस देह की इस शून्यता को

नग्नता को खींच पाओगे?

सुबहधर्मी ज्योति शिव की पहन कर

लड़की खड़ी जो

अरे मूर्खों, क्या जरूरत है उसे

अब वस्त्र की, आभूषणों की8

                    महादेवी ने आधुनिक बनने के लिए या किसी भी प्रकार से पुरुष वर्चस्व को नकारने के लिए स्वयं को निर्वस्त्र नहीं रखा बल्कि उन्होंने अतार्किक विचारों का विरोध करने के लिए किसी भी प्रकार का त्याग और विरोध तार्किक है यह जीवन कौशल विशेष रूप से स्त्रियों को सदियों पहले सीखा दिया था। आज जब सभ्यता की चरम पराकाष्ठा के युग में स्त्री अस्पताल, स्कूल, कॉलेज, बस, घर आदि कहीं भी सुरक्षित अनुभव नहीं कर रही है। ऐसे समय में 12वीं शताब्दी की इस कवयित्री की आवश्यकता और भी अधिक बढ़ गई है।

5.3     जीवन में श्रम को महत्व देने का कौशल- दिगंबर विद्रोहिणी:अक्क महादेवी नामक पुस्तक का पढ़ने वीरशैव आंदोलन के नेतृत्वकर्ताओं ने समाज में श्रम प्रतिष्ठा की। संतों ने घोषणा की कि कायकवे कैलास:’ यानी कायक ही कैलास है, श्रम ही स्वर्ग है, श्रम ही जीवन का शिखर है। श्रम के बिना शिव को प्रसन्न कर पाना संभव नहीं है। भक्ति का मतलब यह नहीं लगाया जाना चाहिए कि जीने के लिए वह समाज पर निर्भर रहे। भक्त को अपनी मेहनत से अपनी जीविका उपार्जित करनी चाहिए9  

   भक्ति के नाम पर, जाति के नाम पर मनुष्य को जब अंधकार में धकेल दिया जा रहा था उस समय अक्क महादेवी ने अपनी रचनाओं के द्वारा समाज को जागरूक किया। दिगंबर विद्रोहिणी:अक्क महादेवी नामक पुस्तक में उनकी जागरूकता फैलानेवाली कविताओं को लेखक सुभाष राय जी ने विशेष रूप में स्थान दिया है। ऐसी ही एक कविता को यहाँ प्रस्तुत करना उचित होगा,

किसी भी हालत में चलते हुए

स्वप्न देखते हुए या सोते हुए

कपड़े उतार दिये तो कौन सा तीर मार लिया

जब तक मन पर चढ़ी कालिमा के

वस्त्र को नहीं उतार फेंकते

बात बनने वाली नहीं10

 अक्क महादेवी केवल एक भक्तिन नहीं थी जो तपस्या में बैठकर मोक्ष  प्राप्त कर लेने को ही अपने जीवन लक्ष्य मानती थी इसके विपरीत संसार की भलाई के लिए कहाँ, क्या परिवर्तन होना चाहिए? इस विषय को लेकर वे सचेत थीं। आज जब विश्व तृतीय विश्वयुद्ध जैसी घटना की  कल्पना करने से कई बार स्वयं को रोक नहीं पाता है। ऐसे में दिगंबर विद्रोहिणी: अक्क महादेवी नामक पुस्तक में उद्धृत इस दिगंबर कवयित्री के यह कथन को पढ़ना उचित होगा।   भक्ति में जिस शौर्य की ज़रूरत होती है, जीवन में भी कदम-कदम पर वैसी ही युद्ध सामर्थ्य चाहिए। महादेवी ने लिखा कि,

एक बहादुर के लिए युद्धभूमि से

पीठ दिखा कर लौटना उचित नहीं है

रण में गए और तलवार भूल गये

तो दुश्मन छलनी कर देगा’’11  

          उनका यह कथन चिरसत्य ही रहेगा क्योंकि जीवन किसी संघर्ष से कम नहीं है और इस संघर्ष में वही विजेता होता है जिसने अपनी  अस्तित्व की लड़ाई और अपनी श्रम शक्ति के साथ समझौता नहीं किया है।

5.4     आत्माभिव्यक्ति का कौशल- दिगंबर विद्रोहिणी:अक्क महादेवी नामक पुस्तक में सामाजिक न्याय, मानवाधिकार आदि विषयों से संबंधित नियमों, सूचनाओं, आदि की जानकारी देते हुए लिखा गया है कि, “सामाजिक न्याय और मानवाधिकार ये कोई नए मुद्दे नहीं हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सन्1948 में मानवाधिकार के वैश्विक घोषणापत्र को स्वीकार किया, जिसमें कहा गया कि सभी मनुष्य जन्म से स्वाधीन हैं, सबके अधिकार और सबकी गरिमा अक्षुण्ण है। मानव सभ्यता के उदय के साथ ही विश्व के सभी धर्मों में मानवाधिकार के तत्व पाये जाते रहे हैं, इसके बावजूद हमारे समाज में गैरबराबरी, छुआछूत और भेदभाव हमेशा बना रहा’’12

 क्योंकि मनुष्य अपने अधिकार तभी प्राप्त कर सकता है जब वह अपने हिस्से की बात को स्पष्टतया रखने की क्षमता अर्जित कर लेता है। इसे ही आत्माभिव्यक्ति का कौशल कहा जाता है। अक्क महादेवी ने अपनी कविताओं के द्वारा व्यक्ति को आत्मचिंतन और आत्माभिव्यक्ति के लिए प्रेरित किया है। दिगंबर विद्रोहिणी:अक्क महादेवी नामक पुस्तक में महादेवी द्वारा रचित स्त्री भर नहीं हूँ कविता को स्थान दिया गया है। प्रस्तुत कविता की निम्न पंक्तियों को देखना तर्कसंगत होगा।

मुझे स्त्री कहते हो

लेकिन अपने भीतर

की स्त्री से कभी

परिचित नहीं हो सके तुम

मैं जितनी स्त्री हूँ, उतनी स्त्री

तुम्हारे भीतर भी है

तुम जीतने पुरुष हो

उतना पुरुष

मेरे भीतर भी है

 

मैं मिलना चाहती हूँ

मेरे भीतर के पुरुष से

क्या कभी तुम्हारा मन हुआ

अपने भीतर की

स्त्री से मिलने का

क्या कभी तुमने मिलने दिया

अपने भीतर की स्त्री को

अपने ही पुरुष से’’13   

महादेवी ने अपने नाम के समान ही अपने काम के साथ पूर्णतया न्याय किया है।

6.   निष्कर्ष - अक्क महादेवी ने अपने जीवन को लेकर बातें नहीं की थी। लेकिन जैसा जीवन उन्होंने जिया, वह सबके लिए प्रेरणादायी था, आज भी है और भविष्य में भी रहेगा। महादेवी की रचनाओं को समझना ही जीवन जीने की कौशल को सीखने का एक और तरीका है।

7.   संदर्भ सूची

1.  सुभाष राय, दिगंबर विद्रोहिणी:अक्क महादेवी, प्रकाशक: सेतु प्रकाशन प्रा.लि.,

सी-21, सेक्टर-65,नोएडा (उत्तर प्रदेश) 201301, प्रथम संस्करण: 2024, पृ. सं.-30

2.   सुभाष राय, दिगंबर विद्रोहिणी:अक्क महादेवी, प्रकाशक:सेतु प्रकाशन प्रा.लि.,सी-21, सेक्टर-65, नोएडा (उत्तर प्रदेश) 201301, प्रथम संस्करण: 2024, पृ.सं.-188

3.  सुभाष राय, दिगंबर विद्रोहिणी:अक्क महादेवी, प्रकाशक:सेतु प्रकाशन प्रा.लि.

सी-21, सेक्टर-65, नोएडा (उत्तर प्रदेश) 201301, प्रथम संस्करण: 2024, पृ.सं.- 204

4.  सुभाष राय, दिगंबर विद्रोहिणी: अक्क महादेवी, प्रकाशक:सेतु प्रकाशन प्रा.लि.

सी-21, सेक्टर-65, नोएडा (उत्तर प्रदेश) 201301,प्रथम संस्करण:2024, पृ.सं.- 205

5.   सुभाष राय, दिगंबर विद्रोहिणी: अक्क महादेवी प्रकाशक:सेतु प्रकाशन प्रा.लि.

 सी-21, सेक्टर-65, नोएडा (उत्तर प्रदेश) 201301, प्रथम संस्करण:2024 पृ.सं.- 131

6.  सुभाष राय, दिगंबर विद्रोहिणी:अक्क महादेवी प्रकाशक:सेतु प्रकाशन प्रा.लि.

7.  सी-21, सेक्टर-65, नोएडा (उत्तर प्रदेश) 201301, प्रथम संस्करण:2024, पृ.सं.- 77

8.  सुभाष राय, दिगंबर विद्रोहिणी:अक्क महादेवी,प्रकाशक : सेतु प्रकाशन प्रा.लि.,

सी-21, सेक्टर-65, नोएडा (उत्तर प्रदेश) 201301, प्रथम संस्करण:2024, पृ.सं.- 84

9.  सुभाष राय, दिगंबर विद्रोहिणी:अक्क महादेवी, प्रकाशक: सेतु प्रकाशन प्रा.लि., सी-21,

सेक्टर-65, नोएडा (उत्तर प्रदेश) 201301,प्रथम संस्करण:2024, पृ.सं.- 69

10.    सुभाष राय, दिगंबर विद्रोहिणी:अक्क महादेवी, प्रकाशक: सेतु प्रकाशन प्रा.लि.,

सी-21, सेक्टर-65, नोएडा (उत्तर प्रदेश) 201301, प्रथम संस्करण: 2024, पृ. सं.-134

11.    सुभाष राय, दिगंबर विद्रोहिणी: अक्क महादेवी, प्रकाशक: सेतु प्रकाशन प्रा.लि.,

सी-21, सेक्टर-65, नोएडा (उत्तर प्रदेश) 201301, प्रथम संस्करण:2024, पृ. सं. 291

12.    सुभाष राय, दिगंबर विद्रोहिणी: अक्क महादेवी, प्रकाशक: सेतु प्रकाशन प्रा.लि.

सी-21, सेक्टर-65, नोएडा (उत्तर प्रदेश) 201301, प्रथम संस्करण:2024, पृ. सं. 290,

13.    सुभाष राय, दिगंबर विद्रोहिणी:अक्क महादेवी, प्रकाशक : सेतु प्रकाशन प्रा.लि.

सी-21, सेक्टर-65, नोएडा (उत्तर प्रदेश) 201301, प्रथम संस्करण:2024 पृ. सं.-145-146

14.    सुभाष राय, दिगंबर विद्रोहिणी:अक्क महादेवी, प्रकाशक: सेतु प्रकाशन प्रा.लि.

सी-21, सेक्टर-65

नोएडा (उत्तर प्रदेश) 201301

प्रथम संस्करण:2024

पृ. सं.- 416

संदर्भ ग्रंथ

   सुभाष राय

दिगंबर विद्रोहिणी

अक्क महादेवी

प्रकाशक : सेतु प्रकाशन प्रा.लि.

सी-21, सेक्टर-65

नोएडा (उत्तर प्रदेश) 201301

      ISBN: 978-81-19899-76-0

     प्रथम संकरण-2024

      मूल्य – 449

डॉ. सुपर्णा मुखर्जी

सहायक प्राध्यापक

भाषा विभाग

भवंस विवेकानंद कॉलेज

सैनिकपुरी केंद्र

हैदराबाद – 500094

 

 

 

 

 

  

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