शनिवार, 30 नवंबर 2024

कविता



हेमंत ऋतु

सुरेश चौधरी

आनंद  अनंत   विद्यमान  है   रवि  ईशान  है

नम सूर्यप्रभा  में नव  दुकूल धारता उद्यान है

आतप भानु का अनजान है शीत का भान है

अहर्ता  उत्थान  है  सांध्य प्रभास प्रतिमान है

 

ऋतु शीत है, धरा तुहिन पोषित है, संगीत है

मकरंद  सरोरुह  अर्जित है, भ्रमर  गुंजित है

कलत्व-मुदित राग गुंजित है मदन ग्रषित है

मंजरी  झूम झूम पल्लवित है, तन स्पंदित है

 

अनधीत्य  निकट कंत है, गलबहियाँ अनंत है

अरुणोदित क्षितिज दिगंत है, आया हेमंत है

रूपसी  लिए रूप  चहुँदिक पिय प्रतीक्ष्यन्त है

पिय  सी मधुर  शीत सूर्यकांति धरा  पर्यंत है

***

(ईशान: भगवान, अहर्ता: मीठी धूप, प्रभास: द्युति, सरोरुह: कमल, कलत्व- संगीत, अनधीत्य: बारम्बार, प्रतिक्ष्यन्त : प्रतीक्षा का अंत)


सुरेश चौधरी

एकता हिबिसकस

56 क्रिस्टोफर रोड

कोलकाता 700046

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