श्री
निवास रामानुजन
(22
दिसम्बर, 1987 – 28 अप्रैल,1920)
एक महान गणितज्ञ के रूप में श्रीनिवास रामानुजन का
नाम ख्यात है । अभाव और संघर्ष से भरे पारिवारिक परिवेश से गुजरते हुए भी खिलने वाली-
निखरने वाली महान प्रतिभाओं में से यह भी एक है । गणित जैसे नीरस विषय में कुछ महत्वपूर्ण
सिद्धांतों की खोज कर श्रीनिवास रामानुजन ने समाज की बडी महती सेवा की है । कहते हैं
कि बचपन में स्कूली शिक्षा के दरमियान से ही उनके मस्तिष्क में गणित के सबसे बड़े सत्य
को लेकर एक सवाल उमडता-घुमड़ता रहा और इसी सवाल के उत्तर की खोज हेतु वे इस दिशा में
अग्रसर हुए । इस तरह शैशवकाल से ही अन्य विषयों की अपेक्षा गणित के प्रति विशेष रूचि
रखने वाले इस महानुभाव ने अपना पूरा जीवन नवीन शोध-अनुसंधान के लिए समर्पित किया ।
भारत में ही नहीं बल्कि भारतेतर देशों में भी जाकर वे अपने क्षेत्र में महत्वपूर्ण
अध्ययन-अनुसंधान करते हुए सम्मानित हुए ।
“इंग्लैंड
पहुँचकर रामानुजन संसार को भूलकर प्रो.बाटसन हार्डी तथा मोर्डल के सम्पर्क में रहकर
गणित के नये नये सिद्धांतों की खोज से संसार
को लाभान्वित करने लगे । उनकी आश्चर्यजनक खोजों से प्रभावित होकर उक्त विद्वान गणितज्ञों
ने उनकी इंग्लैंड की रोयल सोसायटी से फेलोशिप के लिए सिफारिश की जिसके फलस्वरूप वे
फेलो ऑफ दी रोयल सोसायटी होकर एक स्पृहणीय सम्मान के भागीदार बने । विद्या तथा योग्यता
की पूजा क्या देश क्या विदेश सभी जगह समान रूप से होती है । ” ( महापुरुषों के अविस्मरणीय
जीवन प्रसंग, पं. श्रीराम शर्मा, पृ-5.53 )
कैंब्रिज अभ्यास के दरमियान श्रीनिवास रामानुजन
की शोध पत्रिकाओं के संबंध में प्रो.हार्डी ने कहा- “ रामानुजन वर्तमान समय में हुआ
सर्वोत्कृष्ट भारतीय गणितज्ञ है । उन्होंने अपनी शोध-पत्रिकाओं में जो विलक्षण नवीनता
प्रकट की है, उससे उनकी योग्यता व बुद्धि की व्यापकता स्पष्ट दिखाई देती है । ”
(रामानुजन अपने माता-पिता के साथ)
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