डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम
एक जिज्ञासु, मिसाइल मैन, विज्ञान के महामहिम, जनता के
राष्ट्रपति, युवाओं के प्रेरक और चाहे ऐसे और भी अन्य विशेषण दें फिर भी इस महान बहुआयामी
व्यक्तित्व को और तरह से परिभाषित करना मुश्किल होगा। हम बात कर रहे हैं – डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम की। उनकी बहुमुखी प्रतिभा के बारे में आर. रामनाथन कहते
हैं – “विज्ञान,
प्रौद्योगिकी, देश के विकास और युवा मस्तिष्कों को प्रज्वलित करने में
अपनी निमग्नता के अतिरिक्त वह पर्यावरण की चिंता भी खूब करते हैं,
साहित्य में रुचि रखते हैं, कविता लिखते हैं, वीणा बजाते हैं और अध्यात्म से गहरे जुड़े हुए हैं।”
इस महान विचारक के एक कान में डार्विन के सिद्धांत तो दूसरे
में गीता के श्लोक गूँजते थे। कुरान, बाइबल, धार्मिक ग्रंथों की कथाएँ, खलील
जिब्रान आदि का भी उनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। धर्म और दर्शन से जुड़ी हर बात को
पहले अपने अनुभव की कसौटी पर उतारा उसके बाद उसे दूसरों को अपनाने/परखने की सलाह
दी।
मानवीयता की पैरवी करने वाले, सभी धर्म-संप्रदाय को समानता
की दृष्टि से देखने वाले अनूठे व्यक्तित्व वाले कलाम जी मनुष्यों के दर्द को कम करना
चाहते हैं, चाहे वह मनुष्य
किसी भी संप्रदाय से संबंध रखता हो। वह इस बात को महत्त्व देते थे कि सभी धर्म का
मूल एक ही है, कोई भी मार्ग अपनाया जाए वह एक ही ईश्वर तक पहुँचता है।
एक वैज्ञानिक होने के नाते उनका यह मत है कि विज्ञान
व्यक्ति को ईश्वर से दूर ले जाने वाला नहीं, बल्कि विज्ञान आत्मज्ञान का अंश है। उन्होंने
विज्ञान को अध्यात्म से जोड़कर देखने का आग्रह किया लेकिन अंधविश्वासी बनने के लिए
नहीं। “मेरे लिए विज्ञान हमेशा आध्यात्मिक रूप से समृद्ध होने और आत्मज्ञान का
रास्ता है”।
कलाम साहब ने अपने कार्य को हमेशा अपना धर्म समझा। प्रो.
साराभाई के प्रभाव में आकर उनकी शैक्षणिक दृष्टि का और विस्तार हुआ। उनके लिए साराभाई
द्वारा दी गई सबसे उल्लेखनीय सीख थी – “तुम रॉकेट विज्ञान को अपना पेशा,
अपनी जीविका मत बनाओ – इसे अपना धर्म समझो,
अपना मिशन बनाओ।” (अग्नि की उड़ान, कलाम, अब्दुल और अरुण
तिवारी, पृ. 106)
‘मिसाइल मैन’ ने तकनीकी विकास बहुत आवश्यक माना। उनका कहना
था कि विश्व में अपनी पहचान बनाने के लिए भारतीयों को नई तकनीक का प्रयोग करना
होगा। एक सफल वैज्ञानिक होने के बावजूद वे एक निगूढ़ दार्शनिक की तरह स्वयं को
अज्ञानी मानते रहे और कुछ नया जानने की चेष्टा उनमें सदा ही बनी रही। विज्ञान के
साथ गहरे जुड़ाव एवं अनुभव के चलते उनका मनाना है कि विज्ञान के लक्ष्य खुशी तो देने
के साथ दुःख और हृदय विदारक दृश्य भी देते हैं।
मानवता, सर्वधर्म समभाव, विश्व प्रेम की भावना से ओतप्रोत कलाम
साहब का मानना है कि ईर्ष्या, द्वेष, विनम्रता, करुणा, भय, निडरता, स्वार्थ, धैर्य, संतुष्टि सब हमारे भीतर ही हैं और सही चीज का चुनाव सबसे
अहम है।
दूरदर्शिता एवं दिशा की कमी को कलाम जी ने देश की युवा पीढ़ी
के सामने सबसे बड़ी समस्या के रूप में देखा। वह युवाओं को यही संदेश देना चाहते हैं
कि कोई भी व्यक्ति कितना ही गरीब, वंचित, छोटा क्यों न हो उसे निराश होने की
आवश्यता नहीं है। उनके अनुसार समस्याएँ जीवन का एक हिस्सा है और दुःख सफलता का सार
है। महान उद्देश्य, ज्ञानार्जन, खूब मेहनत करना एवं हार नहीं मानना – बस यही है सफलता
के चार मंत्र।
“If you want to leave your
footprints
On the sands of time
Do not drag your feet.”
(Wings of fire, Dr. APJ
Abdul Kalam-Arun Tiwari, Page no. 42)
एक सफल वैज्ञानिक होने के साथ-साथ वे कुशल प्रशासक एवं
नेतृत्वकर्ता भी रहे। इस विद्या के पुजारी का विज्ञान प्रकृति में छिपे अनेक
छोटे-छोटे रहस्यों के बारे में विशेष एवं व्यवस्थित जानकारी तो देता ही है साथ ही
धर्म, जीवन, कला, दर्शन,मनोविज्ञान, भूगोल, इतिहास आदि विषयों से जुड़ा हुआ नज़र आता
है।
प्रकृति एवं साहित्य के प्रति उनका अथाह प्रेम था। उन्होंने
प्रकृति के रहस्यों को उजागर करने का कार्य किया लेकिन उनके प्रयोगों से प्रकृति
को हानि न पहुँचे इस बात का भी ख्याल रखा। उनके अनुसार साहित्य का लक्ष्य मानव
जीवन को दुर्बलताओं-निरशाओं-पीड़ाओं से मुक्ति दिलाकर उनमें सकरात्मकता एवं
स्वाभिमान भरना है। उनकी रची कविताओं में दर्शनिकता के साथ सकरात्मकता एवं हौसले
की उड़ान दिखाई देती है।
आपाधापी, लूटखसोट, अति महतत्वाकांक्षी की दौड़, दिखावे की इस
मतलबी दुनिया में शांति-संतोष-समर्पण एवं आंतरिक आनंद के महत्त्व की बात करने वाले
इस कला प्रेमी-साहित्य प्रेमी की सही कर्म करने की सीख देती कुछ पंक्तियाँ –
“Beautiful hands are those
that do
Work that is earnest and
brave and true
Moment by moment
The long day through.”
(Wings of fire, Dr. APJ
Abdul Kalam-Arun Tiwari, Page no. 41)
रोचक प्रसंग
1
बात उन दिनों की है जब कलाम साहब रामेश्वरम् में पाँचवीं
कक्षा में पढ़ते थे। वह मुस्लिम टोपी पहनते थे और हमेशा कक्षा में आगे की पंक्ति में जनेऊ पहने
रामानंद शास्त्री के साथ बैठा करते थे। तब एक नए शिक्षक आए और उनको एक हिंदू लड़के
का मुसलमान लड़के के साथ बैठना अच्छा नहीं लगा। उन्होंने बालक अब्दुल को उठाकर
पीछे वाली बेंच पर चले जाने को कहा। यह बात अब्दुल एवं रामानंद शास्त्री दोनों को
बहुत खली। पीछे की पंक्ति में बैठाए जाने पर उनके मित्र रामानंद को वह काफी उदास
नजर आ रहा थे। उस मित्र के चेहरे पर जो रुआँसी के भाव थे,
उससे अब्दुल पर गहरी छाप पड़ी।
स्कूल की छुट्टी होने पर वह घर गए और सारी घटना घरवालों को
बताई। यह सुनकर लक्ष्मण शास्त्री ने उस शिक्षक को बुलाया और कहा कि उसे निर्दोष
बच्चों के दिमाग में इस तरह सामाजिक असमानता एवं सांप्रदायिकता का विष नहीं घोलना
चाहिए। यह दोनों मित्र भी उस वक्त वहाँ मौजूद थे। लक्ष्मण शास्त्री ने उस शिक्षक
से साफ-साफ कह दिया कि या तो वह क्षमा माँगे या फिर स्कूल छोड़कर यहाँ से चला जाए।
उस शिक्षक ने अपने किए व्यवहार पर न सिर्फ दुःखं व्यक्त किया बल्कि लक्ष्मण
शास्त्री के कड़े रुख एवं धर्मनिरपेक्षता में उनके विश्वास से उस नौजवान शिक्षक
में अंततः बदलाव आया।
2
बात उन दिनों की है जब कलाम साहब और उनकी पूरी टीम एक मुश्किल
दौर में थे। SLV-3 की विफलता से सभी बहुत निराश थे। उस वक्त डॉ. ब्रह्म प्रकाश ने उनसे कहा –
“आपके सभी साथी आपके साथ खड़े हैं।” इससे उनको भावनात्मक
समर्थन,
प्रोत्साहन और मार्गदर्शन मिला।
11 अगस्त 1979 को आयोजित उड़ान के बाद की समीक्षा में सत्तर से अधिक
वैज्ञानिकों ने भाग लिया। विफलता का विस्तृत तकनीकी मूल्यांकन पूरा किया गया। इसरो
के शीर्ष वैज्ञानिकों की एक बैठक में प्रोफेसर धवन के समक्ष निष्कर्ष प्रस्तुत किए
गए और उन्हें स्वीकार कर लिया गया। हालाँकि कलाम साहब उस समय भी आश्वस्त नहीं थे
और स्वयं को बेचैन महसूस कर रहे थे । उनके लिए, जिम्मेदारी का स्तर किसी की निर्णय लेने की प्रक्रिया का
बिना किसी देरी या व्याकुलता के सामना करने की क्षमता से मापा जाता है।
कलाम साहब अचानक उठ खड़े हुए और प्रो. धवन से कहा –
“सर, भले ही मेरे दोस्तों ने तकनीकी रूप से विफलता को उचित
ठहराया हो, लेकिन मैं उल्टी गिनती के अंतिम चरण के दौरान पता लगाए गए RFNA
लीक को महत्वहीन मानने की जिम्मेदारी लेता हूँ। एक मिशन
निदेशक के रूप में, मुझे लॉन्च को रोक देना चाहिए था और यदि संभव हो तो उड़ान
को बचा लेना चाहिए था। विदेश में इसी तरह की स्थिति में,
मिशन निदेशक अपनी नौकरी खो देता। इसलिए मैं SLV-3
की विफलता की जिम्मेदारी लेता हूँ।” काफी देर तक हॉल में
सन्नाटा छाया रहा। फिर प्रो. धवन उठे और कहा, “मैं कलाम को ऑरबिट में स्थापित करने जा रहा हूँ! ”,
और बैठक खत्म होने का संकेत देते हुए वहाँ से चले गए।
इस घटना से कलाम साहब बड़े हैरान थे कि पूरी विफलता को प्रो.
धवन ने स्वयं पर ले लिया। एक वर्ष की कड़ी मेहनत के बाद इस पूरी टीम के प्रयास से SLV-3 सफल हो गया तो इस बार प्रो. धवन ने माइक कलाम साहब को पकड़ा
दिया। इस बात पर कलाम साहब उनसे बहुत प्रभावित हो गए और उनको लगा कि सच में यही होता
है नेतृत्व ।
***
पूरा नाम: अबुल पकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम
जन्म: 15 अक्टूबर 1931, रामेश्वरम, तमिलनाडु
पिता: जैनुलाब्दीन
माता: आशियाम्मा
मृत्यु: 27 जुलाई 2015, शिलांग
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