शनिवार, 31 अगस्त 2024

व्याकरण विमर्श


डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र

प्रत्यय विचार –

संस्कृत व्याकरण के अनुसार जिन प्रत्ययों को धातु के साथ जोड़कर संज्ञा, विशेषण तथा अव्यय शब्द बनाए जाते हैं, उन्हें ‘कृत्’ प्रत्यय कहा जाता है; और जो प्रत्यय संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण शब्दों के साथ जुड़कर उनसे भिन्न अर्थ देने वाले संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण तथा क्रियाविशेषण शब्दों की रचना करते हैं, उन्हें तद्धित प्रत्यय कहा जाता है।

पं. कामताप्रसाद गुरु ने तथा उनके बाद के आज तक के व्याकरण लेखकों ने प्रत्यय संबंधी इसी अवधारणा को हिन्दी में अपनाया है।

यहाँ विचारणीय है कि प्रत्यय संबंधी संस्कृत व्याकरण की यह अवधारणा हिन्दी पर लागू नहीं पड़ती। हिन्दी में एक तो धातु के साथ प्रत्यय जोड़कर बहुत कम (नहीं के बराबर) क्रिया से भिन्न शब्द बनते हैं; और दूसरे, जो प्रत्यय क्रिया से जुड़ता है, वही प्रत्यय दूसरे शब्दों से भी जुड़ता है। अर्थात् हिन्दी में ऐसी कोई भेदक-रेखा नहीं है।

भाववाचक संज्ञा बनाने वाला ‘-आई’ प्रत्यय क्रिया से भी जुड़ता है और विशेषण से भी जुड़ता है - ‘लिखना’ क्रिया से लिखाई, ‘पढ़ना’ क्रिया से पढ़ाई; ‘ऊँचा’ विशेषण से ऊँचाई, ‘गहरा’ विशेषण से गहराई।

भाववाचक संज्ञा बनाने वाला ऐसा ही एक प्रत्यय है ‘-ई’। यह क्रिया से भी जुड़ता है तथा संज्ञा से भी जुड़ता है - हँसना से हँसी; दुकानदार से दुकानदारी, कारीगर से कारीगरी आदि।

पं. कामताप्रसाद गुरु और उनके परवर्ती व्याकरण लेखकों ने जिन ‘कृत्’ प्रत्ययों की कल्पना की है तथा उदाहरण के रूप में जिन धातुओं का उल्लेख किया है, वे सभी संस्कृत की धातुएँ हैं।

पं. कामताप्रसाद गुरु के अनुसार -

(1) कर्तृवाचक कृत् प्रत्यय ‘-अ’ निम्नलिखित धातुओं के साथ जुड़ता है - चुर् (चोर), दिव् (देव), रम् (राम), लभ् (लाभ), व्यध् (व्याध), सृप् (सर्प), बुध् (बुध), ग्रह् (ग्राह) आदि।

(2) भाववाचक कृत् प्रत्यय ‘-अ’ निम्नलिखित धातुओं के साथ जुड़ता है - कम् (काम - इच्छा), क्रुध् (क्रोध), मुह् (मोह), जि (जय), रु (रव), खिद् (खेद) आदि।

(3) कर्तृवाचक कृत् प्रत्यय ‘-अक’ निम्नलिखित धातुओं के साथ जुड़ता है - कृ (कारक), नृत् (नर्तक), पू (पावक), गै (गायक), दा (दायक), युज् (योजक), तृ (तारक), मृ (मारक), नी (नायक), पठ् (पाठक), पच् (पाचक) आदि।

(4) कर्तृवाचक कृत् प्रत्यय ‘-अन’ निम्नलिखित धातुओं के साथ जुड़ता है - रम् (रमण), श्रु (श्रवण), पू (पावन), पाल् (पालक) आदि।

(5) भाववाचक कृत् प्रत्यय ‘-अन’ निम्नलिखित धातुओं के साथ जुड़ता है - भू (भवन - होना), भुज् (भोजन), हु (हवन), रक्ष (रक्षण), सह् (सहन), मृ (मरण) आदि।

(6) भाववाचक कृत् प्रत्यय ‘-अना’ निम्नलिखित धातुओं के साथ जुड़ता है - विद् (वेदना), रच् (रचना), घट् (घटना), सूच् (सूचना), वंद् (वंदना), तुल् (तुलना) आदि।

(7) योग्यतार्थ कृत् प्रत्यय ‘-अनीय’ निम्नलिखित धातुओं के साथ जुड़ता है - दृश् (दर्शनीय), स्मृ (स्मरणीय), रम् (रमणीय), शुच् (शोचनीय), कृ (करणीय) आदि।

(8) भाववाचक कृत् प्रत्यय ‘-आ’ निम्नलिखित धातुओं के साथ जुड़ता है - इष् (इच्छा), कथ् (कथा), पूज् (पूजा), चिंत् (चिंता), शिक्ष् (शिक्षा) आदि।

(9) भूतकालिक कृत् प्रत्यय ‘-त’ निम्नलिखित धातुओं के साथ जुड़ता है - गम् (गत), भू (भूत), कृ (कृत), मृ (मृत), हन् (हत) जन् (जात), विद् (विदित), वच् (उक्त) आदि।

(10) योग्यतार्थक कृत् प्रत्यय ‘-तव्य’ निम्नलिखित धातुओं के साथ जुड़ता है - भू (भवितव्य), कृ (कर्तव्य), दृश् (द्रष्टव्य), वच् (वक्तव्य) आदि।

(धातुओं तथा उनसे जुड़ने वाले कृत् प्रत्ययों के ये थोड़े नमूने हैं। ऐसे ही और भी कृत् प्रत्यय तथा उनसे जुड़ने वाली धातुएँ व्याकरण की पुस्तकों में दी गई हैं।)

विचारणीय है कि चुर्, दिव्, रम्, ग्रह्, कम्, पू, नी, भृ्, विद्, पठ्, रक्ष्, खिद्, दा, भुज्, रच् ... आदि संस्कृत की धातुएँ हैं। हिन्दी में इनका प्रयोग ही नहीं है, तो फिर हिन्दी व्याकरण में इनकी चर्चा किस लिए?

चोर, देव, इच्छा, लाभ, क्रोध, भोजन, लाभ, रचना, जय, खेद, राम, मोह, दाता, पूजा, भूत ... जैसे शब्द हिन्दी के मूल शब्द हैं। ऐसे शब्दों की संख्या अनगिनत है।

हिन्दी में ऐसे शब्दों की रचना या व्युत्पत्ति की चर्चा नहीं कर सकते। नहीं करनी चाहिए।

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संज्ञा शब्दों के बहुवचन रूप –

स्त्रीलिंग शब्द

सड़क   -  सड़कें   सड़कों

लता       -    लताएँ   लताओं

मति    -   मतियाँ    मतियों

लड़की   -   लड़कियाँ  लड़कियों

वस्तु    -    वस्तुएँ    वस्तुओं

बहू      -   बहुएँ    बहुओं

गौ    -    गौएँ    गौओं

पुल्लिंग शब्द

मित्र     -    मित्रों

लड़का   -  लड़के   लड़कों

कवि    -  कवियों

साथी    -   साथियों

साधु    -  साधुओं

भालू    -   भालुओं

सभी स्त्रीलिंग शब्दों के दो बहुवचन रूप

आकारांत पुल्लिंग शब्दों के दो बहुवचन

शेष पुल्लिंग शब्दों का एक ही बहुवचन रूप।

याद रखें-

कई शब्दों के बहुवचन रूपों के प्रयोग के संदर्भ बहुत कम होते हैं

कई ऐसे भी शब्द हैं, जिनके बहुवचन रूप के प्रयोग का संदर्भ उपलब्ध नहीं होता।

इसका मतलब यह नहीं कि ऐसे शब्दों का बहुवचन रूप नहीं होता या नहीं बनता।

बहुवचन रूप तो प्रत्येक शब्द का होता है।

उसके प्रयोग का संदर्भ भले न हो।

 


 

डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र

40, साईंपार्क सोसाइटी, वड़ताल रोड

बाकरोल-388315, आणंद (गुजरात)

 

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