बुधवार, 31 जुलाई 2024

नज़्म

 

 पुल

भवेश दिलशाद

सपने और सच के बीच तो ख़ैर है ही

एक पुल है

सपने के भरम और सचमुच सपने के बीच भी

सच के सच होने और सच के सच लगने के बीच भी...

 

पुरखों और वंशजों के बीच तो ख़ैर है ही

एक पुल है

गुज़रते और आते दो जुड़वाँ लम्हों के बीच भी

एक नाम के कई चेहरों और उनके अक्सों के बीच भी...

 

शब्दों और अर्थों के बीच तो ख़ैर है ही

एक पुल है

शब्दों की चुप्पियों और चुप्पियों की आहटों के बीच भी

आँखों के ख़ालीपन और एक टकटकी के बीच भी...

 

गुमनामी से अमरता के बीच तो ख़ैर है ही

एक पुल है

ख़याल से याद और याद से बेसुधी के बीच भी

ज़िन्दगी से ख़ुदकुशी फिर ख़ुदकुशी से ज़िन्दगी के बीच भी...

 

ऐसे जाने अनजाने अनगिनत पुल झूलते हैं

प्रेमचंद के अल्फ़ाज़ और प्रेमचंद की गूँज के बीच

 



भवेश दिलशाद

भोपाल 

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