बुधवार, 31 जुलाई 2024

कुछ विचार

 



प्रेमचंद की नज़र में साहित्य और साहित्यकार

 

मेरा जीवन सपाट, समतल मैदान है, जिसमें कहीं-कहीं गड्ढे तो हैं; पर टीलों, पर्वतों, घने जंगलों, गहरी घाटियों और खंडहरों को स्थान नहीं है। जो सज्जन पहाडों की सैर के शौकीन हैं, उन्हें तो यहाँ निराशा ही होगी।

 

• हमें अपने साहित्य का मानदंड ऊँचा करना होगा, जिसमें वह समाज की अधिक मूल्यवान सेवा कर सके, जिसमें समाज में उसे वह पद मिले, जिसका वह अधिकारी है; जिसमें वह जीवन के प्रत्येक विभाग की आलोचना-विवेचना कर सके।

 

• साहित्यकार का लक्ष्य केवल महफ़िल सजाना और मनोरंजन का सामान जुटाना नहीं है। वह देशभक्ति और राजनीति के पीछे चलनेवाली सचाई भी नहीं, बल्कि उनके आगे मशाल दिखाती हुई चलनेवाली सचाई है।

 

• मानव संस्कृति का विकास ही इसलिए हुआ है कि मनुष्य अपने को समझे । अध्यात्म और दर्शन की भाँति साहित्य भी इसी सत्य की खोज में लगा हुआ है –अन्तर इतना ही है कि वह इस उद्योग में रस का मिश्रण करके उसे आनन्दप्रद बना देता है, इसीलिए अध्यात्म और दर्शन केवल ज्ञानियों के लिए हैं, साहित्य मनुष्य मात्र के लिए ।

 

 

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