1
सच्चा प्यार
अशोक भाटिया
जब दोस्तों ने उसे संगीता के साथ मिलते-घुलते देखा तो उससे
इसका कारण पूछा। उसने बताया कि उसे संगीता से प्यार हो गया है।
कुछ हफ्तों बाद दोस्तों ने देखा कि वह संगीता को छोड़कर अब
गीता के साथ घूमने लगा है। वजह पूछने पर उसने बताया कि संगीता में सिर्फ भावना थी, इसलिए वो प्रेम फ्लॉप हो गया है।’ दोस्तों ने सोचा, चलो अब तो सब ठीक हो गया।
कुछ
हफ्तों बाद वह एक तीसरी लड़की के साथ घूमने-फिरने लगा। दोस्तों ने सोचा कि इससे
गीता के बारे पूछेंगे तो कहेगा कि गीता में सिर्फ देह थी, इसलिए मामला फ्लॉप हो गया।
दोस्तों
ने समझाया - यार, ऐसे मत बदलो। तुम किसीसे सच्चा प्यार करो और उसे आखिर तक निभाओ।
वह
तपाक से बोला - सच्चा प्यार ! वो भी एक लड़की से चल रहा है।
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2
ज़िन्दगी
मेरा दोस्त उदय इसी गली में रहता था। कॉलेज के दिनों में
मैं अक्सर उसके घर आया करता। एक बार वह किसी भावना की दुनिया में खो गया था। उसने
बताया कि सुधा की आँखों के नूर ने उसके मन की झील में हलचल मचा दी है। अब वह सपनों
में डूबा रहता। तब मुझे लगा कि ज़िन्दगी प्यार की तरह सुन्दर और मुलायम, सपनों की तरह मोहक तथा भावुक होती है, जिसे गाया जाता है...
बाद में नौकरी मिलने पर उदय कहीं दूर चला गया था। कुछ समय
बाद उस गली के बाहर सड़क किनारे एक ठेला-मजदूर ने अपनी झोपड़ी खड़ी कर ली।
मैं रोज़ उधर से गुज़रता। कई बार मैंने देखा कि शाम को वह
मजदूर अपने कठोर हाथ हिलाता, धीरे-धीरे अपनी झोपड़ी की तरफ बढ़ रहा होता। उसके दोनों नंगे
बच्चे एल्युमीनियम की खाली पतीली के पास बैठे हुए टुकर-टुकर अपने बाप को देखते। उनकी
माँ की सूनी आँखें समझ जातीं कि चूल्हे की तरह उन्हें आज भी बुझे रहना है। तब मुझे
लगा कि ज़िन्दगी किसी मजदूर के हाथों-सी कठोर और भूखे बच्चों के पेट-सी खाली होती
है। ज़िन्दगी माँ की आँखों-सी सूनी,कपड़ों-सी फ़टी और मैली, दिख रहे बदन-सी नंगी और बेबस होती है, जिसे ठेले की तरह खींचा जाता है।
क्या होती है ज़िन्दगी ? मैं सोचता रहा। आखिर एक दिन उदय मिल गया। मैंने उसे मजदूर
की बात बताई।
उसने कहा - ज़िन्दगी इसके अलावा भी बहुत कुछ होती है।
मैंने पूछा - क्या वह मजदूर यह बात जानता है ?
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डॉ. अशोक भाटिया
1882,
सेक्टर 13,
करनाल -132001 (हरियाणा)
बेहतरीन लघुकथाएँ। सुदर्शन रत्नाकर
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