कुछ
बातें : शब्दसृष्टि के बहाने, शब्दसृष्टि के बारे में
प्रो.हसमुख
परमार
भाषा, साहित्य, शोध-समीक्षा
एवं इनसे इतर कतिपय विषय-क्षेत्रों से संबद्ध विचारों व तत्संबंधी समसामयिक
गतिविधियों को कभी सहजता से तो कभी गंभीरता से रेखांकित करके हिन्दी के प्रयोग व प्रचार-प्रसार
में अपनी भूमिका का निर्वाह करने वाली शब्दसृष्टि अपने स्तर की एक बहुत ही
सक्रिय वेब पत्रिका है । इसके हर नवीन अंक के लेखन व प्रकाशन के समय संपादिका की
नजर एक साहित्यिक पत्रिका के स्थाई विषयों के साथ-साथ मौसमी मिज़ाज, विशेष
पर्व-त्यौहार, विशेष तिथियों-दिवसों पर भी बराबर रहती है, और जिसे अंक के कलेवर
में गूँथकर हर मास एक नवीन रूप-रंग से सजे अंक को लेकर पाठकों के समक्ष प्रस्तुत
होती हैं।
ब्रिटिश सत्ता की
गुलामी से हमारे देश को मुक्ति पाने का स्वर्णिम दिवस तथा पवित्र सावन मास के
धार्मिक विधि-विधान व पर्व-त्यौहार से इस समय हमारा मन व व्यवहार
मान-महिमा-उमंग-उत्साह से भरपूर है । साथ ही अन्य महीनों की ही भाँति अगस्त में भी
अलग-अलग क्षेत्रों से संबद्ध महान पुरुषों और स्त्रियों के अवतरण व निर्वाण तिथियों पर उनको स्मरण कर,
उनकी देन को याद कर, उनके बताए मार्ग पर
चलकर लोकहित में अपनी भूमिका को विकसित करने हेतु एक इच्छाशक्ति-संकल्पशक्ति-नवीन ऊर्जा
से अपने को भरने के लिए हम तैयार रहते हैं ।
हमारा अपने देश
से-वतन से-माटी से बेहद प्रेम, स्वतंत्रता के लिए शहीदों की शहादत के मूल्य का
बोध, स्वाधीनता के मायने व महत्त्व की प्रतीति, हमारी राष्ट्रीयता आदि हमें 15
अगस्त-स्वतंत्रता पर्व को पूरे आनंद-उल्लास से मनाने के लिए प्रेरित करते हैं, उसमें भी यदि स्वाधीनता दिवस
का रजत, स्वर्ण, हीरक या अमृत महोत्सव हो, साथ ही सरकार की ओर से भी, इस पर्व के
उपलक्ष्य में विविध अभियान तथा इसके अंतर्गत विविध कार्यक्रमों की घोषणा होती है,
तो फिर देशवासियों के उत्साह का तो क्या कहना? वह तो आसमाँ ही छुए ! पिछले कुछ
वर्षों से मीडिया-सोशल मीडिया के बढ़ते हुए प्रचार-प्रसार की भी इस ‘राष्ट्रीय-पर्व’
के विस्तार व महत्त्व को बढ़ाने में अहम् भूमिका रही है ।
इस साल ७७ वें
स्वतंत्रता पर्व को पूरे राष्ट्र में बड़ी धूमधाम से मनाया गया । इस उत्सव का दिवस
विशेष भले ही आज गुजर गया हो पर उसका आनन्द भारतीय दिलों में कम नहीं हुआ है ।
सरकारी स्तर से आजादी का अमृत महोत्सव, घर घर तिरंगा, मेरी माटी-मेरा देश जैसे अभियानों
की घोषणा तथा ठेर ठेर इसका आयोजन हुआ, जिसमें हम देशवासियों ने सहर्ष शिरकत की ।
हमारी शान और सम्मान ‘तिरंगा’ जिसके तीनों रंगों से भारत का कण-कण और भारतीय का
मन-मन रंग गया ।
भारत के स्वतंत्र
होने के पश्चात यहाँ ‘राष्ट्र’ की एक बहुत ही व्यवस्थित व दृढ विभावना का विकास
होता है । हमारे राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के
रूप-रंग के बारे में तो हम जानते ही हैं कि इसकी डिज़ाइन आंध्रप्रदेश के पिंगली वेंकैया
ने महात्मा गाँधी के कहने पर बनाई थी । गाँधी जी की वेंकैया से मुलाकात उनकी
दक्षिण अफ्रीका यात्रा के दौरान हुई थी । 22 जुलाई, 1947 को वर्तमान तिरंगे को
संवैधानिक स्वीकृति मिली और उस पर चरखा के स्थान पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र का
चित्र रखा गया ।
15
अगस्त-स्वतंत्रता दिवस, हमारी देशभक्ति व हमारे स्वदेश-प्रेम का पर्याय है । आजादी
के लिए और आजाद भारत की सुरक्षा के लिए अपना बलिदान देनेवाले वीरों को स्मरणांजलि
और श्रद्धांजलि देने का दिन है, देश की गौरवगाथा के गान का अवसर है। साथ ही भारत
के एक नागरिक के रूप में हमारे दायित्वों-कर्तव्यों को याद रखने-उसे जीवन व्यवहार
में लाने के संकल्प का दिन । और ये सब महज़ एक दिन के लिए नहीं बल्कि पूरे साल के लिए-हमेशा
के लिए बनाए रखने में ही इस आजादी पर्व की सफलता व सार्थकता है ।
बेशक, आजादी के
विगत साढ़े सात दशकों में हमने, हमारे देश ने अनेकों क्षेत्रों में काफ़ी प्रगति की
है । साथ ही यह प्रश्न भी विचारणीय है कि आजादी के समय देशवासियों ने जो जो सपने
देखें थे, वे कितने और कहाँ तक पूरे हुए ? लिंग-धर्म-जाति-भाषा-प्रदेश-संप्रदाय
में समानता-सद्भावना, शिक्षा, किसान, मजदूर की स्थिति, रोजगार, नैतिक मूल्यवता,
सामाजिक चेतना, भ्रष्टाचार मुक्त समाज को और ज्यादा सशक्त बनाने में हमें स्वयं को
भी अपनी भूमिका का बराबर ध्यान रहें । स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले – स्वतंत्रता
सेनानियों का मानना था कि – आजादी एक जन्म के समान है । जब तक हम पूर्ण स्वतंत्र
नहीं है, तब तक हम दास है । आज आजाद भारत के हम नागरिकों को भी यह ध्यान रहे कि
स्वतंत्र होते हुए भी कहीं मानसिक पराधीनता का शिकार न हो । आजाद भारत के नागरिक हैं
हम, और आजादी (ब्रिटिश शासन से मुक्ति) के मायने हम बखूबी जानते हैं । स्वतंत्र
भारत में भारती से हमारा प्रेम भरपूर है । साथ ही अपने स्वदेश प्रेम को लेकर यह
ध्यान भी रहे कि भारतीय संस्कृति से हमारा जीवन सदैव सराबोर ही रहे। तेज पश्चिमी
हवा और भूमंडलीकरण की आँधी में भी हमारा
‘भारतीय’ रूप शुद्ध एवं पूर्ण बना ही रहे। भारतीय भाषाओं, रहन-सहन, पोशाक, उत्सव,
अपनी परंपराएँ गौरवशाली-वैभवशाली अतीत से हमारा लगाव कभी कम न हो ।
वर्ष के अन्य
महीनों की तरह अगस्त माह में भी अलग-अलग क्षेत्रों से संबद्ध कई महानुभावों, जिनकी
जन्मतिथि या पुण्यतिथि इसी माह में आती है, जिसके निमित्त इनके अवदान को विशेष रूप
से याद किया - इनके प्रति देशवासियों ने पूरा मान सम्मान प्रकट किया । यह एक सुखद
संयोग ही कहा जा सकता है कि कुछेक ऐसे हिन्दी कवि तथा कुछ स्वातंत्र्य वीर जो
जीवनपर्यंत देशानुराग, स्वाधीनता और भारतीयता से ही बड़े सक्रिय रूप से जुड़े रहे, जिनके
जन्म या मृत्यु की तिथियाँ इस अगस्त में है । 03 अगस्त को भारतीय संस्कृति के
आख्याता मैथिलीशरण गुप्त की जयंती ।
भारतीय संस्कृति के अतीत के गौरव की भावना से प्रेरित हो ‘ भारत भारती’ में
उन्होंने लिखा- “ हम कौन थे, क्या हो गए हैं और क्या होंगे अभी / आओ विचारें आज
मिलकर ये समस्याएँ सभी । ” बात देशप्रेम की चले और गुप्तजी की इन पंक्तियों का
स्मरण न हो, ये कैसे हो सकता है !
जो भरा नहीं है भावों से, जिसमें बहती रसधार
नहीं ।
वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश
का प्यार नहीं ।।
स्वाधीनता दिवस के
ठीक दूसरे दिन की तिथि – 16 अगस्त को राष्ट्रीय चेतना से भरपूर तथा स्वतंत्रता
संग्राम तथा सत्याग्रह में अपना योगदान देने वाली हिन्दी कवयित्री सुभद्राकुमारी
चौहान की जन्म जयंती । उनकी विश्व विख्यात कविता की एक झलक –
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी
थी ।
खूब लडी मर्दानी, वह तो झाँसी वाली रानी थी
।।
अटल बिहारी
बाजपेयी जितने बड़े और सशक्त नेता थे, उतने ही संवेदनशील और ओजस्वी स्वर के बड़े कवि
। 16 अगस्त उनकी पुण्यतिथि । बाजपेयी के सृजन में विस्तार है, वैविध्य है । ‘स्वतंत्रता
दिवस’ के अवसर पर तो इनकी कुछ कविताएँ मंत्र की तरह गूँजती हैं ।
मसलन –
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है ।
हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है,
पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं ।
देशानुराग से भरे इस
कवि व्यक्तित्व की निम्न पंक्तियाँ, जो कि स्वतंत्रता प्राप्ति के समय एक अलग संदर्भ
को लेकर लिखी गई थी, आज भी लोगों की ज़ुबान से दूर नहीं हुई ।
पंद्रह अगस्त का दिन कहता – आज़ादी अभी
अधूरी है।
सपने सच होने बाकी है, रावी
की शपथ न पूरी है।।
जिनकी लाशों पर पग धर कर, आज़ादी
भारत में आई।...
दिन दूर नहीं खंडित भारत को, पुन:
अखंड बनाएँगे।
गिलगित से गारो पर्वत तक, आज़ादी
पर्व मनाएँगे।।
उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से, कमर
कसें बलिदान करें।
जो पाया उसमें खो न जाएँ, जो
खोया उसका ध्यान करें।।
18 अगस्त, सुभाषचंद्र बोस की पुण्यतिथि।
देशप्रेम,स्वाभिमान और साहस से भरा जिनका जीवन, ‘आजाद हिन्द फौज’ का गठन करनेवाले,
‘जय हिन्द’, ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा’ का नारा देनेवाले इस महान
देशसेवक, देशरक्षक, देशभक्त को कोटि कोटि श्रद्धा सुमन समर्पित । अगस्त की 17 तारीख, भारतीय स्वाधीनता संग्राम
के अप्रितम क्रांतिकारी मदनलाल ढींगरा की पुण्यतिथि। अगस्त की 18 तारीख को
स्वतंत्रता सेनानी एवं संयुक्त राष्ट्र की पहली महिला अध्यक्ष स्व.श्रीमती विजय
लक्ष्मी पंडित का जन्मदिवस ।
हिन्दी के और भी
कुछेक साहित्यकारों को हिन्दी जगत उनकी जयंती के अवसर पर अगस्त में विशेष रूप से
स्मरण करता है । शिवमंगलसिंह सुमन [जन्म-5 अगस्त], शिवपूजन सहाय [जन्म 9 अगस्त],
अमृतलाल नागर [जन्म-17 अगस्त], हजारीप्रसाद द्विवेदी [जन्म 19 अगस्त], हरिशंकर
परसाई [जन्म 22 अगस्त- मृत्यु 10 अगस्त], राजेन्द्र यादव [जन्म 28 अगस्त], अमृता प्रीतम
[जन्म 31अगस्त], रामकथा- रामकाव्य को भारत
में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में प्रचारित करने व प्रसिद्धि दिलाने वाले महाकवि
गोस्वामी तुलसीदास की जन्म जयंती भी सावन मास में ही मनाई जाती है । साथ ही हमारे
देश के महान अध्यात्मिक गुरु और विचारक श्री रामकृष्ण परमहंस का निर्वाण दिन 16
अगस्त और महर्षि अरविंद की जन्म जयंती 15 अगस्त ।
इस जुलाई-अगस्त
इंडिया का मून मिशन-भारत का एक सफर चाँद तक यानी भारत की ऊँची उडान – चंद्रयान-3,जो
भारत की और हर भारतीय के गौरव की ऊँचाई में वृद्धि कर रहा है । 14 जुलाई को चंद्र
यात्रा पर निकले यह चंद्रयान की यात्रा सफलतापूर्वक आगे बढ़ती हुई अंतत 23 अगस्त
शाम 6.04 बजे वह चंद्र की सतह पर उतरा । इस समय चाँद पर ‘जय हिंद’ की गूँज जिसे
पूरी दुनिया सुन रही है । चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर कदम रखने वाला भारत पहला देश
बना है । ‘मेरा भारत महान’ की महागाथा के यह एक महान अध्याय लेखन से, चाँद पर भारत
के इस ऐतिहासिक ‘सूर्योदय’ से हर भारतीय गौरवान्वित है । यह फलश्रुति है ISRO की,
इसके वैज्ञानिकों की मेधा व मेहनत की। ISRO को लख-लख बधाइयाँ । चंद्रयान-3 मिशन की
सफलता के बाद अब एक और बढ़िया खबर मीडिया सुना रहा है – भारत के सन मिशन को लेकर ।
सूर्य की ओर जाने की तैयारियाँ । कहते हैं कि 2 सितंबर को इसके लिए aditya-L-1
लोन्च होगा और वह सूरज तरफ पंद्रह लाख कि.मी. तक की यात्रा करेगा । जिसके लिए लगभग
128 दिन का समय लगेगा । इस सूर्य मिशन की सफलता के लिए ISRO को हम सब की ओर से
अशेष मंगलकामनाएँ !
भारतीय जीवन मूलतः
धर्मप्रधान है । हमारी प्रातः जागरण काल से लेकर रात्रि शयन तक की अधिकांश
गतिविधियाँ धर्म द्वारा ही परिचालित होती हैं । वैसे भी कहा गया है कि “हमारी
संस्कृति घर्म के ताने-बाने से बुनी गई है । हमारी संस्कृति, हमारे समाज और साहित्य
में धर्म का स्वर सबसे ऊँचा है ।” हमारी यह धार्मिक भावना विशेषत: विविध
व्रत-त्यौहार एवं देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना के समय विशेष रूप से प्रकट होती है
। हिन्दू धर्म में व्रत एवं पर्व-त्यौहार की संख्या बहुत ही ज्यादा है । जनता में
‘सात वार और नौ त्यौहार’ की उक्ति ऐसे ही प्रचलित नहीं है । धार्मिक पूजा-पाठ की दृष्टि
से ‘सावन’ माह का विशेष महत्त्व रहा है । महादेव की महिमा का गान खूब गाया जाता
है, इस महीने में । सावन-भादों में या अगस्त-सितम्बर में हरियाली तीज, नाग पंचमी,
रक्षाबंधन, शीतला-सातम, जन्माष्टमी, बहुरा, अनंत चतुर्दशी प्रभृति त्यौहार व
व्रत-उत्सव मनाते हुए अपनी धार्मिक व सांस्कृतिक परंपरा के साथ लेकर हम अपने
जीवन-पथ पर अग्रसरित हो रहे हैं । ‘ओणम’ दक्षिण भारत का, मुख्यतः केरल का एक बड़ा
त्यौहार है, जो चिंगम मास में मनाया जाता है । इस त्यौहार के मूल में भगवान वामन की
जयन्ती और राजा बली की कथा है । यह लगभग दस दिन चलनेवाला त्यौहार है । जैसा कि
बताया है, यह त्यौहार चिंगम महीने में मनाया जाता है और यह चिंगम महिना हिंदू कलैंडर
में लगभग अगस्त-सितम्बर में पड़ता है । इस वर्ष अगस्त के अंत में ओणम मनाया गया ।
विविध ऋतुओं में,
विविध महीनों में गाये जाने वाले ऋतुगीतों-माहवारी गीतों, मतलब प्रकृति प्रेरित
गीतों में एक ‘कजली’ जो सावन महीने में गाया जाता है । ‘ झूलागीत’ के नाम से भी जाना
जाने वाला यह गीत सावन में, गाँवों में जगह-जगह झूले लगाकर स्त्री-पुरूष झूला
झूलते हुए इस गीत को गाते हैं, पर अब वह स्थिति नहीं रही या बहुत कम हो गई । इस
तरह के गीतों को मिथिला में मलार [कारि कारि बदरा उमडि गगन माझे लहरी बहे पुरविया], राजस्थान में हिंडोले के गीत तथा छतीसगढ़ी में सवनाही के नाम से जाना जाता है ।
किसी अकादमिक स्थायी
मंच से दूर रहते हुए और सर्जकों-समीक्षकों के लेखन सहयोग के सिवा और किसी प्रकार
के किसी के सहयोग के बगैर एक मासिक पत्रिका को बहुत ही नियमित रूप से निकालना थोड़ा
मुश्किल है और आज के दौर में तो वाकई मुश्किल है, क्योंकि आज हम देखते हैं कि ऐसी
साहित्यिक पत्रिकाओं की संख्या ज्यादा ही हैं, जिनके संपादक किसी शैक्षिक संस्था
से जुड़े हुए हैं या संस्था से निवृत्त हुए हैं, इनको सहज रूप से एक बड़ा सहयोगी
साहित्यिक माहौल मिल जाता है । साथ ही इस तरह की पत्रिकाओं को और ज्यादा मजबूती
प्रदान करने के लिए एक पूरी टीम इनके साथ खड़ी रहती है । जिसमें प्रधान संपादक के
साथ-साथ पूरा संपादक मंडल, कभी-कभी अतिथि संपादक, संरक्षक, परामर्शक आदि। किसी-किसी
पत्रिका में तो इस तरह की और भी कई समितियाँ और उसके कई सदस्य । इतना बड़ा परिवार
किसी पत्रिका का हो तो उसे निकालने-चलाने में सुविधा रहेगी ही। पर जहाँ इस तरह के
सहयोग के बगैर ही कोई संपादकीय कार्य कर रहे है तो उनके लिए यह कितनी मेहनत का
कार्य होगा, इसका अनुमान हम कर ही सकते हैं। पत्रकारिता की दुनिया में बहुत ही
कर्मठ, जुझारू, समर्पित, प्रतिबद्ध पत्रकारों-संपादकों का भी अभाव नहीं है जो
अकेले ही अपनी महेनत से, सेवा से इस तरह के ज्ञानरथ को आगे बढ़ाते रहते हैं। ऐसे
संपादकों की पंक्ति में मैं ‘शब्दसृष्टि’ की संपादिका का नाम रखना चाहूँगा। एक
परामर्शक और प्रकाशित होनेवाले भाषा व साहित्य के सेवियों को छोड़ दें तो सिर्फ
अपनी अकेले की मेहनत से विगत कई वर्षों से
अपनी इस पत्रिका के हर अंक को, कलेवर की दृष्टि से-विषय की दृष्टि से नवीनता-वैविध्य-विस्तार
के साथ हर माह और कभी-कभी तो विशेषांक के चलते महीने में दो अंक निकालना सच में
सराहनीय है। यहाँ एक शब्द याद आता है- ‘एकल प्रयत्नी’। हर क्षेत्र में हमें ऐसे कई
लोग मिलते हैं जो ‘ एकल प्रयत्नी’ होते हैं ।
दरअसल यह ‘एकल
प्रयत्नी’ शब्द मैंने पहली बार कवि अशोक चक्रधर से, उनके एक काव्यपाठ के दौरान
सुना । काव्य था दो माँझी - एक दशरथ माँझी और दूसरा दाना माँझी को लेकर । अपने
प्रबल और प्रगाढ पत्नी-प्रेम के चलते ये दोनों माँझी मिसाल बन गए और साहित्य के
नायक भी । दशरथ माँझी ‘ द माउंटन मैन’ के नाम से विख्यात हुए, जो बरसों तक अकेले
ही छैनी-हथौड़ी से पहाड़ तोड़ते रहे, राह
बनाने के लिए और सफल भी हुए, और दाना माँझी जो किसी प्रकार की मदद-सुविधा न मिलने
पर अपनी मृत पत्नी की लाश को अपने कंधों पर उठाकर मीलों तक पैदल चलता रहा । अशोक
चक्रधर इन दोनों को ‘एकल प्रयत्नी’ कहते हैं, कहते हैं कि ‘यह अतुलित बल कहाँ से
मिला इस ‘ एकल प्रयत्नी’ [दोनों के लिए] को, तो श्रेय जाता है उसे प्रेम करने वाली
पत्नी को’ ।
अंत में, ‘शब्दसृष्टि’
के विगत सफ़र की प्रशंसा करते हुए मौजूदा अंक-38 के प्रकाशन अवसर पर अतीव
प्रसन्नता की अनुभूति के साथ संपादिका एवं अपनी लेखनी से अंक को सुशोभित करने वाले
तमाम सहयोगी मित्रों के प्रति साधुवाद ज्ञापित करता हूँ। साथ ही इनसे यह उम्मीद भी
करता हूँ कि साहित्य के सृजन-पठन-आस्वादन व शोध-समीक्षा में वृद्धि, हिन्दी भाषा के व्यापक प्रचार-प्रसार, समाज व
संस्कृति की विस्तृत पहचान-समझ के विकास, नई पीढ़ी को
साहित्य तथा इससे जुड़ी पत्रिकाओं के प्रति ज्यादा लगाव बढ़ाने प्रभृति महत्
उद्देश्यों को और ज्यादा अच्छी तरह से सिद्ध करने हेतु अपनी महती भूमिका को निरंतर
सक्रिय बनाये रखते हुए पत्रकारिता के माध्यम से हमारे साहित्य, समाज, संस्कृति, भाषा एवं राष्ट्र
के विकास में अपना बौद्धिक व रचनात्मक सहयोग दें।
डॉ. हसमुख परमार
प्रोफ़ेसर
स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग
सरदार पटेल विश्वविद्यालय, वल्लभ
विद्यानगर
जिला- आणंद (गुजरात) – 388120
रोचक, व्यापक और प्रेरक।
जवाब देंहटाएंएकल प्रयत्नी पूर्वा शर्मा जी का हार्दिक अभिनंदन!💐
ખૂબ જ સુંદર,
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक सर💐
जवाब देंहटाएंअगस्त माह या कहिए कि इस 'समय विशेष' की विशिष्टता को प्रतिपादित करता 'शब्द-सृष्टि' का अनमोल आलेख । लेखक महोदय एवम् डॉ. पूर्वा जी को हार्दिक बधाई 💐💐
जवाब देंहटाएंप्रो हसमुख भाई
जवाब देंहटाएंनमस्कार।
आपने शब्द सृष्टि का बड़े सुंदर ढंग से ब्योरा प्रस्तुत किया है साथ ही भारत की आजादी का उल्लेख करते हुए चंद्रयान के पहुंचने तक का विवरण प्रस्तुत किया है जो बहुत ही सार्थक है। इसके लिए आपको बहुत बहुत बधाई देता हूं। समग्रता में यह अंक बहुत ही महत्व पूर्ण है।एक बार फिर से बहुत बहुत बधाई।
"शब्द सृष्टि के बहाने शब्द सृष्टि के बारे में" आपके द्वारा शब्द सृष्टि के शुरुआती दौर से अब तक के ढांचे को बहुत ही कम शब्दों में आलेखा गया है। आपके सभी के सुचारू संचालन से पत्रिका में सभी पहलुओं को हर एक अंक में बखूबी चित्रित किया जाता है इस पत्रिका में कोई भी पहलू को छोडा नहीं जाता है। आपके सभी के प्रयत्नों को नमन।
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