आखिर मैं क्या हूँ?
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
भला क्या बताऊँ कि ‘आखिर मैं क्या हूँ’ ?
नदी हूँ, हवा हूँ, हया हूँ, अदा हूँ ।
कभी चाँदनी तो कभी अग्निधर्मा-
किरण हूँ, अँधेरे में जलता दिया हूँ ।
सुमन हूँ, सुधा हूँ, सृजन-साधना मैं,
गरल हूँ मैं, कंटक, कहीं सर्वदा हूँ ।
कदम दर कदम मैं चली थी सँभलकर,
मगर मुश्किलों का मुकम्मल पता हूँ ।
ज़रा ध्यान से जो सुनोगे मुझे तुम ,
तुम्हारे ही दिल की तुम्हारी सदा हूँ ।
भला अपनी पहचान मैं क्या बताऊँ ,
मरज हूँ, मरीजा हूँ, खुद ही दवा हूँ ।
समझ है तुम्हारी कहे ‘ज्योति’ क्या अब,
बहन, बेटी हूँ, संगिनी, माँ, प्रिया हूँ ।
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
वापी (गुजरात)
बहुत सुंदर कविता। हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार आपका 🙏
हटाएं