एक रुक्नी अनूठी ग़ज़लें : एक अनूठा संकलन
समीक्षक - हिमकर श्याम
एक रुक्नी अनूठी ग़ज़लें, बज़्मे-हफ़ीज़ बनारसी, पटना के चेयरपर्सन और प्रख्यात शायर रमेश कँवल द्वारा
संकलित एवं संपादित एक अनूठा ग़ज़ल संकलन है, जो एनी बुक प्रकाशन से आकर्षक कलेवर में छपकर आया है।
वरिष्ठ ग़ज़लकार डॉ. ब्रह्मजीत गौतम ने इस संग्रह की भूमिका लिखी है।
रमेश जी ने ग़ज़लों पर कई किताबें संपादित की हैं। इनके
द्वारा संपादित ‘इक्कीसवीं सदी के इक्कीसवें साल की बेहतरीन ग़ज़लें’ और ‘2020 की नुमाइंदा ग़ज़लें’ किताब भी नायाब थी और ख़ूब चर्चित भी
रही थी। इस बार उन्होंने एक ही रुक्न पर लिखी गई ग़ज़लों का संकलन/संपादन किया है।
इस संग्रह के प्राक्कथन में वह लिखते हैं कि दो रुक्न से 16-16 रुक्न में ग़ज़लें कही गयी हैं। एक रुक्नी ग़ज़लें कहना आसान
नहीं है। एक रुक्न के दो मिसरों (शेर) में पूरी बात कहना बहुत मुश्किल फ़न है।
उनकी बात बहुत हद तक सही भी है।
एक ग़ज़ल में सात से लेकर ग्यारह तक शे’र हो सकते हैं। एक
शे’र दो मिसरों यानी दो पंक्तियों से बनता है। रुक्न किसी भी ग़ज़ल का आधार होता है।
ये वज़्न ही है जो किसी ग़ज़ल को बहर में रखता है। हर बहर के लिए पहले से ही रुक्न
निर्धारित है। रुक्न का बहुवचन अरकान होता है। इन्हीं अरकानों के आधार पर फ़ारसी
मे बहरें बनीं। अरकान मूलतः सात होते हैं , जिनसे आगे चलकर बहरें बनीं। ये मूल अरकानों हैं फ़ऊलुन,
फ़ाइलुन, मुफ़ाईलुन, मुस्तफ़इलुन, मुतफ़ाइलुन,फ़ाइलातुन और मुफ़ाइलतुन। इन रुक्नों की आवृत्ति से क्रमश:
मुतक़ारिब, मुतदारिक, हज़ज,
रजज़, कामिल, रमल और वाफ़िर बहरें बनती हैं। एक रुक्न का मिसरा और दो
रुक्न का शे'र लिखना आसान नहीं होता। ग़ज़ल कहना तो और भी कठिन। लेकिन इन पर देश भर के
चुनिंदा शायरों से ग़ज़लें कहलवाना और उन ग़ज़लों को संकलन के रूप में लाने का संपादक
का प्रयास सफल रहा। निःसन्देह एक अनूठा और प्रशंसनीय कार्य हुआ है। ग़ज़ल के प्रति
रमेश कँवल जी की निष्ठा, समर्पण और लगन न केवल प्रशंसनीय है,
अपितु नई पीढ़ी के लिए प्रेरणास्पद भी है।
देश भर के 29 शायरों की लगभग डेढ़ सौ ग़ज़लें इस किताब में संकलित हैं। इन शायरों के नाम
क्रमशः अमित अहद, अरविन्द असर, असग़र शमीम, अस्मा सुबहानी, आनंद पाण्डेय तन्हा, ए. एफ, नज़र, ऐनुल बरौल्वी, ओंकार सिंह विवेक , कालजयी घनश्याम , डॉ आनंद किशोर , डॉ कविता विकास, डॉ नूतन सिंह, डॉ ब्रह्मजीत गौतम, धर्मेन्द्र गुप्त साहिल, नवीन चतुर्वेदी, निर्मला कपिला, पवन शर्मा, प्रेम रंजन अनिमेष, महेश जोशी अनल, रमेश कँवल, रवि खंडेलवाल, राज कांता, विकास सोलंकी, विज्ञान व्रत, शरद रंजन शरद , शुचि भवि, शुभ चन्द्र सिन्हा, सुधा सिन्हा और हिमकर श्याम हैं। करीब 17 शायरों ने ही सातों रुक्न में ग़ज़लें कही हैं। सभी एक से
बढ़कर एक हैं। सब का अंदाज़ जुदा ,तेवर जुदा है। सभी की अभिव्यक्ति समान रूप से प्रभावी है।
ग़ज़ल ने अरबी, फ़ारसी, उर्दू से होते हुए हिन्दी तक का बहुत लम्बा और कामयाब सफ़र
तय किया है। अगर साहित्य में किसी एक विधा ने सबसे अधिक लोकप्रियता हासिल की है,
तो वह है ग़ज़ल। ग़ज़ल शुरू से ही इंसानी जज्बातों के बयान का एक जरिया रही है
और वक्त,
माहौल के मुताबिक इसमें बदलाव होते रहे हैं। इस कड़ी में 'एक रुक्नी अनूठी ग़ज़लें' एक नया प्रयोग है। यह संकलन एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ के रूप
में साहित्य में दर्ज होगा, मुझे यक़ीन है।
ग़ज़ल संग्रह : एक रुक्नी अनूठी ग़ज़लें
संकलन एवं संपादन : रमेश कँवल
प्रकाशक : एनी बुक
पृष्ठ : 119
मूल्य : 250/-
हिमकर श्याम
राँची
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