डॉ. पूर्वा शर्मा
अमरता अर्थात् कभी भी मृत्यु का वरण नहीं करना; सदैव जीवित
रहने का भाव सिर्फ़ जीवन-मरण से संबंधित नहीं है। लगभग हर क्षेत्र में कुछ ऐसे
विरले व्यक्तित्व होते हैं जो अपने सत्कर्मों से, अपने जीवनोपयोगी-समाजोपयोगी कार्यों
के चलते दिवंगत होने के पश्चात् भी बहुसंख्य लोगों के दिलो-दिमाग में कायम रहते
हैं। मसलन हम देख सकते हैं भारतीय राजनीति में महात्मा गाँधी को और आधुनिक हिन्दी
साहित्य, विशेषतः हिन्दी कथा साहित्य के क्षेत्र में मुंशी प्रेमचंद को। उभय की
मानवतावादी दृष्टि तथा जीवनाभिमुख कार्यों की कीर्ति एवं उपयोगिता हर समय-हर युग
में बरक़रार रही है। ताउम्र दोनों क्रमशः भारतीय समाज तथा सामाजिक साहित्य के सर्वांगी
विकास हेतु कार्यरत रहे-समर्पित रहे। अपने-अपने क्षेत्र में अपने चिरस्मरणीय-अविस्मरणीय
योगदान से उनकी उपयोगिता एवं महत्त्व आज भी स्वयं सिद्ध है। डॉ. सुरेश सिन्हा के
शब्दों में “न हम राजनीति के क्षेत्र में गाँधी जी को भुला सकते हैं और न साहित्य
के क्षेत्र में प्रेमचंद को ही भुला सके। संयोग यह कि न हम राजनीति के क्षेत्र में
दूसरा गाँधी पा सके और न साहित्य के क्षेत्र में दूसरा प्रेमचंद ही, दोनों ही अमर
है-अजर है।” (हिन्दी उपन्यास : उद्भव और विकास, डॉ. सुरेश सिन्हा, पृ. 138)
महज अकादमिक क्षेत्र में ही नहीं बल्कि गैर आकादमिक
क्षेत्रों में भी पढ़े जाने वाले हिन्दी कथा लेखकों में प्रेमचंद निश्चित रूप से
सबसे ऊपर रहे हैं। इस तरह हिन्दी के इस कथा लेखक की लोकप्रियता का व्याप ज्यादा
रहा है। हिन्दी कथा साहित्य में ही नहीं, भारतीय कथा साहित्य में उनका स्थान
सर्वोपरि है। इससे भी आगे विश्व विख्यात कथा लेखकों में उनका नाम शुमार है।
प्रेमचंद-साहित्य के पाठक इस तथ्य से तो भली-भाँति अवगत है
ही कि हिन्दी कथा साहित्य के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक कोण से प्रेमचंद और उनके
लेखन की विशेष महत्ता रही है। हिन्दी उपन्यास में प्रेमचंद का प्रवेश मतलब कि
हिन्दी उपन्यास-हिन्दी कथा साहित्य के एक नए युग का प्रारंभ। हिन्दी उपन्यास के
वास्तविक युग की नींव प्रेमचंद ने ही रखी यह कहना अतिशयोक्ति बिल्कुल नहीं होगी। किसी
ने ठीक ही कहा है कि प्रेमचंद हिन्दी उपन्यास की वयस्कता की प्रभावशाली उद्घोषणा
है। इस महान लेखक ने हिन्दी कथा साहित्य की धारा का रूप और रूख़ दोनों बदल दिए। हिन्दी
औपन्यासिक इतिहास की इस युगांतकारी घटना के संबंध में रामदरश मिश्र लिखते हैं –
“प्रेमचंद ने पहली बार उपन्यास के मौलिक क्षेत्र, स्वरूप और उद्देश्य को पहचाना।
पहचाना ही नहीं उसे भव्य समृद्धि प्रदान की, साथ ही काफ़ी ऊँचाई तक ले गए।” (हिन्दी
उपन्यास : एक अंतर्यात्रा, रामदरश मिश्र, पृ. 29) सामाजिक सरोकार इस विश्व प्रसिद्ध
लेखक की महत्ता का दूसरा महत्त्वपूर्ण आधार रहा है। अपने युग एवं समाज की
वास्तविकता को अपने लेखन की मुख्य विषय वस्तु के रूप में चयन करने वाले प्रेमचंद
जी का साहित्य तत्कालीन युग और समाज का बहुत ही साफ़-सुथरा प्रतिबिम्ब प्रस्तुत
करता है।
जिस समय प्रेमचंद का साहित्य-जगत में प्रवेश हुआ उस समय
उपन्यास साहित्य में ऐयारी-तिलिस्म, जासूसी,
चमत्कार, राजकुमार-राजकुमारियों
की रोमानी दुनिया ही उपन्यास का आकर्षण थी। प्रेमचंद ने उपन्यास को इस
तिलस्मी-रोमानी दुनिया से निकालकर साद्देश्यता और यथार्थता की भूमि प्रदान की।
प्रेमचंद ने उपन्यास के स्वरूप, क्षेत्र और
उद्देश्य को पहचाना। हिन्दी को भी कहानी वे और ऊँचाई पर ले गए। प्रेमचंद ने कथा साहित्य को प्राचीन गल्प के
उद्देश्य (उपदेश अथवा मनोरंजन) से ऊपर ले जाने का प्रयत्न किया और वह उसमें सफल हुए।
प्रेमचंद ने स्वयं कहा है – “...उसका उद्देश्य चाहे उपदेश करना न हो; पर गल्पों का आधार कोई-न-को दार्शनिक तत्त्व या सामाजिक
विवेचना अवश्य होता है। ऐसी कहानी जिसमें जीवन के किसी अंग पर प्रकाश न पड़ता हो, जो सामाजिक रूढ़ियों की तीव्र आलोचना न करती हो, जो मनुष्य में सद्भावों को दृढ़ न करें या जो मनुष्य में
कुतूहल का भाव न जाग्रत करे, कहानी नहीं है।”
(प्रेम द्वादशी,
पृ. 4)
सामाजिक यथार्थ प्रेमचंद साहित्य की प्रधान प्रवृत्ति रही
है। यथार्थवादी कलाकार की धर्मिता का बराबर निर्वाह करने वाले इस लेखक की यथार्थ
की पकड़ काफ़ी मजबूत थी । उन्होंने अपने उपन्यासों एवं कहानियों में यथार्थ के दोनों
आयामों यानी सामाजिक और व्यक्तिगत यथार्थ को उभारा। इतना ही नहीं प्रेमचंद ऐसे कथाकार है जिन्होंने
समकालीन परिस्थितियों, परिवेश में एक साधारण मनुष्य को कथा नायक का गौरव प्रदान
किया। यही प्रेमचंद की परंपरा रही – सामाजिक यथार्थ की कलात्मक प्रस्तुति। प्रेमचंद
ने साहित्य को वास्तविकता की ज़मीन प्रदान की। अपने समय एवं समाज के यथार्थ की बुनियाद
एवं व्याप्ति की गहरी पहचान रखने वाले प्रेमचंद ने अपने उपन्यासों एवं कहानियों
में यथार्थ के जटिल और सुन्दर दोनों रूपों को बड़ी ईमानदारी के साथ जाना-पहचाना और
निरूपित किया। प्रेमचंद के साहित्य में उस समय के भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, धार्मिक एवं आर्थिक दशा का वास्तविक
चित्रण हुआ है। कथासाहित्य में किसान, स्त्री, मजदूर,
शोषित, पीड़ित, दलित, वंचित आदि की उपस्थिति प्रेमचंद साहित्य में बखूबी दिखाई देती
है।
ग्राम्य-जीवन, ग्राम्य-संस्कृति और
उससे संबंधित समस्याएँ, मर्यादाएँ, दुःख, झूठ, अंध श्रद्धा, अशिक्षा, दासता, दीन
अवस्था, कर्ज का बोझ, देहात का मौसम आदि का चित्रण प्रेमचंद के साहित्य में प्रतिबिंबित
होता है। प्रेमचंद ने किसान और मजदूर वर्ग के जीवन, उनकी समस्याओं का जीवंत चित्रण
किया। ज़मीदारी एवं सामंतवादी प्रथा के चलते किसान से मजदूर बनने, उनके शोषण की
व्यथा-कथा भी उनके साहित्य में बखूबी चित्रित हुई है।
प्रेमचंद के साहित्य में किसान एवं
मजदूर जैसे निम्न वर्ग के अतिरिक्त विधवा विवाह, वृद्ध विवाह, वेश्या वृत्ति, कुण्ठा
एवं मानसिक रोग से ग्रस्त आदि मध्यम वर्गीय समस्याओं का चित्रण भी बड़ी कुशलता से हुआ है।
प्रेमचंद का दृष्टिकोण मानवतावादी
था। मानव मूल्यों की स्थापना के लिए प्रेमचंद ने उपन्यास के अंत में कल्पित आदर्शवादी समाधान का
रास्ता अपनाया। प्रेमचंद किसी एक विचारधारा से प्रभावित होकर नहीं बल्कि जनभावना के
लिए लिखते रहे।
प्रेमचंद ने शिक्षा एवं शिशु
संवेदना पर आधारित कथाओं का मनोवैज्ञानिक एवं रोचक चित्र प्रस्तुत किया है। उन्होंने अपने कथासाहित्य में स्वाधीनता आंदोलन
से संबंधित, राष्ट्रीयता का बोध कराती, ऐतिहासिक यथार्थ एवं औपनिवेशिक शासन की
न्याय व्यवस्था आदि के नग्न सत्य को उजागर करते कई प्रसंगों की सृष्टि बड़ी नवीनता से
की है । उन्होंने उस समय के इतिहास का सजीव चित्रण किया है। प्रेमचंद ने कहा है कि
– “साहित्यकार बहुधा अपने देश काल से प्रभावित होता है। जब कोई लहर देश में उठती
है तो साहित्यकार से उससे अविचलित रहना असंभव-सा हो जाता है।”
प्रेमचंद की परंपरा मतलब –
· सामाजिक यथार्थ की परंपरा
· यथार्थ के साथ-साथ लेखन में जीवन के आदर्श के संस्पर्श की
परंपरा
· साहित्य में जीवन की व्याख्या एवं आलोचना की परंपरा
· पीड़ितों-शोषितों-गरीबों के मानसिक संबल की परंपरा
· किसान-मजदूर-शोषित-पीड़ित-वंचित समाज की कथा साहित्य में उपस्थिति
एवं प्रतिनिधित्व की परंपरा
· ग्रामीण जीवन के सर्वांगी निरूपण की परंपरा
· शहरी जीवन की वास्तविकता के चित्रण की परंपरा
· सामाजिक जीवन-सत्यों को उजागर करने की साहस की परंपरा
· सामाजिक जीवन के साथ-साथ वैयक्तिक जीवन के चित्रण की भी
परंपरा
· वैचारिकता का व्यावहारिकता में परिणत होने की परंपरा
· सरलीकरण का साहित्य में आद्यंत निर्वाह की परंपरा
· यथार्थ के जटिल और सुन्दर दोनों रूपों की प्रस्तुति की
परंपरा
प्रेमचंद की सृजनात्मक प्रतिभा तथा उनके साहित्य की संवेदना
ने प्रारंभ से ही हिन्दी कथा लेखन को प्रेरित और प्रभावित किया है। वैसे तो पूरी
तरह से प्रेमचंद का अनुसरण-उनकी परंपरा का निर्वाह इतना आसान कार्य नहीं है जितना
कि लगता है। बावजूद, प्रेमचंद की परंपरा के कई ऐसे राही हैं जिन्होंने प्रेमचंद की
विचारधारा, उनके लेखन के सामाजिक सरोकारों तथा शैली-शिल्प का अनुसरण करते हुए उनकी
सामाजिक यथार्थ की इस सशक्त परंपरा को निरंतर विकसित किया है। इस तरह प्रेमचंद
साहित्य की विषय-वस्तु के साथ-साथ हिन्दी कहानी-उपन्यास लेखन के इतिहास में भी प्रेमचंद
के प्रभाव की मौजूदगी को-प्रेमचंद जी की प्रासंगिकता को बखूबी देखा जा सकता है।
प्रेमचंद अपने आप में एक संस्था-एक युग थे। अपने समकालीन
अनेक लेखकों को अपने हाथों से सँवारने वाले इस लेखक का जादू अपने युग के लगभग सभी
साहित्यकारों पर सवार था और उनका यह प्रभाव आज भी बना रहा है।
ऐतिहासिक क्रम से देखें तो प्रेमचंद युग के कथा साहित्य में प्रेमचंद की परंपरा के सर्जकों में विश्वंभरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ तथा पाण्डेय बैचेन शर्मा ‘उग्र’ का नाम विशेष उल्लेखनीय है। विश्वंभरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ तो प्रेमचंद स्कूल के ही लेखक रहे हैं। प्रेमचंदोत्तर युग में नागार्जुन, भैरवप्रसाद गुप्त, शिवप्रसाद सिंह, शैलश मटियानी, मार्कंडेय, भीष्म सहानी इत्यादी के नाम इस क्रम में लिए जा सकते हैं। पिछले कुछ दशकों में, विशेषतः समकालीन उपन्यास तथा इक्किसवीं सदी के कथा साहित्य के अंतर्गत संजीव, हरियशराय, स्वयं प्रकाश मिश्र, भगवानदास मोरवाल, महुआ माजी, तेजिंदर प्रभृति उपन्यासकारों जिन्हें प्रेमचंद की सामाजिक प्रतिबद्धता-प्रेमचंद की रचनाओं में चयनित विषय-वस्तु-प्रेमचंद की भाषा-शैली से प्रभावित कहा जा सकता है। इन लेखकों ने प्रेमचंद की परंपरा का अनुसरण करने के साथ-साथ इसका विस्तार भी किया है।
प्रेमचंद की परंपरा पर गहन दृष्टि डाली है।
जवाब देंहटाएंप्रेमचंद के साहित्य का सम्यक मूल्यांकन करता हुआ उनकी परम्परा को तलाशता सुंदर आलेख।बधासी5 डॉ. पूर्वा जी
जवाब देंहटाएंप्रेमचंद जी ने मानव जीवन के हर पहलू पर कथा लिखी है और कथा में आम लोगों की व्यथा को सुंदर शब्दों में पिरोया है । पूर्वा की यह समीक्षा प्रेमचंद जी के आभा मण्डल को और चमकाने में सफल रही है ।
जवाब देंहटाएंप्रेमचंद के साहित्य का सुंदर विश्लेषण करता आलेख। सुदर्शन रत्नाकर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर आलेख लिखा प्रिय पूर्वा जी!
जवाब देंहटाएंप्रेमचंद जी के साहित्य के मर्म को उद्घाटित करता सुन्दर आलेख, बधाई पूर्वा जी ।
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