वेदना
की तरंगें
विभा
रश्मि
कबूतरी के नन्हे चिकले का दिल धक-धक कर धड़क रहा था।
सिम्मी बेटी की गुलाबी हथेली के आरामदायक गुदगुदे कुशन की गर्मास में वो सो गया था।
अपनी कबूतरी माँ के पंखों की गर्माहट का अहसास हो रहा होगा उसे।
सिम्मी
के दिल में बहती ममता और प्यार की ठंडक,
उसकी अंगुलियों के पोरों से
हो कर, कपोत - शिशु
के भीतर भरती जा रही थी। उसने नेत्र मूँद रखे थे और वो हौले-हौले काँप रहा था।
“ममा! ये मुझे अपनी मम्मी समझ रहा
है। कैसे आराम से बैठा है हथेली के बीच में।” वो बहुत खुश और उत्तेजित थी।
कबूतरी
अपने बच्चे के लिये फ़िक्रमंद थी। तभी तो बाल्कोनी की रेलिंग पर धरना दिये बैठी थी।
बिटिया
ने मम्मी की मदद से कबूतरी के स्लेटी बच्चे को हथेली से उतार कर कागज़ और कपड़े की चिन्दियों के घोंसले में बाल्कोनी
के एक कोने में छोड़ दिया गया था। दाना-पानी
भी रख दिया गया था।
कबूतरी
चुपके से दाने खाने आई और उड़कर बच्चे के
पास बैठ गई। फिर कुछ क्षण में उड़ के
बाल्कोनी के सामने गुलमोहर के पेड़ पर जा बैठी। उसकी निगाह बच्चे
पर ही टिकी थी। पर वो उसके निकट नहीं आई।
गुलमोहर
की शाखाएँ बाल्कोनी की रेलिंग छू कर खुश
थीं , जैसे बेटी कपोत शिशु को पा कर। पर
कबूतरी के अपने नन्हे के प्रति , इस कठोर व्यवहार से बच्ची
आहत थी।
“तो ममा; उसकी कबूतरी ममा ने उसे छोड़ दिया? वो अपने बेबी के पास नहीं आएगी, अपने पास नहीं
सुलाएगी वो अपने बेबी को।”
हज़ार
प्रश्न थे। सुम्मी को जब ममा सीने से लगाने लगी तो वो रोती हुई छूट भागी।
उसके बालमन की कोमल भावनाएँ आहत हुई थीं।
आज कामवाली
ने एक अप्रिय
घटना की चर्चा की थी। पिछली रात को कँटीली झाड़ियों में किसी ने अपनी नवजात बेटी को फ़ेंक दिया, बच्ची काँटों की चुभन से बुरी
तरह घायल हो गई थी। उसे अस्पताल में भर्ती किया गया था।
नन्ही
सुम्मी ने झाड़ियों में फेंकी हुई बच्ची वाली घटना को चिड़िया और उसके चीं-चीं कर पुकारते चूज़ों से जोड़ दिया था। वो गुस्से में भरकर बाल्कोनी की
ओर दौड़ गई।
बाल्कोनी
में खड़े हो,
आँखों में आँसू भरकर वो
पेड़ पर बैठी लापरवाह, कठोर दिल कबूतरी माँ को बेहद गुस्से
से देख रही थी, उसके आँसू नहीं थम रहे थे।
विभा
रश्मि
उदयपुर
आज के यथार्थ से रूबरू कराती कहानी
जवाब देंहटाएंबहुत खूब आदरणीया दीदी, बहुत-बहुत बधाई आपको!
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