वृद्धावस्था
का पड़ाव
सविता
अग्रवाल 'सवि'
सुरेन्द्र
शर्मा जी को सेवा निवृत्त हुए दो साल हो गए थे। पत्नी शोभा के साथ अपना समय व्यतीत
कर रहे थे। उनका बेटा सुबोध अच्छी नौकरी की तलाश करते करते एक दिन अमरीका चला गया
था। उसके विवाह को भी सात साल बीत चुके थे। साल में एक बार,
सुरेन्द्र जी और उनकी पत्नी शोभा बेटे के पास दो तीन महीने अमरीका
रह कर आते थे। एक दिन अचानक दिल का दौरा पड़ने से शोभा की मृत्यु हो गयी। विधि के
विधान को कौन टाल सकता है। बेटे को माँ की मृत्यु का समाचार मिला तो वह अगले दिन
ही भारत पहुँच गया। तेरह दिन तक अंत्येष्टि की सभी प्रक्रियाएँ पूरी कर सुबोध भी
और अधिक नहीं रुक सकता था और अमरीका वापिस चला गया। माँ की मृत्यु के बाद बेटा
सुबोध रोज़ ही अपने पिता से बात करता था और उन पर अमरीका आकर रहने के लिए दबाव
डालता था। परिस्थिति से समझौता कर सुरेन्द्र जी ने स्वयं को संभाला, जब कि शोभा के रहते हुए वे हर कार्य में उस पर ही आश्रित थे। सुबह की चाय
से लेकर पूरे दिन के खाने पीने का ध्यान शोभा ही तो रखती थी। सुरेन्द्र जी से शोभा
ने कई बार कहा भी कि आप भी चाय बनाना और थोड़ा खाना बनाना सीख लो, पता नहीं हम दोनों में से कौन अकेला रह जाए। परन्तु सुरेन्द्र जी हमेशा
बात टाल जाते थे। कभी कभी हँस कर कह भी देते थे कि अरे भाई तुम मुझे छोड़ कर कैसे
जा सकती हो। तुम्हारे हाथ के स्वादिष्ट लड्डू अभी और खाने हैं मुझे। किन्तु भाग्य
में क्या लिखा है कोई नहीं जानता। अब सुरेन्द्र जी स्वयं सब कुछ धीरे धीरे सीखने
लगे। अक्सर चाय बनाते समय चाय उबल कर नीचे गिर जाती थी और वे बची हुई आधा प्याला
चाय ही पीकर संतुष्ट हो जाते थे, दुबारा चाय बनाने की हिम्मत
भी नहीं करते थे। कहते हैं कि ज़रुरत क्या कुछ नहीं सिखा देती है। खाने में भी
ब्रेड आदि खाकर ही काम चलाते थे। शोभा को याद कर उनके आँसू अनायास ही निकल आते थे।
एक
दिन सुरेन्द्र जी ने अपने एक घनिष्ठ मित्र से अपनी समस्या का समाधान माँगा कि
“क्या मैं अमरीका बेटे के पास जा कर रहूँ ?” मित्र
ने सलाह दी कि आप यहाँ बिलकुल अकेले हो गए हैं; वृद्धावस्था
के इस पड़ाव में आपको अपने बेटे के पास ही चले जाना चाहिए, वहाँ
नाती पोतों के साथ आपका मन लगा रहेगा। सुरेन्द्र जी को लगा कि मेरे लिए यही ठीक
रहेगा और उन्होंने निश्चय कर लिया कि वो अब अमरीका जाकर सुबोध के साथ ही रहेंगे और
एक दिन वो अपना घर बेचकर बेटे के पास चले गए। बच्चों के साथ उनका समय अच्छे से
व्यतीत होने लगा।
जैसे-जैसे
सुबोध के बच्चे बड़े हुए वे दादा के साथ कम समय बिताते और अपने कंप्यूटर पर अधिक
समय व्यतीत करने लगे। एक दिन सुबोध ने पिता से कहा कि घर के पास ही जो नया पार्क
बना है आप उसमें जाकर अपनी उम्र के और लोगों से मिलजुल सकते हैं। इससे आपका समय
अच्छा कटेगा और मित्र भी बन जायेंगे। सुरेन्द्र जी को बेटे का सुझाव अच्छा लगा और
वे पार्क में जाने लगे। शीघ्र ही वहाँ उनके दो मित्र भी बन गए। एक दिन किसी कारणवश कोई भी मित्र पार्क में नहीं आया। वे
उदास होकर बेंच पर बैठे हुए सामने बच्चों को खेलते हुए देख रहे थे। तभी भागते
भागते एक तीन वर्षीय बच्चा गिर गया और रोने लगा, सुरेन्द्र जी ने जल्दी से भाग कर उस बच्चे को उठाया और उसे चुप कराने लगे।
तभी बच्चे की दादी सरला भागती हुई आयीं और सुरेन्द्र जी को धन्यवाद देकर बच्चे को
लेकर घर चली गयीं। अगले दिन सरला जी हाथ में एक डब्बा लेकर पार्क में आयीं और
सुरेन्द्र जी को इधर उधर ढूँढते हुए उनके पास पहुँचीं और डब्बा खोलकर घर के बनाये
हुए लड्डू दिए। लड्डू मुँह में रखते ही उन्हें अपनी पत्नी शोभा की याद आयी,
“वह भी तो बिलकुल ऐसे ही लड्डू बनाती थी"। सरला जी से बात करने
पर पता लगा कि वे भी अपने बेटे के पास रहती हैं और उनके पति भी अब इस दुनिया में
नहीं हैं।
उस
रात सुरेन्द्र जी सो ना सके क्योंकि बार बार उन्हें सरला में अपनी पत्नी शोभा की
झलक दिखाई दे रही थी। अब वे हर शाम पार्क में जाकर सरला का इंतज़ार करने लगे। कई
बार मन किया कि अपने बेटे से कहें कि अब उनसे अकेले नहीं रहा जाता,
अपना सुख दुःख बाँटने के लिए उन्हें भी एक हमउम्र साथी चाहिए,
परन्तु संकोचवश कह नहीं पाए। एक दिन सुरेन्द्र जी पार्क में यह
सोचकर गए कि वह सरला से पूछेंगे कि क्या उन्हें भी इस ढलती उम्र में एक साथी की
ज़रुरत महसूस होती है ? पार्क में कुछ देर इंतज़ार करने के बाद
जब उन्होंने सरला को सामने से आते हुए देखा तो उनके चेहरे पर चमक आ गयी। दोनों
बेंच पर बैठ कर बातें करने लगे। बातों-बातों में सरला ने उन्हें बताया कि पंद्रह
दिन बाद वह वापिस भारत जा रही है क्योंकि उनकी छोटी बहु को बच्चा हुआ है, जिसकी देखभाल करनी है। जाते-जाते सरला ने कहा कि कल मैं आपके लिए वही
लड्डू फिर लाऊँगी जो आपको पसंद आये थे और ये कह कर सरला जी घर चली गईं।
अगले
दिन लड्डुओं का डब्बा लेकर सरला पार्क में पहुँचीं तो देखा कि लोगों की भीड़ जमा है।
पूछने पर एक लड़के ने कहा कि एक अंकल जो रोज़ पार्क में आते थे,
सड़क पार करते समय उनका एक्सीडेंट हो गया है और लगता है वे अब जीवित
भी नहीं हैं। पुलिस की गाड़ियों से घिरा सुरेन्द्र जी का शव सरला ने आगे बढ़कर देखना
चाहा कि वह कौन व्यक्ति है ? देखा तो सुरेन्द्र जी का
निर्जीव शरीर सामने पड़ा हुआ था और सरला को लगा जैसे कह रहे हों कि अरे सरला तुम
लड्डू ले आयीं ?
सविता
अग्रवाल 'सवि'
कैनेडा
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