पं.
गिरिधर शर्मा ‘नवरत्न’
1.
"अंग्रेजी,
जर्मनी, फ्रेंच, ग्रीक,
लैटिन यों
रशियन,
जापानी, चीनी, प्राकृतिक,
मणानी हों।
तमिल,
तेलुगु, तुल्लू, द्राविड़ी,
मराठी, ब्राह्मी,
उड़िया,
बंगाली, पाली, गुजराती
ज्ञानी हों।
जितनी
अनार्य आर्य भाषा जग जाहिर से है,
फारसी
ऐराबी तुर्की शबनम आनी हो।
जन्म
वृथा है तो भी मेरे जाने मानव का,
हिन्द
में जन्म लेकर हिन्दी न जानी हो।"
2.
सुनो
ए हिन्द के बच्चों तुम्हारी है जुबां हिन्दी।
तुम्हारा
हो यही नारा हमारी है जुबां हिन्दी।
पढ़ो
हिन्दी,
लिखो हिन्दी, करो सब काम हिन्दी में।
भरी
आला खयालों से तुम्हारी महरबां हिन्दी।
हजारों
लफ्ज आयेंगे नये आ जाए क्या डर है।
पचा
लेगी उन्हें हिन्दी कि है जिन्दा जुबां हिन्दी।
‘कलंदर’ मुशिदे कामिल बड़े ही साफगो हो तुम।
जुबां
है हिन्द की हिन्दी पढ़ेगा सब जहाँ।
भवानीप्रसाद
मिश्र
3.
वाणी
की दीनता
अपनी
मैं चीन्हता !
कहने
में अर्थ नहीं
कहना
पर व्यर्थ नहीं
मिलती
है कहने में
एक
तल्लीनता !
धूमिल
4.
एक
आदमी रोटी बेलता है
एक
आदमी रोटी खाता है
एक
तीसरा आदमी भी है
जो
न रोटी बेलता है
न
रोटी खाता है
वह
सिर्फ रोटी से खेलता है
मैं
पूछता हूँ यह तीसरा आदमी कौन है
मेरे
देश की संसद मौन है।
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