शनिवार, 14 नवंबर 2020

अनुवाद


लघुकथा – ख़लील जिब्रान  

अनुवाद - सुकेश साहनी

1 . सफाई

दार्शनिक ने गली के सफाईकर्मी से कहा –“मुझे तुम पर दया आती है, तुम्हारा काम बहुत ही गंदा है।”

मेहतर ने कहा – “शुक्रिया जनाब, लेकिन आप क्या करते हैं ?”

प्रत्युत्तर में दार्शनिक ने कहा –“मैं मनुष्य के मस्तिष्क, उसके कर्मों और चाहतों का अध्ययन करता हूँ।”

तब मेहतर ने गली की सफाई जारी रखते हुए मुस्कुराकर कहा, “मुझे भी आप पर तरस आता है।”   

 


2. वज्रपात

तूफानी दिन था। एक औरत गिरजाघर में पादरी के सम्मुख आकार बोली, “मैं ईसाई नहीं हूँ, क्या मेरे लिए जीवन की नारकीय यातनाओं से मुक्ति का कोई मार्ग है ?”

पादरी ने उस औरत की ओर देखते हुए उत्तर दिया, “नहीं, मुक्ति मार्ग के विषय में मैं उन्हीं को बता सकता हूँ, जिन्होंने विधिवत् ईसाई धर्म की दीक्षा ली हो ।”

पादरी के मुँह से ये शब्द निकले ही थे कि तेज़ गड़गड़ाहट के साथ बिजली वहाँ आ गिरी और पूरा क्षेत्र आग की लपटों घिर गया।

नगरवासी दौड़े-दौड़े आए और उन्होंने उस औरत को तो बचा लिया, लेकिन तब तक पादरी अग्नि का ग्रास बन चुका था।  

1 टिप्पणी: