रविवार, 1 नवंबर 2020

हाइकु

 

स्मृति शेष


(क) झीणाभाई देसाई ‘स्नेह रश्मि’ (गुजराती कवि)

(हिन्दी अनुवाद - डॉ. भगवतशरण अग्रवाल)

1

कुहुक ध्वनि

रात जाग देखूँ तो

बारी में चन्द्र ।

2

आँधी में थकी

हवा सहज लेटी

फूल शय्या में ।

3

छप्पर चुए

भीगे गोदी में शिशु

माँ के आँसू से ।

4

बादल अब

गरजें न बरसें

रंगोली पूरें ।

5

छितरा नीड़

आतुर लेने गोद

बिखरे पत्ते ।


(ख) आचार्य रघुनाथ भट्ट 

1

साँझ की चील

उड़ी अंतरिक्ष में

डैने फैलाए ।

2

जीवन यात्रा

सुगंध बिखेरता

वासंती फूल ।

3

कपोल तिल

शोभा सिंहासन में

शालिगराम  

4 

शहर बैठा

गाँवों की लाश पर

भूखा गिद्ध-सा ।

5

द्रौपदी सुनो !

चीर रक्षक नहीं

व्यर्थ पुकार ।

 

(ग) मुकेश रावल

 1

वात्सल्य भरा

हर पल नवीन

            माँ का हृदय ।            

2

जन की पीड़ा

कवि-मुख में बसी

हुई मुखर ।

3

विशाल नभ

तारों के संग-संग

अकेला खुश ।

4

हँसता रहा

कँटीले पथ पर

लहू-लुहान ।

5

बचपन ही

हर चिंता से मुक्त

अपनी धुन ।


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