डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र
भाषाचिन्तक
40, साईं पार्क सोसाइटी
बाकरोल – 388315
जिला आणंद (गुजरात)
1.
छ, छः या छह -
हिंदी में ६ की संख्या को शब्द में लिखने के लिए इन तीन शब्दों का या एक ही
शब्द के तीन रूपों का प्रयोग होता है।
विचारणीय यह है कि इन तीनों में कौन-सा शब्द मानक है? अथवा किसे मानक होना चाहिए?
पहले ‘छः’ को लेते हैं।
हिंदी की प्रकृति के अनुसार हिंदी के लिए ‘छः’ सही शब्द नहीं हो सकता।
मेरे हिसाब से इसका कारण यह है कि हिंदी की अपनी प्रकृति और संरचना में
विसर्ग (ः) नहीं है।
विसर्ग युक्त जो भी शब्द हिंदी में हैं, वे सभी संस्कृत से आए हुए हैं।
‘छः’ संस्कृत का शब्द नहीं है।
इसके बाद ‘छह’ को लेते हैं।
पहली बात तो यह कि ‘छह’ शब्द ‘छः’ का उच्चरित रूप है। दोनों में और कोई
फर्क नहीं है।
दूसरी बात यह कि ‘छह’ से समास नहीं बन सकता। छमाही या छमासिक शब्द तो
प्रयोग में हैं । परंतु छहमाही या छहमासिक शब्द प्रयोग में नहीं हैं।
ऐसे में ‘छह’ को मानक या हिन्दी का स्वाभाविक शब्द मानने में कठिनाई महसूस
होती है।
वैसे भी हम ‘छह’ (छः) के अंत में ‘ह’ ध्वनि होने की वजह से छह का पूरा
उच्चारण नहीं करते।
रही बात ‘छ’ की, तो यह इन सारी आपत्तियों से मुक्त है ।
2.
सवाल है -
दिनों दिन सही है या दिनो दिन?
मेरी समझ से ‘दिनों दिन’ सही है।
इसको उर्दू (दिन ओ दिन) या संस्कृत (दिनन्दिन) से जोड़ने का कोई औचित्य
प्रतीत नहीं होता।
(आप्टे के कोश में ‘दिनन्दिन’ जैसा कोई शब्द भी नहीं है।)
यहाँ ‘दिन’ का बहुवचन रूप ‘दिनों’ है। बहुत्व के साथ निरंतरता और तीव्रता
का बोध कराने के लिए ‘दिनों’ के साथ’ ‘दिन’ जोड़कर ‘दिनों दिन’ बना है।
(उसकी समृद्धि दिनों दिन बढ़ती गई।)
यह सवाल सिर्फ ‘दिनों दिन’ का नहीं है।
यह हिंदी की एक खास प्रकार की संरचना है। इसके और भी उदाहरण हैं -
रातों रात, बरसों बरस, हाथों हाथ, कानों कान, हजारों
हजार (हजारों हजार साल से ….), लाखों लाख (लाखों लाख साल से
पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगा रही है) खोजने से ऐसे और भी उदाहरण मिल जाएँगे।
मैंने पहले भी कहा है कि हिंदी के कोशग्रंथों की विश्वसनीयता संदिग्ध है।
जिन बदरीनाथ कपूर ने बृहत् प्रमाणिक हिंदी कोश में ‘दिनोदिन’ दिया है, उन्हीं ने कानों कान (पृ 171)
तथा हाथों हाथ (पृ. 1010) भी दिया है।
क्या कीजिएगा!
एक बात और
‘दिनोंदिन’ नहीं बल्कि ‘दिनों दिन’ लिखा जाएगा ।
3.
जरिया नजरिया (विशेषण) हाशिया रुपया किराया पराया शुक्रिया माफिया सरिया साया
जैसे याकारांत पुल्लिंग शब्दों के विकारी रूप होते हैं - जरिये नजरिये हाशिये
रुपये -----
परंतु बहुत सारे लोग दिया-दिए लिया- लिए पिया-पिए के सादृश्य पर उपर्युक्त
याकारांत शब्दों के विकारी रूपों को रुपए हाशिए नजरिए ----- के रूप में लिखते हैं।
यह गलत है। ऐसा क्यों?
यह जरा समझना पड़ेगा -
पिया लिया दिया आदि क्रियारूप हैं जो धातु के साथ आ प्रत्यय जोड़ने से बनते
हैं। जैसे - लिख+आ=लिखा दे+आ=दिआ सो+आ=सोआ ले+आ+लिआ आदि।
इन शब्दों के मूल में य नहीं है।
फिर सवाल है कि य आया कहाँ से?
ऐसे क्रियारूपों में जो य बोला और लिखा जाता है उसे श्रुति कहते हैं। यानी
जो मूलतः है नहीं। सिर्फ सुनाई पड़ता है वह श्रुति है।
किया दिया लिया सोया रोया जैसे क्रियारूपों में य बहुत स्पष्ट रूप में
सुनाई पड़ता है। जबकि वह क्रियारूप की रचना में नहीं है। लेकिन उच्चारण में है।
इसी लिए ये क्रियारूप किआ दिआ लिआ सोआ के रूप नहीं बल्कि किया दिया लिया के रूप
में लिखे जाते हैं।
परंतु जब इन क्रियारूपों के बहुवचन रूप बनाने के लिए धातु के साथ ए प्रत्यय जुड़ता है तब य की श्रुति ए में खो जाती है। इसलिए य श्रुति वाले क्रियारूपों के रूप किए दिए लिए सोए खोए के रूप बोले और लिखे जाते हैं।
परंतु पराया हाशिया नजरिया जैसे शब्दों में य शब्द का अभिन्न हिस्सा है।
इसी लिए इन शब्दों के विकारी रूपों य मौजूद रहता है।
4.
छठा / छठाँ / छठवाँ -
एक ही शब्द के ये तीन रूप हैं। लिखने में
भी और बोलने में भी।
इधमें ‘छठा’ ही सही है। शेष दो गलत हैं।
कैसे?
एक, दो, तीन, चार, पाँच, छ, सात ……..
ये गणनाबोधक संख्याएँ हैं। इन संख्याओं के
द्वारा हम वस्तुओं की गणना यानी गिनती करते हैं।
इनसे बनती हैं क्रमबोधक संख्याएँ।
पहला, दूसरा, तीसरा, चौथा, पाँचवाँ, छठा, सातवाँ ……..।
इन संख्याओं पर ध्यान दीजिए।
एक से चार तक क्रम का बोध कराने वाली
संख्याओं के लिए अलग अलग शब्द हैं।
पाँच से आगे सभी क्रमबोधक संख्याएँ
गणनाबोधक संख्याओं के साथ ‘वाँ’ प्रत्यय जोड़कर बनती हैं।
लेकिन पाँच और सात के बीच में छ अपवाद रूप
में आता है, जिसके साथ ‘वाँ’ प्रत्यय नहीं जुड़ता। छ के साथ ठा प्रत्यय
जुड़ने से छठा बनता है।
चूँकि पाँच और सात के साथ वाँ प्रत्यय
जुड़ता है और छ इन दोनों के बीच में पड़ता है। इसलिए सादृश्य के चलते भ्रमवश लोग छठा
को छठाँ या छठवाँ मान लेते हैं। या भाषा प्रवाह में पाँचवाँ,
छठवाँ, सातवाँ, आठवाँ
….. रूप बन जाते हैं। इसे हम सादृश्यमूलक भूल कहते
हैं।
लेकिन संस्कृत शब्द षष्ठ से छठ ही बनता है। फिर उसमें पुल्लिंग एकवचन आ प्रत्यय जुड़ने से छठा बनता है।
5.
श्री प्रशांत कुमार ने एक सवाल किया है -
उत्तरार्ध तथा उत्तरार्द्ध शब्दों में क्या संबंध है तथा दोनों के अर्थ में
क्या अंतर है?
जवाब -
एक ही शब्द के ये दो लिखित रूप हैं। इसलिए अर्थ तो एक ही होगा।
यह संस्कृत लेखन की एक व्यवस्था है।
संस्कृत के कुछ वर्ण ऐसे हैं,
जिनके ऊपर रेफ (यानी र्) हो तो लेखन में उस वर्ण का विकल्प से
द्वित्व (डबल) हो जाता है -
कर्म/कर्म्म। धर्म/धर्म्म।
वर्मा/वर्म्मा। शर्मा/शर्म्मा।
कर्तव्य/कर्त्तव्य। कर्ता/कर्त्ता।
इनके उदाहरण ४०-५० साल पहले छपीं हिंदी की किताबों में देखे जा सकते हैं।
अब बात उत्तरार्ध तथा उत्तरार्द्ध की।
ऊपर बताए गए लेखन के नियम के अनुसार -
उत्तरार्ध के ध पर रेफ होने के कारण विकल्प से द्वित्व होगा - उत्तरार्ध्ध।
किंतु,
दो महाप्राण ध्वनियाँ (ख घ छ झ ठ ढ थ ध फ भ) एक साथ उच्चरित नहीं होतीं -
नहीं हो सकतीं।
उनमें पहली ध्वनि अल्पप्राण (क ग च ज ट ड त द प ब) बन जाती है।
इसी लिए उत्तरार्ध्ध में पहला ध द
बन जाता है।
फिर शब्द बनता है - उत्तरार्द्ध।
निष्कर्षतः उत्तरार्ध तथा उत्तरार्द्ध एक ही शब्द के दो लिखित रूप हैं।
कर्म्म धर्म्म वर्म्मा जैसे रूप अब हिंदी में नहीं चलते।
लेकिन उत्तरार्द्ध कर्त्तव्य कर्त्ता जैसे वैकल्पिक रूप अभी हिंदी में चलते
हैं।
आप उत्तरार्ध लिखिए या उत्तरार्द्ध - कोई फर्क नहीं है। दोनों एक ही शब्द
हैं।
बढ़िया जानकारी ..याद रखने लायक ..आभार _/\_
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक किंतु छ की समस्या व्यावहारिक रूप से अनसुलझी है।प्रारम्भिक कक्षाओं से ही गिनती के उच्चारण में छ नही छै का उच्चारण कराया जाता है।मुख-सुख से भी हम छह या छै का उच्चारण करते हैं ,कृपया इसका भी समाधान कीजिये
जवाब देंहटाएंश्रीमान् शिवजी, उसी समस्या को स्पष्ट करने के लिए ही तो मैंने यह पोस्ट लिखा है।
जवाब देंहटाएंकिसी शब्द का एक पक्ष उसका उच्चारण होता है तथा दूसरा पक्ष उसका लेखन होता है। किसी शब्द के उच्चारण में विविधता होती है। परंतु उसका लिखित रूप एक ही होता है। एक ही होना चाहिए। सुनिश्चित होना चाहिए।
यदि प्रारंभिक कक्षाओं में छ लिखा होता तो उसका उच्चारण प्रारंभिक कक्षा के अध्यापक छ ही सिखाते। बच्चा वही उच्चारण करता है या अध्यापक वही उच्चारण सिखाते हैं, जो पुस्तक में लिखा होता है।
मेरा पोस्ट इसी बात पर केंद्रित है कि छ छः तथा छह में ले कौन-सा रूप सही है। मेरे तर्क आपने पढ़े होंगे।
छः तथा छह के उच्चारण में फर्क नहीं है। फर्क लिखने में है। विसर्ग का भी उच्चारण तो ह् ही होता है। हिन्दी में विसर्ग नहीं होता। ऐसे में छः अपने आप निरस्त होता है। भाषा प्रवाह में हम छह नहीं बोलते। आप बोलकर देखिए। हो सकता है आप छे बोलते हों। लेकिन आप छह नहीं होलते होंगे।
हाँ, सायास भले ाप बोल लें। परंतु भाषा प्जरवाह में हम छह नहीं बोलते। नहीं बोल सकते। मेरा कहना यह है िक जब छह नहीं बोलते, तो उसके लिखने की जरूरत नहीं है।
बाकी बचा छ। पश्चिमी उत्तर प्रदेश वाले छे बोलते हैं।
6 का लिखित रूप क्या क्या होना चहिए मेरे पोस्ट के केन्द्र में यही है।
इस स्पष्टता के बाद भी मन में प्रश्न हो तो फोन कीजिए। मैं समझाने लिए तैयार हूँ। 9924812252/8460875633
धन्यवाद मिश्र जी
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